'सत्रह साल की मुस्लिम लड़की मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवाह करने योग्य आयु प्राप्त कर लेती है' : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सुरक्षा प्रदान की

LiveLaw News Network

10 Feb 2021 2:39 PM GMT

  • P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man

    Punjab & Haryana High Court

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले महीने एक मुस्लिम लड़की (17 वर्ष) को सुरक्षा प्रदान की, जिसने एक मुस्लिम व्यक्ति (36 वर्ष) से ​​शादी की। साथ ही अदालत ने यह भी देखा कि दोनों मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवाह करने योग्य आयु में हैं।

    न्यायमूर्ति अलका सरीन की खंडपीठ मुस्लिम पति-पत्नी (याचिकाकर्ताओं) द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने 21 जनवरी 2021 को मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार शादी की थी।

    जबकि याचिकाकर्ता नंबर 1 (पति) के जन्म तारीख 01 अप्रैल 1984 है, याचिकाकर्ता नंबर 2 (पत्नी) की जन्म की तारीख 10 जनवरी 2004 है।

    सामने रखे गए तर्क

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम कानून में यौवन और वयस्कता एक है और एक ही है और एक अनुमान है कि एक व्यक्ति 15 वर्ष की आयु में वयस्कता प्राप्त करता है।

    आगे यह कहा गया कि एक मुस्लिम लड़का या मुस्लिम लड़की जो यौवन प्राप्त कर चुका/चुकी है, वह अपनी मर्ज़ी से शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं, जिसे वह पसंद करता/करती है और इसमें अभिभावक को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। यह भी तर्क दिया गया कि मुस्लिम कानून के तहत, यौवन और वयस्कता एक ही है और एक अनुमान है कि एक व्यक्ति 15 वर्ष की आयु में वयस्कता प्राप्त करता है।

    यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता को प्रतिवादी नंबर 4 से लेकर 14 तक से गंभीर खतरा है और उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, S.A.S. नगर, मोहाली (प्रतिवादी नंबर 2) के समक्ष इस संदर्भ में प्रतिनिधित्व दर्ज करवाया है, हालांकि, इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

    अंत में, यह प्रार्थना की गई कि उक्त प्रतिनिधित्व को समयबद्ध तरीके से कानून के अनुसार तय करने के लिए निर्देश जारी किए जाएं।

    कोर्ट का अवलोकन

    कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से उद्धृत निर्णयों पर ध्यान दिया और इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता, याचिकाकर्ता नंबर 2 की आयु 17 वर्ष से अधिक है।

    कोर्ट ने यह भी देखा कि यूनुस खान बनाम हरियाणा राज्य और अन्य [2014(3) RCR (Criminal) 518 के मामले में यह उल्लेख किया गया था कि किसी मुस्लिम लड़की का विवाह मुसलमानों के पर्सनल लॉ द्वारा शासित होता है।

    सर दिनेश फार्दुनिजी मुल्ला की पुस्तक 'प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ' के आर्टिकल 195 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा,

    "याचिकाकर्ता नंबर 2 की उम्र 17 वर्ष से अधिक है, वह उसकी पसंद के व्यक्ति के साथ शादी के अनुबंध में प्रवेश करने के लिए सक्षम है।"

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि सर दिनेश फार्दुनिजी मुल्ला की पुस्तक 'प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ' के आर्टिकल 195 के अनुसार, स्वस्थ्य चित का प्रत्येक मुसलमान जिसने युवावस्था प्राप्त कर ली है, विवाह के अनुबंध में प्रवेश कर सकता है और यौवन साबित न होने पर पंद्रह वर्ष की आयु पूरी होना इसके लिए साक्ष्य माना जाएगा।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "अदालत इस तथ्य पर अपनी आँखें बंद नहीं कर सकती है कि याचिकाकर्ताओं की आशंका को संबोधित करने की आवश्यकता है। केवल इसलिए कि याचिकाकर्ताओं ने अपने परिवार के सदस्यों की इच्छा के खिलाफ शादी कर ली है, वे संभवतः मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं हो सकते, क्योंकि संविधान में इसे लागू किया गया है।"

    इस प्रकार, उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर याचिका का निपटारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, एस.ए. नगर, मोहाली (प्रतिवादी नंबर 2) को दिए गए इस निर्देश के साथ किया गया कि वे दिनांक 21.01.2021 को याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए प्रतिनिधित्व पर निर्णय लें और कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करें।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि भारत में शादी की कानूनी उम्र लड़कियों के लिए 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष है। यह विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 द्वारा शासित है।

    हालांकि, मुस्लिम कानून के तहत निकाह एक अनुबंध है। मुस्लिम कानून मानता है- वयस्कों को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार है।

    वैध मुस्लिम विवाह की शर्तें हैं:

    दोनों व्यक्तिय इस्लाम धर्म मानने वाले हों।

    दोनों युवावस्था की आयु के होने चाहिए।

    एक प्रस्ताव और स्वीकृति होनी चाहिए और दो गवाह मौजूद होने चाहिए।

    मेहर तथा

    रिश्ते की निषिद्ध डिग्री की अनुपस्थिति।

    यह ध्यान रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि हादिया केस (शफीन जहां बनाम असोकन केएम। और अन्य।) में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि एक वयस्क महिला की शादी की पसंद की वैधता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।

    वर्ष 2019 में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रश्न की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी कि क्या एक मुस्लिम नाबालिग लड़की जिसे यौवन प्राप्त कर चुकी है, उसे उसकी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने की अनुमति दी जाए।

    केस का शीर्षक - शौकत हुसैन और एक अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य [CRWP No.733 of 2021 (O&M)]

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