अपने अधिकारों को लेकर सोए रहने वाले किसी भी राहत के हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]
Live Law Hindi
5 May 2019 9:35 PM IST
उन लोगों को कोई राहत नहीं दी जा सकती है, जो अपने अधिकारों को लेकर सोए रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए लेबर कोर्ट और हाई कोर्ट के उन आदेशों को रद्द कर दिया जिनमें एक कर्मचारी को सेवा रिकॉर्ड में अपनी जन्मतिथि बदलने की अनुमति दी गई थी।
एक दशक के बाद जनवरी, 2014 में, उसने एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत किया कि उसकी जन्म की तारीख के अनुसार उसे 12.12.2014 को सेवानिवृत्त होना चाहिए था। नियोक्ता ने उक्त सुधार करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उसने श्रम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और उसे एक अनुकूल आदेश मिला जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा।
इस प्रकार दस वर्ष तक प्रतीक्षा करने यानी सेवानिवृत्ति की तारीख तक और फिर से प्रतिनिधित्व दर्ज करने और लेबर कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के का विकल्प उसके लिए खुला नहीं था। वह अपने अधिकार को लेकर सोया हुआ था और यह भी संदेहजनक है कि क्या उसने अपना प्रतिनिधित्व पेश किया था। यहां तक कि अगर उसने अपना प्रतिनिधित्व जमा किया है तो वह अपनी सेवानिवृत्ति के बाद जन्म की तारीख में सुधार की मांग के लिए दस वर्ष तक इंतजार नहीं कर सकता।
रिकॉर्ड के एक खंड ने यह भी संकेत दिया है कि एक बार खुद प्रतिवादी ने अपनी जन्म तिथि 01.01.1956 घोषित की थी। सेवा पुस्तिका में कोई ऐसा दस्तावेज नहीं है जो यह दर्शाता हो कि उसने कभी अपनी जन्म तिथि 01.12.1956 घोषित की है।"
उच्च न्यायालय और श्रम न्यायालय के आदेशों को रद्द करते हुए पीठ ने कहा कि इस मामले में कर्मचारी किसी भी राहत का हकदार नहीं है।