[सात साल की बच्ची का रेप] पीड़िता के शरीर पर चोट के निशान न होने के कारण रेप के अपराध को असंभव नहीं बनाया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट ने दोषी की सजा बरकरार रखी

LiveLaw News Network

21 Feb 2022 8:38 AM GMT

  • [सात साल की बच्ची का रेप] पीड़िता के शरीर पर चोट के निशान न होने के कारण रेप के अपराध को असंभव नहीं बनाया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट ने दोषी की सजा बरकरार रखी

    कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने हाल ही में सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार (Rape Case) सजा को बरकरार रखा है, यह देखते हुए कि बलात्कार के अपराध को साबित करने के लिए केवल प्रवेश पर्याप्त है और पीड़ित के शरीर पर चोटों की उपस्थिति आवश्यक नहीं है।

    जस्टिस बिवास पटनायक और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा,

    "यह भी जोरदार तर्क दिया गया है कि सात साल की नाबालिग पर बलात्कार का आरोप असंभव है क्योंकि पीड़िता के शरीर पर उसके निजी अंगों सहित कोई चोट नहीं पाई गई थी। उसका हाइमन पाया गया था। बलात्कार के अपराध को साबित करने के लिए केवल पेनिट्रेशन पर्याप्त है।"

    बेंच ने कहा,

    "यह आवश्यक नहीं है कि पेनिट्रेशन इस तरह की प्रकृति का होना चाहिए कि इससे चोट लग जाए या हाइमन टूट जाए। उपरोक्त तथ्यात्मक मैट्रिक्स में यह स्पष्ट है कि पीड़िता के निजी अंगों में थोड़ी सी पेनिट्रेशन थी जो कि बलात्कार का गठन करने के लिए पर्याप्त है। इसके परिणामस्वरूप हाइमन का टूटना नहीं हुआ।"

    खंडपीठ ने अपीलकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि नाबालिग पीड़िता पर जबरन बलात्कार का आरोप सिर्फ इसलिए असंभव है क्योंकि पीड़िता के निजी अंगों पर कोई चोट नहीं मिली है।

    अदालत ने आगे कहा,

    "इस प्रकार, मेरी राय है कि अभियोजन का मामला पूरी तरह से संदेह से परे साबित हो गया है और पीड़ित के शरीर पर चोटों के अभाव के कारण रेप के अपराध को असंभव नहीं बनाया जा सकता है।"

    क्या है पूरा मामला?

    अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(f) (बलात्कार) के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराते हुए संबंधित सत्र न्यायालय द्वारा पारित फैसले के खिलाफ अपील दायर की गई थी।

    सत्र न्यायालय ने दोषी को दस साल के लिए दो कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी और 5,000 रुपये का जुर्माना भरने के का निर्देश दिया था।

    आदेश में कहा गया था कि चूक होने पर छह माह का और कठोर कारावास भुगतना होगा और जुर्माना राशि वसूल की जाती है तो उसका 50 प्रतिशत पीड़िता को भुगतान किया जाएगा।

    14 अप्रैल 2013 को नाबालिग पीड़िता की मां घरेलू सहायिका के रूप में काम के लिए बाहर गई थी और अपने पीछे करीब 7 साल की नाबालिग बेटी और एक साल का बेटा घर पर छोड़ गई थी।

    उसकी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर, अपीलकर्ता, जो एक पड़ोसी है, घर में आया और नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया।

    उसने नाबालिग को दस रुपये देने के लालच में उसके अंदर के कपड़े उतारने के लिए कहा था। इसके बाद दोपहर करीब ढाई बजे जब पीड़िता की मां काम से लौटी तो उसने देखा कि अपीलकर्ता गमछा पहनकर घर से बाहर आ रहा है।

    घर में प्रवेश करने पर उसने अपनी नाबालिग बेटी को रोते हुए पाया और बाद में नाबालिग पीड़िता ने खुलासा किया कि अपीलकर्ता ने उसका बलात्कार किया है।

    इसके बाद, अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (2) (एफ) के तहत पुलिस शिकायत दर्ज की गई थी।

    कोर्ट ने क्या कहा?

    प्रतिद्वंद्वी की दलीलों के अवलोकन पर अदालत ने कहा कि नाबालिग पीड़िता के साक्ष्य की उसकी मां और अन्य स्थानीय गवाहों ने पुष्टि की है कि अपीलकर्ता को पीड़िता के घर से नंगे बदन और केवल गमछा पहने हुए देखा गया था।

    कोर्ट ने आगे कहा कि बलात्कार पीड़िता के साक्ष्य को गवाह के समान माना जाना चाहिए। आगे यह देखा गया कि नाबालिग पीड़िता का साक्ष्य विश्वसनीय है और आत्मविश्वास को प्रेरित करता है और इसका कोई कारण नहीं है कि पीड़िता ने अपीलकर्ता को झूठा फंसाया।

    इस तर्क को खारिज करते हुए कि बलात्कार असंभव है क्योंकि पीड़िता के शरीर पर उसके निजी अंगों सहित कोई चोट नहीं पाई गई, अदालत ने कहा,

    "इस पृष्ठभूमि से यह स्पष्ट है कि पीड़िता एक असहाय नाबालिग लड़की है और अपीलकर्ता द्वारा अचानक किए गए हमले का विरोध करने में असमर्थ थी, जो एक पूर्ण विकसित व्यक्ति था। इसके अलावा, जैसे ही अपीलकर्ता ने पीड़िता में अपना लिंग पेनिट्रेट किया। उसी समय उसकी मां आ गई और वह मौके से भाग गया।"

    इस प्रकार, अदालत ने माना कि अभियोजन का मामला पूरी तरह से संदेह से परे साबित हो गया है और पीड़ित के शरीर पर चोटों के अभाव के कारण इसे असंभव नहीं बनाया जा सकता है। तद्नुसार अपील खारिज कर दी गई।

    अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट करबी राय ने किया। एडवोकेट अरानी भट्टाचार्य एमिकस क्यूरी थे। राज्य की ओर से एडवोकेट पार्थप्रतिम दास और एडवोकेट मानसी रॉय पेश हुईं।

    केस का शीर्षक: मानिक सरदार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

    केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (Cal) 46

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