आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर करने के लिए आरोपी अपने पावर ऑफ अटॉर्नी धारक का उपयोग नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

31 Jan 2022 2:00 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी आपराधिक कार्यवाही में उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी तीसरे पक्ष, जैसे पावर ऑफ अटॉर्नी धारक (एसपीए) का सहारा नहीं ले सकता।

    दंड प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी) में अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति की अनिवार्य आवश्यकता का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि आपराधिक मामलों में तीसरे पक्ष की उपस्थिति आपराधिक न्याय प्रणाली के उद्देश्य को विफल कर देगी।

    न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 227 सहपठित दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 धारा 482, के तहत दायर एक याचिका खारिज कर दी। इसमें याचिकाकर्ता के प्रतिनिधि को दी गई पावर ऑफ अटार्नी धारक के माध्यम से उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

    पृष्ठभूमि

    निचली अदालत के आदेश दिनांक 5.3.2016 के तहत याचिकाकर्ता आरोपी को भगोड़ा घोषित किया गया था। याचिकाकर्ता एक एफआईआर और सीआरपीसी की धारा 82/83 के तहत दायर चार्जशीट के तहत आपराधिक कार्यवाही का सामना कर रहा था।

    आदेश और कार्यवाही को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने एक याचिका दायर कर अपने पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के माध्यम से अपने खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की।

    याचिका के लिए हलफनामा भी एसपीए द्वारा दायर किया गया था। कोर्ट ने एसपीए के माध्यम से दायर याचिका की सुनवाई पर फैसला किया।

    एसपीए धारक नियुक्त करने पर प्रतिबंध

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि एसपीए धारक द्वारा दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    कोर्ट ने अमित आहूजा बनाम जियान प्रकाश भांबरी (2010) और टी.सी. मथाई और अन्य बनाम जिला एवं सत्र न्यायाधीश (1999) मामले का उल्लेख किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने टी.सी. मथाई मामले में पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से प्रतिनिधित्व को आपराधिक मामलों में मान्य नहीं माना था, जहां क़ानून में स्पष्ट रूप से अभियुक्त को व्यक्तिगत रूप से पेश होने की आवश्यकता होती है।

    इस तरह का प्रतिनिधित्व अध्याय XVI, धारा 205 और 273 जैसे क़ानूनों के अधिकार को विफल कर सकता है, जिसके लिए अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता होती है।

    कोर्ट ने इस प्रकार कहा,

    "पावर ऑफ अटॉर्नी अधिनियम की धारा 2 किसी क़ानून के विशिष्ट प्रावधान को ओवरराइड नहीं कर सकती। इसके लिए यह आवश्यक है कि एक विशेष कार्य एक पक्ष द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाना चाहिए।"

    संक्षेप में कानून के लिए आवश्यक है कि अभियुक्त आपराधिक कार्यवाही में जनहित का हवाला देते हुए अपनी ओर से पेश होने के लिए किसी प्रॉक्सी या किसी तीसरे व्यक्ति का सहारा न ले।

    इस सामान्य नियम का अपवाद अमित आहूजा में नाबालिगों, विकलांग व्यक्तियों, पागल व्यक्तियों या आरोपी के रूप में नामित अन्य अक्षम व्यक्ति के लिए रखा गया था।

    इसके अलावा केवल एक अभिभावक या घनिष्ठ मित्र ही ऐसी परिस्थितियों में कार्यवाही शुरू कर सकता है। यह न्यायालय में आपराधिक मामलों में तीसरे पक्ष/जनहित याचिकाकर्ताओं द्वारा व्यर्थ रूप से मामले लाने से रोकता है। इसके अलावा, एक प्रॉक्सी के माध्यम से ऐसी याचिका दायर करने से आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।

    जस्टिस रजनीश भटनागर ने मिसाल की इस पंक्ति का उल्लेख करते हुए कहा:

    "मौजूदा मामले में भी एसपीए धारक के माध्यम से याचिका दायर की गई है, जो कि सुनवाई योग्य नहीं है। इसलिए याचिकाकर्ता को अनुच्छेद 227 सहपठित दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत वर्तमान याचिका संख्या सीआरएल.एमसी 1571/2021 दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"

    इस प्रकार याचिका खारिज कर दी गई।

    केस शीर्षक: अमरिंदर सिंह और राजा थ्रू: स्पा होल्डर सुखजिंदर सिंह बनाम दिल्ली के एनसीटी राज्य

    निर्णय की तिथि: 04.01.2022

    कोरम: न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर

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