"आप सैनिक फार्म या गोल्फ लिंक में अनधिकृत निर्माण को छूना नहीं चाहते, लेकिन जहांगीरपुरी में गरीबों को निशाना बना रहे हैं" : दुष्यंत दवे

LiveLaw News Network

21 April 2022 10:24 AM GMT

  • आप सैनिक फार्म या गोल्फ लिंक में अनधिकृत निर्माण को छूना नहीं चाहते, लेकिन जहांगीरपुरी में गरीबों को निशाना बना रहे हैं : दुष्यंत दवे

    वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि जहांगीरपुरी में अतिक्रमण विरोधी अभियान पाखंड से भरा है, क्योंकि केवल गरीबों की संपत्ति को निशाना बनाया जाता है और अमीरों और अभिजात वर्ग के अनधिकृत निर्माण के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती।

    दवे ने कहा,

    "यदि आप अनधिकृत निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई करना चाहते हैं तो आप सैनिक फार्म में जाएं। गोल्फ लिंक पर जाएं, जहां हर दूसरा घर अतिक्रमण है। आप उन्हें छूना नहीं चाहते, बल्कि गरीब लोगों को निशाना बनाना चाहते हैं।"

    वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे जहांगीरपुरी मामले में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हुए। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दंगा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा किए गए विध्वंस अभियान को चुनौती देने वाली याचिका दायर की है।

    दवे का तर्क है कि पिछले शनिवार को हनुमान जयंती समारोह के दौरान सांप्रदायिक दंगे झेलने वाले मुस्लिम बहुल जहांगीरपुरी में कार्रवाई का उद्देश्य केवल एक समुदाय को निशाना बनाना है।

    दवे ने कहा,

    "दिल्ली में लाखों लोगों के साथ 731 अनधिकृत कॉलोनियां हैं और आप एक कॉलोनी चुनते हैं, क्योंकि आप एक समुदाय को निशाना बनाते हैं!"

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि दंगों के कुछ दिनों बाद भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त को एक पत्र लिखकर आग्रह किया कि "दंगाइयों" की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाया जाए।

    दवे ने पूछा,

    "ऐसा कैसे है कि बीजेपी के अध्यक्ष नगर आयुक्त को पत्र लिखकर विध्वंस शुरू करने के लिए कहते हैं और वे उसके बाद ध्वस्त कर देते हैं?"

    दवे ने कहा,

    "पुलिस और नागरिक प्राधिकरण संविधान से बंधे हैं, न कि किसी भाजपा नेता द्वारा लिखे गए पत्रों से। उनकी इच्छा ही आदेश बन गई। यह एक राष्ट्र के रूप में हमें बताता है कि हम किस ओर जा रहे हैं।"

    दवे ने दिल्ली नगर निगम अधिनियम की धारा 343 का हवाला देते हुए कहा कि यह किसी व्यक्ति की संपत्ति को गिराए जाने से पहले उसे सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करता है। हालांकि, बिना किसी सूचना के जल्दबाजी में तोड़फोड़ की गई।

    दवे ने अपनी बात यह कहते हुए शुरू की कि यह "राष्ट्रीय महत्व" का मामला है।

    उन्होंने कहा,

    "यह मुद्दा जहांगीरपुरी तक सीमित नहीं है। यह हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने वाला मामला है। समाज के विशेष वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है। मैं इस पर डॉ. अंबेडकर और सरदार पटेल को पढ़ूंगा कि उन्होंने इस तरह की घटनाओं के बारे में कैसे बात की या उन्होंने क्या चेतावनी दी थी। अगर इसकी अनुमति दी गई तो कानून का राज नहीं बचेगा। ऐसा कैसे होता है कि भाजपा के अध्यक्ष नगर आयुक्त को पत्र लिखकर विध्वंस शुरू करने के लिए कहते हैं और वे उसके बाद ध्वस्त कर देते हैं? नगर निगम अधिनियम पहले नोटिस जारी करने और फिर अपील करने का प्रावधान करता है.. ओल्गा टेलिस मामले को देखें, जहां सुप्रीम कोर्ट ने संरक्षित किया..."

    भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह कहते हुए सबमिशन का खंडन किया कि संबंधित व्यक्तियों को नोटिस दिए गए थे। एसजी ने कहा कि अतिक्रमण हटाने के न्यायिक आदेश हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अदालत के सामने नहीं आए हैं, क्योंकि उन्हें नोटिस दिखाना होगा और इसलिए एक संगठन ने याचिका दायर की है।

    एसजी ने यह कहते हुए कि हिंदुओं की संपत्तियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है, इस तर्क का भी खंडन किया कि कार्रवाई एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और इसके जवाब में एनडीएमसी से हलफनामा मांगा। पीठ ने विध्वंस पर यथास्थिति के आदेश को अगले आदेश तक बढ़ा दिया और मामले को दो सप्ताह के बाद सूचीबद्ध कर दिया।

    Next Story