लिक्विडेटर को हटाने के लिए निर्णायक प्राधिकारी अधिकृत: NCLAT चेन्नई

Shahadat

30 Dec 2022 6:16 AM GMT

  • लिक्विडेटर को हटाने के लिए निर्णायक प्राधिकारी अधिकृत: NCLAT चेन्नई

    नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) की जस्टिस एम. वेणुगोपाल (न्यायिक सदस्य) और बरुण मित्रा (तकनीकी सदस्य) की चेन्नई बेंच ने सीए वी. वेंकट शिवकुमार बनाम आईडीबीआई बैंक लिमिटेड और अन्य मामले में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए माना कि न्यायनिर्णयन प्राधिकरण के पास लिक्विडेटर को हटाने की शक्ति है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    जेपोर शुगर कंपनी लिमिटेड (कॉर्पोरेट देनदार) आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में चीनी के निर्माण में लगी हुई है। आईडीबीआई बैंक लिमिटेड (वित्तीय लेनदार) ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 ("आईबीसी") की धारा 7 के तहत याचिका दायर की, जिसमें कॉर्पोरेट लोन के खिलाफ कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) शुरू करने की मांग की गई। निर्णायक प्राधिकरण ने 25.02.2019 को कॉर्पोरेट देनदार के खिलाफ सीआईआरपी शुरू किया। वी. वेंकट शिवकुमार (अपीलकर्ता/शिवकुमार) को अंतरिम समाधान पेशेवर के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में समाधान पेशेवर के रूप में उनकी पुष्टि की गई। 29.05.2020 को न्यायिक प्राधिकरण ने कॉर्पोरेट देनदार के लिक्विडेटर का आदेश दिया और शिवकुमार को लिक्विडेटर नियुक्त किया।

    वित्तीय लेनदार ने शिवकुमार को किसी अन्य लिक्विडेटर के साथ बदलने की मांग करते हुए न्यायनिर्णयन प्राधिकरण के समक्ष आवेदन दायर किया। यह आरोप लगाया गया कि शिवकुमार के पास संबंधित तिथि पर असाइनमेंट (एएफए) के लिए वैध प्राधिकरण नहीं है और उन्होंने तथ्यों को छुपाया।

    यह तर्क दिया गया कि आईबीबीआई (रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल) रेगुलेशन, 2016 के रेग्युलेशन 7A में यह अनिवार्य है कि कोई भी इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल 31.12.2019 के बाद कोई भी असाइनमेंट स्वीकार नहीं करेगा, जब तक कि उसके पास इस तरह के असाइनमेंट की स्वीकृति या शुरुआत की तारीख पर वैध एएफए न हो।

    शिवकुमार को 29.05.2020 को लिक्विडेटर के रूप में नियुक्त किया गया और संबंधित तिथि पर उनके पास एएफए नहीं था। न्यायनिर्णयन प्राधिकरण ने दिनांक 01.07.2020 के आदेश द्वारा शिवकुमार की जगह नए लिक्विडेटर एस. हरि कार्तिक को नियुक्त किया।

    शिवकुमार ने NCLAT के समक्ष दिनांक 01.07.2020 के आदेश को चुनौती दी।

    मुद्दा

    क्या निर्णायक प्राधिकारी लिक्विडेटर को हटा सकता है?

    NCLAT का फैसला

    खंडपीठ ने पाया कि शिवकुमार ने स्वीकार किया कि एएफए के लिए आवेदन 31.12.2019 को दायर किया गया और इसे 14.01.2020 को खारिज कर दिया गया। यह दावा नहीं किया जा सकता कि लिक्विडेटर के रूप में उनके कार्य के लिए नए एएफए जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। लिक्विडेटर के रूप में शिवकुमार के असाइनमेंट की पुष्टि 29.05.2020 को हुई, जो निर्धारित सीमा तिथि यानी 31.12.2019 से परे है। इसलिए आईबीसी के नियामक प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया।

    सुब्रत मैती बनाम अमित सी पोद्दार, कंपनी अपील (एटी) (बीमा) नंबर 1234/2022 में NCLAT के फैसले पर भरोसा किया गया, जिसमें यह कहा गया,

    "लिक्विडेटर के पास लिक्विडेटर प्रक्रिया को जारी रखने का कोई व्यक्तिगत अधिकार नहीं है और जो कारण आदेश में नोट किए गए हैं, वे लिक्विडेटर को बदलने के लिए NCLAT द्वारा निहित शक्ति का प्रयोग करने के लिए भी पर्याप्त हैं। यह हमारे अपीलीय क्षेत्राधिकार के प्रयोग में हस्तक्षेप करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं है।"

    खंडपीठ ने कहा कि किसी भी लिक्विडेटर के पास लिक्विडेटर जारी रखने का कोई व्यक्तिगत अधिकार नहीं है और न्यायनिर्णयन प्राधिकरण कानून के अनुसार पर्याप्त कारणों को दर्ज करते हुए लिक्विडेटर के प्रतिस्थापन का आदेश दे सकता है।

    खंडपीठ ने आगे कहा,

    "आगे चूंकि 'अधिनिर्णय प्राधिकरण', आई & बी संहिता, 2016 की धारा 33 और 34 के तहत 'लिक्विडेटर नियुक्त' करने की शक्ति के साथ निहित है। यह सामान्य खंड अधिनियम, 1897 की धारा 16 के आधार पर है कि 'अधिनिर्णय प्राधिकरण', जिसके पास 'लिक्विडेटर को हटाने की शक्ति भी है।

    यह देखा गया कि आईबीसी की धारा 33 और धारा 34 के साथ केस कानूनों का संयुक्त अध्ययन स्पष्ट करता है कि न्यायनिर्णयन प्राधिकरण के पास लिक्विडेटर को उन कारणों से हटाने की शक्ति भी है, जो उसे उपयुक्त, न्यायसंगत, वैध और उचित लग सकते हैं। बेंच ने एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी के आदेश को बरकरार रखा और अपील खारिज कर दी।

    केस टाइटल: सीए वी. वेंकट शिवकुमार बनाम आईडीबीआई बैंक लिमिटेड व अन्य।

    केस नंबर: कंपनी अपील (एटी) (सीएच) (इन्स.) नंबर 269/2022

    अपीलकर्ता की ओर से: वी. वेंकट शिवकुमार, पूर्व परिसमापक।

    उत्तरदाताओं के लिए वकील: अरुण कठपालिया (सीनियर एडवोकेट) वरुण श्रीनिवासन के लिए। पी. विल्सन (सीनियर एडवोकेट) एन. कलाइवानी, और जे मणिवन्नन।

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