'आरोपी के शरीर पर 12 साल की पीड़िता के दांतों के निशान नहीं होना, उसे बरी करने का आधार नहीं हो सकता': हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामले में दोषी की सजा बरकरार रखी

LiveLaw News Network

31 March 2022 8:20 AM GMT

  • हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने 12 साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के मामले में पॉक्सो कानून के तहत एक व्यक्ति की सजा को बरकरार रखते हुए मंगलवार को कहा कि यह जरूरी नहीं है कि 37 वर्षीय आरोपी व्यक्ति के चंगुल से खुद को छुड़ाने की कोशिश में 12 साल की बच्ची के काटने का शरीर पर चोट या दांतों के निशान पड़ सकते हैं।

    इन परिस्थितियों में, न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी के शरीर पर बाहरी चोट, दांतों के निशान की अनुपस्थिति का कोई परिणाम नहीं होगा और यह आरोपी को बरी करने का आधार नहीं हो सकता है।

    क्या है पूरा मामला?

    अनिवार्य रूप से, दोषी/अपीलकर्ता ने विशेष न्यायाधीश, कांगड़ा के निर्णय/आदेश के खिलाफ अपील की, जिसमें धर्मशाला, एच.पी. उसे POCSO अधिनियम की धारा 10 [गंभीर यौन हमले के लिए सजा] के साथ-साथ धारा 354-ए, 506, 509 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया और पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

    अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, अपीलकर्ता/दोषी ने पीड़िता को पकड़ा और उसकी पैंट की जिप खोलकर पीड़िता को अपना गुप्तांग दिखाया। पीड़िता ने अपीलकर्ता के हाथ पर दांत काट कर खुद को अपीलकर्ता के चंगुल से छुड़ा लिया और कमरे से बाहर भाग गई।

    यह घटना पीड़िता ने अपनी मौसी (बुआ) को बताई, जहां पंचायत प्रधान रजनी देवी को घटना की सूचना दी गई और इसके बाद मामले की सूचना पुलिस को दी गई, प्राथमिकी दर्ज की गई।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    पीडब्लू.1 से पीडब्लू.4 के बयानों में अभियोजन पक्ष के विश्वसनीय और ठोस साक्ष्य को ध्यान में रखते हुए और यह मानते हुए कि अन्य गवाह औपचारिक प्रकृति के हैं और जांच में उनकी भूमिका के संबंध में अभियोजन मामले की पुष्टि की, कोर्ट ने पाया कि दोषी/अपीलकर्ता के खिलाफ मामला पर्याप्त रूप से साबित हो गया है।

    इसके अलावा, दोषी को दी गई सजा के संबंध में अदालत ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत दी गई पांच साल की सजा उन सभी अपराधों में सबसे अधिक है, जिनके खिलाफ उसे दोषी ठहराया गया था।

    इसे देखते हुए, न्यायालय ने कहा कि दी गई सजा में हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत अपराध के लिए न्यूनतम निर्धारित सजा से कम सजा देने का कोई प्रावधान नहीं है। इस धारा की भाषा स्पष्ट रूप से विधायिका के इरादे को इंगित करती है कि पोक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत किसी भी स्थिति में दंडनीय अपराध के लिए न्यूनतम सजा पांच साल से कम नहीं होगी।"

    इसलिए पूरे तथ्यों और परिस्थितियों और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को ध्यान में रखते हुए सजा को कम करने की प्रार्थना को खारिज कर दिया गया।

    केस का शीर्षक - राजेश कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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