आरोपी को अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में आरोपी को जमानत दी
LiveLaw News Network
10 Feb 2022 11:30 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी आरोपी को अनिश्चित काल के लिए हिरासत में नहीं रखा जा सकता। इस संबंध में हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी मामले की जल्द सुनवाई का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने दो करोड़ रूपये की धोखाधड़ी मामले में आरोपी को जमानत दे दी।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा:
"जब जल्द सुनवाई का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है तो यह माना जा सकता है कि एक पहलू यह भी होगा कि आरोपी को अनिश्चित काल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।"
अदालत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 के तहत दर्ज एफआईआर में जमानत की मांग करने वाली एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
शिकायतकर्ता पेशे से एक जौहरी है। उसने आरोप लगाया कि उसके ग्राहक याचिकाकर्ता ने उसे झूठी और गलत जानकारी देते हुए कहा कि भारत के प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम शुरू किया है। इसमें ब्रुनेई के राजा भारत के विभिन्न हिस्सों में 14 सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल शुरू करना चाहते थे। इस योजना के तहते पहले अस्पताल का उद्घाटन अहमदाबाद, गुजरात में होगा।
यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने कहा कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका में ब्रुनेई के राजा की चचेरी बहन से मिली थी, जो भारत में राजनीतिक नेताओं से मिलने और उन्हें आभूषण उपहार में देना चाहती है। यह भी कहा गया कि शिकायतकर्ता को बिना कोई अग्रिम लिए एक करोड़ रुपये से अधिक के आदेश को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया गया और याचिकाकर्ता और उसके परिवार को 5% कमीशन देने के लिए सहमत हुई।
शिकायतकर्ता ने कहा कि उसने आभूषण के लिए आवश्यक सोना और हीरे खरीदे और जून, 2015 में उसे याचिकाकर्ता और उसके परिवार को सौंप दिया। याचिकाकर्ता ने तब कथित तौर पर शिकायतकर्ता को सूचित किया कि उसे तीन जून, 2015 तक पैसे मिल जाएंगे।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि जब वह याचिकाकर्ता के घर गया तो उसके परिवार ने उसे बताया कि याचिकाकर्ता आभूषण लेकर भाग गई है।
मामले में आरोपपत्र तीन जुलाई, 2018 को दायर किया गया। याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने उसे जमानत देने के लिए हाईकोर्ट जाने के लिए कहा।
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को देखते हुए अदालत ने कहा कि उसी ने खुलासा किया कि याचिकाकर्ता ने कथित अपराध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वही शिकायतकर्ता को दो करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी के पीछे की योजना में मास्टरमाइंड थी।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और अन्य सह-आरोपियों द्वारा रची गई साजिश से पता चलता है कि यह एक व्यवस्थित और जटिल योजना है। इसे इस तथ्य से पता लगाया जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने ब्रुनेई के राजा की चचेरी बहन का को दिखाने के लिए एक और सिम खरीदा था।
अदालत ने कहा,
"याचिकाकर्ता भी जांच के दौरान असहयोगी रहा है। उसने शिकायतकर्ता और उसके पति और उसकी मां सहित उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आरोप लगाए।"
हालांकि, अदालत ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता मई, 2018 से हिरासत में है। इसके सिवाय कि वह पिछले साल 14 मई से 23 नवंबर तक COVID-19 महामारी के मद्देनजर एचपीसी के दिशानिर्देशों के आधार पर अंतरिम जमानत पर थी।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील की दलील में योग्यता पाई कि अगर उसे दोषी ठहराया जाता है तो भी उसे अधिकतम सात साल की कैद होगी। इसमें से वह पहले ही दो साल हिरासत में बिता चुकी है।
यह देखते हुए कि चार साल बाद भी जांच पूरी नहीं हुई, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को अंतहीन समय चक सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा:
"याचिकाकर्ता पहले ही हिरासत में कारावास की अधिकतम अवधि का एक चौथाई से अधिक बीता चुकी है। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ता ने किसी और को धोखा दिया है। उपयुक्त शर्तें सुनिश्चित करके याचिकाकर्ता के न्याय की पहुंच से दूर होने की आशंकाओं को कम किया जा सकता है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता, उसके अपने परिवार के सदस्यों और अन्य गवाहों को धमकी देने की संभावना को भी शर्तें लगाकर दूर किया जा सकता है।"
इसी के तहत कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमानत दे दी।
केस शीर्षक: नैन्सी गिल बनाम राज्य
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 106
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