किराया नियंत्रण कानून में तय प्रक्रिया के तहत ही निकाला जा सकता है किसी किराएदायर को-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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19 April 2019 4:32 PM GMT

  • किराया नियंत्रण कानून में तय प्रक्रिया के तहत ही निकाला जा सकता है किसी किराएदायर को-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    'किराएदार से भवन खाली करवाकर वापिस लेने के लिए लगाए गए प्रतिबंध, किराएदार के लाभ के लिए लगाए गए है,जो वैधानिक नीति संबंधी मामले है।'

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किराया नियंत्रण कानून के तहत एक वैधानिक किराएदार को दिए गए संरक्षण को सिर्फ कानून में दी गई प्रक्रिया का पालन करते हुए ही अभिभूत या काबू किया जा सकता है

    शिवदेव कौर ने एक भवन चंद्र प्रकाश सोनी को किराए पर दिया था। शिवदेव कौर को मिली रियासत के तहत उसे यह अधिकार था िकवह इस भवन या संपत्ति को किराए पर दे सके और उसका किराया वसूल सके। कौर की मौत होने के बाद उसके वारिस इस संपत्ति के मालिक बन गए। इन सभी ने किराएदार के खिलाफ केस दायर इस संपत्ति पर कब्जा दिलाए जाने की मांग की। इनका कहना था कि कौर की मौत के बाद किराएदायर अनाधिकार तौर पर घुसने वाला बन गया है। निचली अदालत ने इस केस या सूट अपना निर्णय दे दिया। दूसरी अपील में हाईकोर्ट ने केस को खारिज कर दिया।

    हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डी.वाई चंद्राचूड़ व जस्टिस हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि सोनी के पक्ष में किराएदारी बनाई गई थी,जिसने अब वैधानिक किराएदार(पूर्वी पंजाब अर्बन किराया प्रतिबंध अधिनियम 1949 की धारा 2(आई) के तहत दिए गए किराएदार शब्द की परिभाषा के तहत) का स्थान हासिल कर लिया है। इस स्थान पर अब कौर की मौत से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है।

    ऐसे में याचिकाकर्ता पहले प्रतिवादी को संपत्ति से बाहर करना चाहते है तो इसके लिए उनको उन्हीं आधार या तथ्यों का सहारा लेना होगा,जो कि कानून के तहत उनको मिले है। धारा 13 के तहत वह प्रक्रिया बताई गई है,जिसका पालन करते हुए किराएदार को बाहर निकाला जा सकता है। इसलिए नियंत्रक मामले में पेश तथ्यों के आधार पर संतुष्ट हाने के बाद ही किराएदार को संपत्ति छोड़ने का आदेश दे सकता है। एक वैध किराएदार का दिए संरक्षण पर कानून के तहत दी गई प्रक्रिया का पालन करते हुए ही काबू पाया जा सकता है या ओवरकम किया जा सकता है।

    पीठ ने आगे कहा कि किराएदार से भवन खाली करवाकर वापिस लेने के लिए लगाए गए प्रतिबंध, किराएदार के लाभ के लिए लगाए गए है,जो वैधानिक नीति संबंधी मामले है। हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए पीठ ने कहा कि-

    इस मामले में किराएदारी बनाने के काम से एक व्यक्ति को जिंदगीभर के हित का लाभ मिल गया था। यह एक ऐसी घटना थी,जिसके तहत किसी महिला ने अपने लिए इस संपत्ति से आय का जरिया बनाया था। ऐसे में किराया नियंत्रण कानून के तहत किराएदार को संपत्ति से बाहर निकालने से मिला संरक्षण कुछ विशेष परिस्थितियों या आधार को छोड़कर वैधानिक निर्देश का परिणाम बन चुका है। इसीलिए किराएदार को उस संपत्ति में रहने का हक उसकी मालकिन के मरने के बाद भी मिल गया है।इस मामले में उस वैधानिक आदेश का भी हस्तक्षेप है,जो किराएदार के लाभ के लिए दिया गया था। ऐसे में जब एक बार यह आदेश स्थापित हो जाता है तो फिर निचली अदालत के पास खुले तौर पर यह अधिकार नहीं रहता है कि वह उस केस पर विचार करे,जिसमें घर पर कब्जा वापिस लेने के लिए सिर्फ परिकल्पना के आधार पर यह कहा गया हो कि किराएदार जबरन घर में घुसा हुआ है।


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