संविदा कर्मचारी/श्रमिक प्रत्यक्ष कर्मचारी हैं या नहीं यह जानने के लिए परीक्षण क्या हैं? SC ने समझाया [आदेश पढ़ें]
Live Law Hindi
15 Jun 2019 1:55 PM IST
एक अनुबंध श्रमिक (contract labourer) एक प्रत्यक्ष कर्मचारी है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए पूर्व के निर्णयों द्वारा निर्धारित परीक्षणों को लागू करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने एक श्रम न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया है, जिसमें छंटनी किये गए श्रमिकों/कर्मचारियों (retrenched workers) को बहाल करने का निर्देश दिया गया था।
जस्टिस आर. एफ. नरीमन और विनीत सरन की पीठ भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह कहा गया था कि श्रमिक/कर्मचारी उसके प्रत्यक्ष कर्मचारी नहीं थे, बल्कि संविदा कर्मचारी या संविदा श्रमिक थे, और इसलिए वे उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम के अर्थ में "कर्मचारी/श्रमिक" नहीं थे।
अपील पर फैसला करने के लिए, पीठ ने महाप्रबंधक, (OSD), बंगाल नागपुर कॉटन मिल्स, राजनंदगांव बनाम भारत लाला एवं अन्य (2011) 1 SCC 635 में SC द्वारा निर्धारित परीक्षण को संदर्भित किया, जो इस प्रकार है:
अनुबंध श्रमिकों के मुख्य नियोक्ता (principal employer) के प्रत्यक्ष कर्मचारी/श्रमिक हैं या नहीं, यह पता लगाने के लिए 2 अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त परीक्षण हैं:
(i) क्या मुख्य नियोक्ता, ठेकेदार (contractor) के बजाय स्वयं वेतन का भुगतान करता है; तथा
(ii) क्या मुख्य नियोक्ता कर्मचारी/श्रमिक के काम को नियंत्रित और उसका पर्यवेक्षण करता है।
अनुबंध श्रम के संदर्भ में अभिव्यक्ति "नियंत्रण और पर्यवेक्षण" इस न्यायालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण भारत बनाम अंतर्राष्ट्रीय एयर कार्गो वर्कर्स यूनियन के मामले में निम्नानुसार समझाया गया था।
"यदि अनुबंध श्रम की आपूर्ति के लिए है, तो आवश्यक रूप से, ठेकेदार द्वारा आपूर्ति किया गया श्रम मुख्य नियोक्ता के निर्देशों, पर्यवेक्षण और नियंत्रण के तहत काम करेगा, लेकिन यह श्रमिक को मुख्य नियोक्ता का प्रत्यक्ष कर्मचारी नहीं बनाएगा, यदि उसके वेतन का भुगतान एक ठेकेदार द्वारा किया जाता है, अगर रोजगार को विनियमित करने का अधिकार ठेकेदार के पास है, और ठेकेदार में अंतिम पर्यवेक्षण और नियंत्रण निहित है।
मुख्य नियोक्ता केवल एक अनुबंध श्रमिक द्वारा किए जाने वाले कार्य को नियंत्रित करता है और निर्देशित करता है, जब इस तरह का श्रम आवंटित/उसे भेजा जाता है। लेकिन यह नियोक्ता के रूप में एक ठेकेदार होता है, जो यह चुनता है कि कर्मचारी/श्रमिक को प्रमुख नियोक्ता को सौंपा जाना है या अन्यथा उसका उपयोग किया जाना है। संक्षेप में, ठेकेदार के कर्मचारी/श्रमिक होने के नाते, अंतिम पर्यवेक्षण और नियंत्रण ठेकेदार में निहित होता है क्योंकि वह यह तय करता है कि कर्मचारी कहां काम करेगा और कितनी देर तक काम करेगा और किन शर्तों के अधीन होगा। केवल तब जब ठेकेदार मुख्य नियोक्ता के अंतर्गत काम करने के लिए श्रमिक को आवंटित करता/भेजता है, तो कर्मचारी/श्रमिक मुख्य नियोक्ता की देखरेख और नियंत्रण में काम करता है लेकिन यह द्वितीयक नियंत्रण है। उस कर्मचारी/श्रमिक का प्राथमिक नियंत्रण ठेकेदार के पास ही है।"
परीक्षण को लागू करते हुए, पीठ ने कहा कि श्रमिक/कर्मचारी कंपनी के प्रत्यक्ष श्रमिक/कर्मचारी नहीं थे।
यह अभिनिर्णीत किया गया कि इस मामले में परीक्षण नंबर 1 लागू नहीं होता है क्योंकि ठेकेदार, श्रमिकों/कर्मचारियों को उनके वेतन का भुगतान करता है। दूसरा, मुख्य नियोक्ता द्वारा कर्मचारी/श्रमिक के काम को नियंत्रित किया जाना एवं उसके काम का पर्यवेक्षण किया जाना केवल इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि ठेकेदार द्वारा नियोक्ता को कर्मचारी/श्रमिक आवंटित किये जाने के बाद वह ठेकेदार के श्रमिकों/कर्मचारियों को 'क्या करना है' का निर्देश देता है। मुख्य नियोक्ता का पर्यवेक्षण और नियंत्रण प्रकृति में द्वितीयक है, क्योंकि इस तरह के नियंत्रण का उपयोग केवल श्रमिक/कर्मचारी को मुख्य नियोक्ता को किसी विशेष प्रकार के कार्य को करने के लिए सौंपे जाने के बाद किया जाता है।
श्रमिकों/कर्मचारियों की ओर से यह तर्क दिया गया था कि यद्यपि कई बार उनके ठेकेदारों को बदल दिया गया था, लेकिन श्रमिक/कर्मचारी वही बने रहे। हालांकि, अदालत ने यह पाया कि इस बात का कोई सबूत नहीं था कि ठेकेदारों को अक्सर बदल दिया जाता था।
लेबर कोर्ट के निर्णय और उच्च न्यायालय के उस फैसले के अनुमोदन को "दोषपूर्ण" (perverse) करार दिया गया और रद्द कर दिया गया।