कोई वसीयत तभी वसीयत होगी जब वह स्वर्गवासी वसीयतकर्ता की इच्छाओं को पूरा करेगी: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

13 Oct 2022 7:01 AM GMT

  • कोई वसीयत तभी वसीयत होगी जब वह स्वर्गवासी वसीयतकर्ता की इच्छाओं को पूरा करेगी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अंतिम नतीजे तक पहुंचने के लिए कोर्ट के लिए यह जरूरी है कि वह वसीयत को एक आम आदमी (लेमैन) की नजर से देखे, न कि एक कानूनविद (लॉमैन) की नजर से।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस सौरभ बनर्जी की बेंच ने कहा कि यह कोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह वसीयत में इस्तेमाल किये गये शब्दों का एक उद्देश्यपूर्ण अर्थ और उसकी भाषा की तार्किक व्याख्या करे, ताकि वसीयतकर्ता के वास्तविक इरादा का पता लगाया जा सके और उसका वर्णन किया किया जा सके।

    पीठ ने 11 अक्टूबर के अपने फैसले की शुरुआत में कहा,

    "वसीयत तभी वसीयत होगी जब यह स्वर्गवासी वसीयतकर्ता की इच्छाओं को पूरा करेगी। हम आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे ताकि स्वर्गवासी व्यक्ति की इच्छा पूरी हो सके।"

    कोर्ट ने कहा कि जहां तक संभव हो, वसीयत में सभी खंडों को एक दूसरे के साथ समान महत्व, लाभ और एकरूपता दी जानी चाहिए, न कि अलग-अलग।

    कोर्ट ने कहा,

    "वसीयत के उपबंध एक ही दिशा में नौका खेने वाले नाविकों की तरह होते हैं। प्रत्येक उपबंध का उसी तरह का एक व्यक्तिगत मूल्य होता है, जैसे प्रत्येक नाविक की एक व्यक्तिगत भूमिका होती है। इस प्रकार, एक वसीयत को सभी परिस्थितियों में सामंजस्यपूर्ण रूप से समझा जाना चाहिए।"

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि वसीयत की व्याख्या के संबंध में विवाद प्राचीन काल से कानूनी दरवाजे खटखटाते रहे हैं और हालांकि ऐसे दरवाजे कई घोषणाओं द्वारा सफलतापूर्वक बंद कर दिए गए हैं, लेकिन दुर्भाग्य से उक्त मुद्दा हमेशा ज्वलंत रहेगा, क्योंकि इसका कोई अंत नहीं हो सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि चूंकि वसीयतकर्ता के इरादे को एक अर्थ देने की मांग की जाती है कि वसीयत बनाते समय उसका क्या मतलब था, ऐसे मामलों में वसीयतकर्ता की पृष्ठभूमि, स्थिति और परिवार और समाज के साथ संबंधों सहित आसपास की परिस्थितियों को उचित महत्व दिया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसका उद्देश्य वसीयतकर्ता के वास्तविक इरादे का पता करना और व्यावहारिक रूप से यथासंभव निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए लाभार्थियों के विवादास्पद अधिकारों को पहचानना होना चाहिए। कोर्ट का काम लबादे के पीछे देखना और उससे पर्दा उठाना है।"

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि किसी वसीयत को समग्र रूप से पढ़ा जाना चाहिए। इसने आगे कहा कि किसी भी विरोधाभास, विसंगतियों या भिन्नताओं को एक-दूसरे के परिप्रेक्ष्य में समान तरीके से अलग करना होगा।

    कोर्ट ने कहा,

    "(वसीयत के) इरादे को वसीयत में इस्तेमाल किए गए शब्दों और भाषा से बिना अभिप्राय निकाले या किसी पूर्वकल्पित धारणा को चित्रित किए बिना और उनके वास्तविक शाब्दिक अर्थ को समझने के लिए वसीयत की मूल संरचना के साथ छेड़छाड़ किए बिना अनुमान लगाया जाना चाहिए। वसीयत में इस्तेमाल किये गये शब्दों को बिना किसी 'किंतु-परंतु' के शब्दकोश के अनुसार एक सामान्य, सरल और व्याकरणिक अर्थ दिया जाना चाहिए।''

    कोर्ट ने यह भी कहा कि वसीयत में कुछ उपबंध एक-दूसरे पर हावी हैं या हो सकते हैं और इसे न तो बदला जा सकता है, न ही वसीयतकर्ता से कोई स्पष्टीकरण ही मांगा जा सकता है।

    पीठ ने कहा,

    "यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस तरह के उपबंध एक दूसरे पर नहीं चढ़ते हैं ताकि उनमें से किसी एक को नकारा जा सके। यदि उपबंध असंगत हैं और एक अलग अर्थ संभव है, तो वरीयता के क्रम का पालन किया जाना चाहिए यानी, अधिक शक्तिशाली/ सार्थक उपबंध को कम सार्थक उपबंध पर वरीयता दी जाएगी।''

    कोर्ट ने यह भी कहा कि जब एक वसीयत में पूर्ण अधिकारों से संबंधित उपबंध होता है, तो उसी का पालन प्रतिबंधित अधिकारों वाले अन्य उपबंधों द्वारा नहीं किया जा सकता है। यह देखा गया कि एक पूर्ण अधिकार एक पूर्ण मान्यता है जिसे एक प्रतिबंधात्मक अधिकार के रूप में एक शर्त लगाकर नहीं बाधित किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "जहां एक उपबंध में शब्दों की एक से अधिक तरीकों से व्याख्या की जा सकती है, यह सर्वोत्तम संभव, प्रशंसनीय, रचनात्मक अर्थ चुनने और देने के लिए सभी के समग्र हित में होगा ताकि बिना किसी अवरोध के 'एक सीधी रेखा' खींची जा सके, न कि हर किसी के हित को बाधित करने के लिए। ऐसी स्थितियों में, जो अर्थ हेतुक (कॉज) को आगे बढ़ाता है, उसे चुना जाना चाहिए, न कि जो हेतुक के खिलाफ जाता है।"

    इसमें कहा गया है,

    "कोर्ट एक नायक के नक्शे कदम पर चलता है और जब हर कोई एक मधुर गीत पसंद करता है, तो यह कोर्ट का कर्तव्य है कि वह ऐसा संगीत चुनें जो आत्मा से लेकर कान तक को प्रिय हो।"

    इसके अलावा, पीठ ने कहा कि एक ही वसीयत के शब्दों और उपबंधों को संदर्भ से बाहर से चुना नहीं जाना चाहिए। इसने आगे कहा कि सभी शब्दों को आवश्यक माना जाना चाहिए, जबकि सभी उपबंधों को एक दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित किया जाना चाहिए और एक ही दस्तावेज़ के हिस्से के तौर पर एक साथ पढ़ा जाना चाहिए।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में जहां ऐसा करना संभव नहीं है, एक अधिक लाभकारी व्याख्या को अपनाया जाना चाहिए, ताकि परस्पर विरोधी स्थिति में एक अंतर लाया जा सके।

    कोर्ट ने एक वसीयत से संबंधित एक मामले में यह घोषणा करते हुए टिप्पणी की कि घर सभी चार बच्चों का होगा, जिनमें से प्रत्येक के पास संपत्ति में 25 प्रतिशत हिस्सा होगा।

    केस टाइटल : विक्रांत कपिला एवं अन्य बनाम पंकजा पांडा एवं अन्य

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