चिकित्सीय लापरवाही-दिल्ली राज्य आयोग ने कहा महिला को दिया जाए 25 लाख रुपए का मुआवजा [निर्णय पढ़े]
Live Law Hindi
9 Jun 2019 9:46 PM IST
दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग कोर्ट ने एक महिला को 25 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया है। महिला चिकित्सीय लापरवाही की शिकार हुई थी और अपने पहले बच्चे को खो दिया था। अस्पताल ने उसे गलत सलाह देते हुए कहा था कि वह टीबी की दवाईयां लेने के साथ-साथ बच्चा प्लान कर सकती है।
क्या था मामला
28 वर्षीय स्वपनिल को पीरियड के दौरान बहुत ज्यादा दर्द हुआ था। इसलिए उसने वैशाली,गाजियाबाद स्थित पुष्पांजलि हेल्थकेयर चेक करवाया था। उसके बाद का उसका जीवन यात्रा कैसी रही,वहीं जानती है।उसे उस बीमारी की हैवी डोज या दवाई दे दी गई,जो उसे कभी थी नहीं। इतना ही नहीं डाक्टर शारदा जैन ने उसके महंगे-महंगे पीएएमपी टेस्ट भी करवाए। वह डाक्टर की सलाह पर उसके निजी क्लीनिक पर भी जाती थी। उसे बताया गया था कि उसे एडोमेट्रियम टयूबरक्लोसिस यानि गर्भाशय में टीबी है। इस बीमारी के बारे में पता लगने और उसे हैवी डोज की दवाईयां देने के बाद भी डाक्टर ने उसे सलाह दे दी कि वह अपने बच्चा प्लान कर सकती है। जबकि चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इस तरह की बीमारी के साथ बच्चा प्लान करना या गर्भवती होना बहुत खतरनाक होता है।
उसके गर्भवती होने के बाद उसे कई तरह की परेशानियां शुरू हो गई और उसके कुछ टेस्ट करने के बाद डाक्टर ने पाया कि भ्रूण का विकास सही तरीके से नहीं हो रहा है। उसके बाद वह फोर्टिस लाॅ फेम्मे सेंटर फाॅर वूमन,ग्रेटर कैलाश-दो,नई दिल्ली गई,जहां उसे डाक्टर नीना सिंह के पास भेज दिया गया।
डाक्टर नीना ने शिकायकर्ता महिला को सलाह दी कि वह 15 दिन इंतजार करे और देखे कि बच्चे का विकास कैसे हो रहा है और उसके बाद उसे अल्ट्रासांउड करवाने के लिए कहा।15 दिन बाद जब उसने अल्ट्रासांउड रिपोर्ट देखी तो वह अपने बच्चे को खो चुकी थी।जिसके बाद उसे डी एंड सी यानि गर्भपात करवाने की सलाह दी गई। गर्भपात के कुछ के दिन बाद ही उसके पेट के निचले हिस्से में उसे बहुत ज्यादा दर्द शुरू हो गया। उसने अपने पारिवारिक फिजिशियन को चेक करवाया,जिसने उसे अल्ट्रासांउड करवाने की सलाह दी। उसे यह जानकर बहुत गहरा धक्का लगा कि भ्रूण का 6''18 एमएम का टुकड़ा अभी भी उसके अंदर ही था।
फोर्टिस अस्पताल इस बात के लिए राजी हो गया कि वह उसकी दूसरी सर्जरी मुफत में कर देगा और शिकायतकर्ता को लापरवाही का असली दुख झेलना पड़ा क्योंकि डाक्टर सिंह ने उसके गर्भाशय को इतना विस्तार से खरोंच दिया कि उसने उसकी एडोमेट्रियम वाॅल को नुकसान पहुंचा दिया। जिससे उसको दुर्लभी बीमारी एशरमन सिंड्रोम हो गई। इस बीमारी के कारण प्रजनन क्षमता प्रभावित हो जाती है और कई बार पूरी तरह खत्म हो जाती है।जो एक महिला के मां बनने के सपने को खत्म कर सकती है। शिकायतकर्ता एक दर से दूसरे दर भटकती रही ताकि उसे कोई उचित डाक्टर मिल जाए और इस दुर्लभी बीमारी का इलाज कर सके। काफी परेशानी उठाने के बाद उसका आप्रेशन हुआ और वह फिर से गर्भवती होने लायक बनी।
डाक्टर को केवल पैसा कमाने के लिए मरीज को गलत सलाह देने की अनुमति नहीं दी जा सकती
इस पूरी कड़ी यात्रा के बाद महिला ने दिल्ली उपभोक्ता कोर्ट में अर्जी दायर की। ज्यूडिशियल मेंबर ओपी गुप्ता ने अपने आदेश में कहा कि एक डाक्टर को सिर्फ पैसा कमाने के लिए मरीज को गलत सलाह देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उसने यह भी कहा कि एक डाक्टर से यह अपेक्षा भी नहीं की जाती है कि वह मरीज को बिना वजह डरा दे और उसके महंगे टेस्ट करवाए।
''शिकायतकर्ता महिला की टीबी के बारे में पता करने के लिए जो टेस्ट करवाए गए थे,वो बैन हो चुके है। वहीं टीबी के दौरान गर्भाधारण उचित नहीं है। इसके बावजूद भी उसे बच्चा प्लान करने की सलाह दे दी गई।''
उन्होंने यह भी कहा कि-
''गर्भाशय में बचे हुए भ्रूण के हिस्से को हटाने के मामले में ओपी-4(डाक्टर सिंह) का कार्य व आचरण अत्यंत निदंनीय है। इस प्रक्रिया में उसने गर्भाशय को इतने बड़े पैमाने पर खरोंच दिया कि इससे एडोमेट्रियम वाॅल या दीवार क्षतिग्रस्त हो गई,जिससे एशरमन सिंड्रोम नामक बहुत ही दुर्लभ बीमारी हो गई।जिससे शिकायतकर्ता को गंभीर समस्या हो गई।''
मुआवजे का आदेश
आयोग ने पाया कि डाक्टर व अस्पताल 'चिकित्सीय लापरवाही' व 'सेवाओं में कोताही' के दोषी है।इसलिए महिला को 25 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए। हालांकि उस मांग पर विचार नहीं किया गया,जिसमें डाक्टर व अस्पताल के खिलाफ पैनल कार्यवाही करने की मांग की गई थी।
शिकायतकर्ता की तरफ से वकील वर्धमान कौशिक,करन देव बाघेल व निशांत गौतम पेश हुए थे।
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