बिल्डर को ऑक्यूपैंसी प्रमाणपत्र देने में हो रही देरी का ख़ामियाज़ा उपभोक्ताओं को भुगतने नहीं दिया जा सकता : एनसीडीआरसी

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3 May 2019 3:16 PM GMT

  • बिल्डर को ऑक्यूपैंसी प्रमाणपत्र देने में हो रही देरी का ख़ामियाज़ा उपभोक्ताओं को भुगतने नहीं दिया जा सकता : एनसीडीआरसी

    राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने कहा है कि भवन निर्माण में किसी तरह की गड़बड़ी या नियम से हटने के कारण अगर बिल्डिंग में रहने के लिए प्रमाणपत्र देने में देरी होती है तो इसकी वजह से उपभोक्ता को परेशानी में नहीं डाला जा सकता।

    न्यायमूर्ति वीके जैन ने कहा कि अगर बिल्डर को अगर मकान बनाने के लिए ज़मीन के अंदर से पानी निकालने की मनाही है तो यह बिल्डर का दायित्व है कि वह मकान बनाने के लिए पानी का इंतज़ाम करे और इसके लिए भवन के ख़रीदार को परेशानी में डाला नहीं जा सकता।

    आयोग ने यह कहते हुए भवन निर्माता कम्पनी सुपरटेक लिमिटेड एक दंपति को एक करोड़ रुपया 10 प्रतिशत ब्याज की दर से वापस करने का आदेश दिया है। इस दंपति ने यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एरिया में इस बिल्डर के एक प्रोजेक्ट में 2015 में एक विला बुक कराया था। यह मकान उपभोक्ता को मार्च 2015 में मिलना था।

    जब दम्पति ने मकान नहीं मिलने पर अपना पैसा वापस माँगा तो उन्हें कहा गया कि उसे ज़मीन मिलने में देरी हुई और एनजीटी ने ज़मीन के नीचे से पानी निकालने पर भी पाबंदी लगा दी थी। और फिर किसानों और श्रमिकों के आंदोलन के कारण इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में देरी हुई।

    इस मामले के निर्णय में एनसीडीआरसी ने एसटीयूसी आवासीय ग्राहक कल्याण एसोसिएशन बनाम सुपरटेक लिमिटेड मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा किया जो इसी मामले में भवन के आवंटन से जुड़ा है।

    आयोग ने सुपरटेक की इस बात को नहीं माना कि इस भवन के लिए ज़मीन के नीचे से पानी निकालने पर एनजीटी ने कोई प्रतिबंध लगाया था। यह प्रतिबंध नोएडा और ग्रेटर नोएडा के लिए है।

    कोर्ट ने कहा कि ओपी ने मार्च 2015 में मकान का क़ब्ज़ा देने का लेटर 20 फ़रवरी 2015 को जारी किया था। एनजीटी का पानी के बारे में आदेश इससे दो साल पहले आ चुका था। इस मकान के लिए बुकिंग 12 सितम्बर 2013 को कराया गया था जो कि एनजीटी के आदेश के काफ़ी बाद में हुआ। प्लॉट के आवंटन के बारे में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश 21 अक्टूबर 2011 को पास कर दिया गया था जो कि बुकिंग से लगभग दो साल पहले हुआ था। इसलिए इनमें से कोई भी बात इस प्रोजेक्ट में देरी का कारण नहीं हो सकता है।

    कोर्ट ने कहा, "शिकायतकर्ता को ओपी की ओर से इस तरह के कार्य की सज़ा नहीं दी जा सकती है और उसे मकान के लिए अनिश्चितकाल तक के लिए प्रतीक्षा करने को नहीं कहा जा सकता। वह भी तब जब मकान का क़ब्ज़ा मिलने की तिथि से इसमें पहले ही साढ़े तीन वर्ष की देरी हो चुकी है और छूट की अवधि को शामिल किए जाने के बाद भी इतना विलम्ब हुआ है।"


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