आपराधिक जांच लंबित होने के कारण किसी कर्मचारी की ग्रेच्युटी रोकना संविधान के अनुच्छेद 300A का उल्लंघन: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 Jan 2020 10:26 AM GMT

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राज्य के एक सेवानिवृत्त कर्मचारी की ग्रेच्युटी की रकम को सेवानिवृत्ति के समय केवल इस आधार पर रोकना उसके खिलाफ आपराधिक जांच विचाराधीन है, संविधान के अनुच्छेद 300 ए का उल्लंघन है।

    "एक सेवानिवृत्त कर्मचारी के पेंशन और ग्रेच्युटी प्राप्त करने के अधिकार को एक संपत्ति के रूप में मान्यता दी जाती है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के मद्देनजर कानून के जरिए ही वंचित किया जा सकता है।"

    जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा ने कहा, "पेंशन और ग्रेच्युटी को पर रोक लगाने की राज्य की शक्ति का प्रयोग कानून सम्‍मत ढंग से होना चाहिए और अगर राज्य कार्रवाई कानून सम्‍मत नहीं पाई जाती है तो ग्रेच्युटी रोकना संविधान के अनुच्छेद 300-ए का उल्लंघन होगा। इस प्रकार संवैधानिक अधिकार का उल्‍लंघन, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कोर्ट को हस्तक्षेप की इजाजत देता है।"

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य को पेंशन का एक हिस्सा, स्थायी रूप से या एक निर्दिष्ट अवधि के लिए, वापस लेने या रोक लगाने का अधिकार है, वह भी तब, जब पेंशनभोगी को विभागीय या न्यायिक कार्यवाहियों में गंभीर कदाचार का दोषी पाया जाता है या उसने नौकरी या रिटायरमेंट के बाद रि-इम्प्लॉयमेंट के दौरान कदाचार या लापरवाही से सरकार को गंभीर आर्थिक नुकसान कराया हो। शिवगोपाल बनाम यूपी व अन्य, विशेष अपील संख्या 40/2017 मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच के दिए फैसले पर कोर्ट ने भरोसा किया।

    कोर्ट ने ये टिप्‍पणी मौजूदा मामले में दायर याचिका की सुनवाई में की। राज्य ने याचिकाकर्ता की पेंशन पर रोक इस आधार पर लगाई है कि उसके खिलाफ गबन का एक आपराधिक मामला लंबित है।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पर लगे आरोप उसकी रिटायरमेंट से लगभग चार साल पहले के हैं, हालांकि मामले में चार्जशीट उसकी ‌रिटायरमेंट के चार महीने बाद दाखिल की गई थी।

    याचिकाकर्ता के सेवानिवृत्त होने की तारीख से लगभग चार साल पहले के आरोपों को खारिज कर दिया गया था, लेकिन याचिकाकर्ता के सेवानिवृत्त होने के चार महीने बाद आरोप पत्र दायर किया गया था।

    अदालत ने कहा कि चूंकि सेवानिवृत्ति के बाद चार्जशीट दायर की गई थी, इसलिए मामले में न्यायिक कार्यवाही का गठन उसी ‌दिन से माना जाएगा, जैसा कि सिविल सेवा विनियमन के अनुच्छेद 351-ए से संबंधित स्पष्टीकरण के तहत निर्धारित किया गया है।

    मामले में प्रक्रियागत अनियमितताओं और संविधान के अनुच्छेद 300 ए के उल्लंघन को देखते हुए हाईकोर्ट ने ग्रेच्युटी वापस लेने के आदेश को रद्द कर दिया।

    कोर्ट ने कहा-

    "4 साल की अवधि घटना की तारीख के बाद से चार्जशीट जमा करने के लिए अच्छी-खासी अवधि है, और राज्य या जांच एजेंसी की ओर से किसी भी अनपेक्षित या अनुचित देरी के लिए कर्मचारी को पीड़ित नहीं बनाया जा सकता है।"

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