3.5 साल की बच्ची को अपने अंगों का ज्ञान नहीं, उससे निजी अंगों का सटीक विवरण देने की उम्मीद नहीं की जा सकती, आरोपी की पहचान फोटो से करें: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

24 March 2023 6:57 AM GMT

  • 3.5 साल की बच्ची को अपने अंगों का ज्ञान नहीं, उससे निजी अंगों का सटीक विवरण देने की उम्मीद नहीं की जा सकती, आरोपी की पहचान फोटो से करें: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि तीन साल के बच्चे से अपने गुप्तांगों का सटीक विवरण देने या तस्वीर के आधार पर आरोपी की पहचान करने की उम्मीद नहीं की जा सकती, बच्चों के संरक्षण यौन अपराध अधिनियम (POCSO Act) के तहत बच्चे के पड़ोसी की 10 साल की सजा को बरकरार रखा।

    जस्टिस भारती डांगरे ने पॉक्सो एक्ट की धारा 376 (2) और धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए विशेष अदालत द्वारा पड़ोसी की सजा को बरकरार रखा। उक्त धारा में पीड़ित लड़की की योनि में उंगली डालकर बलात्कार करने का प्रावधान है।

    न्यायाधीश ने देखा,

    "साढ़े तीन साल की छोटी-सी लड़की जिसे अपने अंगों का पता भी नहीं है, उससे अपने निजी अंगों का सटीक विवरण देने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, लेकिन एक्ट की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में उसने स्पष्ट रूप से कहा कि XXXX के पिता ने अपने नाखूनों से पेशाब की जगह पर उसे छुआ था।

    कोर्ट ने मेडिकल साक्ष्य और मां के बयान पर भरोसा किया कि उनकी बेटी को खून बह रहा था।

    अभियोजन पक्ष का कहना था कि 6 नवंबर 2017 को जब बच्ची अपने भाई-बहनों के साथ खेल रही थी तो आरोपी उसे अपने घर ले गया और उस पर उंगली उठाई। छोटी लड़की अपनी मां के पास दौड़ी और अपनी पैंटी उतार कर शौचालय चली गई, जहां वह पेशाब करने में असमर्थ थी और दर्द और पीड़ा में चिल्ला रही थी। पूछने पर उसने अपनी मां को बताया कि उसकी सहेली के पापा ने उंगली डाल दी है।

    जब माता-पिता बच्चे को जांच के लिए सरकारी अस्पताल ले गए तो शिकायत दर्ज कराई गई। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने पीड़िता, उसकी मां और स्त्री रोग विशेषज्ञ सहित 8 गवाहों का ट्रायल किया।

    निचली अदालत के समक्ष अपने बयान में पीड़िता ने कहा कि उसकी सहेली के पिता उनके पड़ोसी है, लेकिन आरोपी की पहचान करने में असमर्थ है।

    ट्रायल जज ने बच्चे की गवाही के बारे में कहा,

    “गवाह अगर बहुत कम उम्र का है और वो बहुत दिनों बाद जवाब दे रही है और उसने मेरे पास आकर या मेरे कान में आकर जवाब दिया। वह जवाब देते समय मेज पर रखी चीजों से खिलवाड़ कर रही है।”

    उस व्यक्ति को विशेष अदालत ने दोषी पाया और हाईकोर्ट के समक्ष उस आदेश का विरोध किया।

    अभियुक्त के लिए एडवोकेट अंजलि पाटिल द्वारा निर्देशित एडवोकेट मल्लिका शर्मा ने प्रस्तुत किया कि अभियुक्त की पहचान न होना और उसके भाई-बहनों से पूछताछ न करना अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक साबित होगा।

    हालांकि, अदालत इससे सहमत नहीं थी।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "बमुश्किल चार साल की छोटी लड़की से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह तस्वीर पर ध्यान केंद्रित करे और व्यक्ति की पहचान करे, विशेष रूप से उस उम्र का बच्चा अंतर्निहित चिंता के कारण एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम नहीं हो सकता है या बाहरी उत्तेजनाओं से विचलित होना। इस लड़की के मामले में जिस तनावपूर्ण स्थिति का वह सामना कर रही थी, वह भी इसका कारण हो सकता है।”

    अभियुक्तों द्वारा अन्य तर्क अधिनियम के स्थान में अंतर है। चाहे वह गुदा हो या "पेशाब करने का स्थान"।

    हालांकि, अदालत ने मेडिकल साक्ष्य पर भरोसा किया और कहा,

    “छोटी लड़की आगे कहती है कि वह बुरा चाचा है, गंदे अंकल है। जब उसने अदालत के सामने बयान दिया तो उसने स्पष्ट रूप से कहा कि उसके गुप्तांग में उंगली डाली गई, जिसके परिणामस्वरूप बहुत खून निकला। वह निश्चित रूप से अपनी सादगी और पवित्रता के कारण घटना का सटीक वर्णन करने की स्थिति में नहीं थी, अभी तक सांसारिक मामलों से खराब नहीं हुई।

    जस्टिस डांगरे ने अज्ञात परिच्छेद का हवाला देते हुए कहा,

    'छोटी लड़कियां आपके दिल में नाचती हैं, परी के पंखों की नोक पर घूमती हैं, सोने की धूल बिखेरती हैं और हमारे रास्ते में घूमती हैं।'

    केस टाइटल: महादेव गौर विश्वास बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य

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