एनआई एक्ट 138 के दायर शिकायत का मामला-एग्रीमेंट टू सेल के बदले दिया गया चेक अगर होता है बाउंस तो एनआई एक्ट के दायर शिकायत है सुनवाई योग्य-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
Live Law Hindi
31 March 2019 11:56 AM IST
हालांकि यह सत्यापित है कि कुछ बेचने के लिए किए गए अनुबंध के तहत किसी अचल संपत्ति में कोई हित नहीं बनता है,न ही इससे दोनों पक्षों के बीच कोई कानूनी तौर पर लागू किए जाने वाला अनुबंध बनता है।
परंतु सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एनआई एक्ट के सेक्शन 138 के तहत दायर वह शिकायत सुनवाई योग्य है,जो एग्रीमेंट टू सेल के बदले दिए गए चेक के बाउंस होने के बाद दायर की गई है।
रिपुदमन सिंह बनाम बालकृष्णा मामले में एक दंपत्ति ने आरोपी के साथ कुछ बेचने का एग्रीमेंट किया। आरोपी ने उनको कुछ नकदी दे दी और बाकी पैसे के लिए पोस्ट डेट के दो चेक जारी कर दिए। दोनों चेक 25-25 लाख रुपए की राशि के थे। जब इनकी तारीख आने के बाद चेक बैंक में पेश किए गए तो दोनों चेक बाउंस हो गए। आरोपी को कानूनी नोटिस भेजा गया। परंतु उसने पैसा नहीं दिया। जिसके बाद एनआई एक्ट के सेक्शन 138 के तहत शिकायत दायर कर दी गई।
आरोपी ने इस शिकायत के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए शिकायत को खारिज कर दिया कि चेक किसी तरह का कानूनी दायित्व पूरा करने के लिए जारी नहीं किए गए थे,बल्कि बचे हुए पैसे देने के लिए जारी किए गए थे।
इस मामले में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डी.वाई चंद्राचूड व जस्टिस हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि यह सच है कि यह चेक एग्रीमेंट टू सेल के मामले में जारी किए गए थे। हालांकि यह सत्यापित है कि कुछ बेचने के लिए किए गए अनुबंध के तहत किसी अचल संपत्ति में कोई हित नहीं बनता है,न ही इससे दोनों पक्षों के बीच कोई कानूनी तौर पर लागू किए जाने वाला अनुबंध बनता है।
परंतु खंडपीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि-हम हाईकोर्ट के सिंगल जज द्वारा दिए गए विवरण को स्वीकार नहीं कर पा रहे है। सिंगल जज का कहना था कि यह चेक किसी तरह का कानूनी दायित्व बनाने के लिए जारी नहीं किए गए थे। सिर्फ एग्रीमेंट टू सेल के तहत बचे हुए पैसे देने के लिए जारी किए गए थे,इसलिए कानूनी तौर पर कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। यह सच है कि यह चेक एग्रीमेंट टू सेल के तहत जारी किए गए है। यह भी सत्यापित है कि कुछ बेचने के लिए किए गए अनुबंध के तहत किसी अचल संपत्ति में कोई हित नहीं बनता है,न ही इससे दोनों पक्षों के बीच कोई कानूनी तौर पर लागू किए जाने वाला अनुबंध बनता है। परंतु इस अनुबंध के तहत किए जाने वाला भुगतान एनआई एक्ट 138 के सेक्शन के तहत आने वाला वहीं भुगतान है,जिसे कानूनी पर लागू करवाया जा सकता है।