अकादमिक मूल्यांकन और परीक्षा छात्रों के जीवन पर भारी नहीं होनी चाहिए : यूनिवर्सिटी एक्ज़ाम की अनुमति देने के MHA के फैसले के खिलाफ लॉ स्टूडेंट ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा

Rajesh

10 July 2020 3:45 AM GMT

  • अकादमिक मूल्यांकन और परीक्षा छात्रों के जीवन पर भारी नहीं होनी चाहिए : यूनिवर्सिटी एक्ज़ाम की अनुमति देने के MHA के फैसले के खिलाफ लॉ स्टूडेंट ने दिल्ली हाईकोर्ट  के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा

    दिल्ली विश्वविद्यालय के क़ानून की एक छात्रा ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल को पत्र लिखकर अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा लेने से छात्रों को होने वाली मुश्किलों के बारे में बताया है। सरकार ने कहा है कि अंतिम वर्ष के छात्रों को अब परीक्षा देनी होगी।

    छात्रा आस्था खन्ना ने पत्र मेंं कहा,

    "…छात्र चाहते हैं कि उनके मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों की रक्षा की जाए…किसी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है, इसको नज़रंदाज़ करते हुए मैं हर छात्र के हितों की रक्षा करने का आग्रह कर रही हूं और परीक्षा के वैकल्पिक तरीक़ों को अपनाने की मांग कर रही हूं और डर है कि कहीं हम एक सामाजिक अन्याय की स्थिति को स्वीकार न कर लें…।"

    केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 6 जुलाई 2020 को जारी आदेश द्वारा विश्वविद्यालयों को यूजीसी के दिशा निर्देशों के अनुरूप आवश्यक रूप से अंतिम वर्ष की ऑफ़्लाइन परीक्षा (पेन और काग़ज़)/ऑनलाइन/मिश्रित (ऑफ़लाइन+ऑनलाइन) लेने को कहा था।

    आस्था खन्ना ने अपने पत्र में कहा है कि,

    "मैं अदालत के माध्यम से केंद्रीय संसाधन मंत्रालय, यूजीसी और अन्य ऐसे अकादमिक एककों से अपील करती हूं, जो महामारी के इस समय में परीक्षा लेने पर आमादा हैं जबकि कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया और हमारे जीवन को बदलकर रख दिया है।"

    जहां तक ऑनलाइन परीक्षा लेने की बात है, आस्था ने कहा कि यद्यपि एमएचआरडी ने परीक्षा के किसी वैकल्पिक मॉडल को अपनाने का सुझाव दिया है जिसमें ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा (ओबीई) का सुझाव भी शामिल है, लेकिन उसने न केवल देश के सूदूर इलाक़े में रहने वाले छात्रों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को नज़रंदाज़ किया है, बल्कि महानगरों के अंधकारमय कोने में रहनेवाले छात्र जिस तरह की स्थिति का सामना करते हैं उसे भी नज़रंदाज़ किया है।

    उसने अपने पत्र में स्मार्टफ़ोन और कंप्यूटर नहीं होने के कारण छात्रों के आत्महत्या कर लेने की खबरों का भी उल्लेख किया है।

    पत्र में कहा गया है कि,

    "अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा आवश्यक रूप से आयोजित करना उनके मौलिक अधिकारों और नैतिक मूल्यों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है क्योंकि इस प्रक्रिया में बुनियादी सुविधाओं में असमानता को ध्यान में नहीं रखा गया है और इस वजह से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों की किस तरह की मानसिक स्थिति से गुजरना पड़ता है।"

    आस्था ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था ऐसी नहीं होनी चाहिए। अकादमिक मूल्यांकन और परीक्षा व्यवस्था छात्रों की जिंदगियों पर भारी नहीं पड़नी चाहिए।

    आस्था ने कहा कि इस प्रमुख विश्वविद्यालय में विदेशों से भी छात्र पढ़ने आते हैं और समय में अंतर होने के कारण ऑनलाइन परीक्षा लेने से उन्हें अलग तरह की मुश्किलें पेश आएँगी। किसी अन्य देश के होने के कारण छात्रों को ऐसी मुश्किलों में नहीं डालना चाहिए जो उनके नियंत्रण के बाहर है। शिक्षा व्यवस्था को छात्रों के हित में काम करना चाहिए न कि उसके ख़िलाफ़।

    इस वजह से उसने मुख्य न्यायाधीश से कहा है कि वह छात्रों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए क़दम उठाएं।

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