आजम खान के खिलाफ 'भड़काऊ' भाषण का मामला: संज्ञान लेकर यूपी कोर्ट द्वारा पारित आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द किया

Brij Nandan

26 Jan 2023 2:41 AM GMT

  • Azam Khan

    Azam Khan

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान (Azam Khan) को आंशिक राहत देते हुए 2007 के 'भड़काऊ' और 'सांप्रदायिक' भाषण के मामले में आईपीसी की धारा 153-A के तहत अपराध का संज्ञान लेकर फिरोजाबाद कोर्ट द्वारा आदेश को रद्द कर दिया है।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध एक गंभीर अपराध है, लेकिन क़ानून ने ऐसे अपराध के लिए संज्ञान लेने पर रोक लगा दी है, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी यानी राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति न हो। जो वर्तमान मामले में प्राप्त नहीं हुआ।

    अदालत ने खान की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा,

    "जाहिर तौर पर, संज्ञान लेने से पहले कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी और इसलिए, अब तक संज्ञान लेने वाला विवादित आदेश कानून की दृष्टि से गलत है और खारिज की जाती है है।"

    हालांकि, अदालत ने राज्य सरकार के लिए यह खुला रखा है कि वह उक्त अपराध के लिए मंजूरी दे सकती है अगर वह उसके सामने रखी गई सामग्री पर उचित समझे।

    अदालत ने आगे कहा कि अगर मंजूरी दी जाती है, तो संबंधित अदालत याचिकाकर्ता के खिलाफ संज्ञान लेने के चरण से कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है।

    खान के खिलाफ 2007 में आईपीसी की धारा 188 और 153-ए के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। बता दें, जब वह फिरोजाबाद विधान निर्वाचन क्षेत्र में अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए प्रचार कर रहे थे। उस दौरान उन्होंने जनता को संबोधित किया। उन्होंने कथित रूप से एक भड़काऊ और सांप्रदायिक भाषण दिया और सीआरपीसी की धारा 144 के आदेश का उल्लंघन किया।

    मामले में चार्जशीट के साथ-साथ पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए, खान ने वर्ष 2018 में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत वर्तमान याचिका दायर की।

    उनकी ओर से पेश हुए उनके वकील इमरान उल्लाह ने तर्क दिया कि कथित सीडी (उनके कथित भाषण वाली) केस डायरी का हिस्सा नहीं है और यहां तक कि भाषण की सामग्री भी केस डायरी में नहीं निकाली गई है।

    गौरतलब है कि उन्होंने आगे तर्क दिया कि धारा 196 (1) सीआरपीसी के तहत धारा 153-ए आईपीसी के तहत राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना अपराध के लिए संज्ञान लेने के संबंध में एक विशिष्ट बार है और चूंकि, वर्तमान मामले में, संज्ञान से पहले कोई मंजूरी नहीं है। ट्रायल कोर्ट का आदेश कानून की दृष्टि से गलत है।

    दूसरी ओर, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि खान मौजूदा मामले में प्रक्रिया से बच रहे हैं। यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्राथमिकी दर्ज करने और अपराध की जांच करने या किसी अभियुक्त को गिरफ्तार करने पर कोई रोक नहीं है और बार पूर्व मंजूरी के बिना संज्ञान लेने के संबंध में था।

    यह आगे प्रस्तुत किया गया कि भले ही संज्ञान लेने के आदेश को धारा 196 (1) सीआरपीसी के तहत राज्य सरकार द्वारा कोई मंजूरी नहीं दिए जाने के आधार पर रद्द कर दिया गया हो, याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता है।

    अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए धारा 153ए का संज्ञान लेते हुए अदालत के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि राज्य सरकार से कोई पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी।

    कोर्ट ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा,

    "याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध के आरोप का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सामग्री है या नहीं, इस सवाल की प्रासंगिक समय पर जांच की जाएगी, लेकिन इस स्तर पर, यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोप का समर्थन करने के लिए कोई सामग्री नहीं है।"

    केस टाइटल - मोहम्मद आजम खां बनाम यूपी राज्य और अन्य [आवेदन U/S 482 No. - 35405 of 2018]

    केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 36

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:




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