आईपीसी की धारा 498A और 306: ऐसी घटना जो पत्नी की मौत से काफ़ी पहले हुआ उसे आत्महत्या का कारण नहीं बताया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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4 May 2019 4:43 AM GMT

  • आईपीसी की धारा 498A और 306: ऐसी घटना जो पत्नी की मौत से काफ़ी पहले हुआ उसे आत्महत्या का कारण नहीं बताया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसी घटना जो मृतक की मौत से काफ़ी पहले हुआ, उसे ऐसा व्यवहार नहीं माना जा सकता जिसकी वजह से मृतक ने आत्महत्या की।

    जगदीशराज खट्टा को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498A और 306 के दोषी मानते हुए निचली अदालत के फ़ैसले को बदल दिया जिसने उसे इस मामले में बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने खट्टा को (1) मृतक के रिश्तेदारों के बयानों के आधार पर दोषी क़रार दिया जिन्होंने कहा कि रिश्तेदारों की मौजूदगी में आरोपी पति मृतक पत्नी के साथ निर्दयता से पेश आता था, और (2) अपनी मौत के आसपास मृतक पत्नी द्वारा अपने माँ-बाप को लिखा गया पत्र।

    न्यायमूर्ति एनवी रमना और एस अब्दुल नज़ीर की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि रिश्तेदारों ने जो बातें बताईं वह मृतक की मौत से काफ़ी पहले हुई थी। पीठ ने कहा,

    "हाईकोर्ट ने ख़ुद ही विरोधाभासी रूप से यह संकेत दिया कि रिश्तेदारों के बयान पर निर्भर नहीं रहा जा सकता क्योंकि वह घटना मृतक की मौत के काफ़ी पहले हुई थी और इसने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया ऐसा नहीं कहा जा सकता।"

    हाईकोर्ट ने भी यह कहा था कि ये सारी घटनाएँ आत्महत्या की घटना से पहले हुई थी और इसलिए इनके बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इन घटनाओं ने उसे आत्महत्या के लिए उकसाया।

    जहाँ तक पत्र पर भरोसा करने की बात है, पीठ ने आरोपी की इस दलील से सहमति जताई कि यह साबित नहीं हो पाया है कि यह पत्र मृतक ने लिखा था और यह काफ़ी संदिग्ध है। तथ्य यह है कि मृतक ने शादी के बाद कभी कोई पत्र नहीं लिखा था बल्कि वह फोन के माध्यम से अपने रिश्तेदारों से जुड़ी थी। इस बात ने अपीलकर्ता के मामले को और मज़बूती दी।

    पीठ ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को निरस्त कर दिया और आरोपी को बरी करने के निचली अदालत के निर्णय को बहाल कर दिया।


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