'आखिरी सांस तक लडूंगी, मेरे बेटे के हत्यारों को सजा मिले' : 20 साल पुराने कस्टोडियल डेथ केस में 74 साल की मां की न्याय की गुहार

Brij Nandan

16 Jan 2023 10:21 AM IST

  • आखिरी सांस तक लडूंगी, मेरे बेटे के हत्यारों को सजा मिले : 20 साल पुराने कस्टोडियल डेथ केस में 74 साल की मां की न्याय की गुहार

    20 साल पहले अपने बेटे की मौत के मामले में न्याय की गुहार लगाते हुए 74 साल की मां ने एक बार फिर बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के सामने याचिका में चार पुलिस अधिकारियों के नाम आरोपी के रूप में जोड़ने की मांग की है।

    बीमार आसिया बेगम ने संवाददाता से बात करते हुए कहा,

    “एक मां को सिर्फ अपना बच्चा चाहिए, उन्हें उसे मुझे देना चाहिए। उन्होंने मेरे मासूम बेटे को मार डाला, क्या उन्हें सजा नहीं मिलनी चाहिए? वह (बच्चा) न्याय का हकदार है। मेरे बेटे बेटे के हत्यारों को सजा मिलनी चाहिए।”

    74 वर्षीय आसिया बेगम, ख्वाजा यूनुस की मां हैं, जो लगभग 27 वर्षीय था। जब वह 2003 में पुलिस की पकड़ से "गायब" हो गया था। जब मिला तो उसे जांच के लिए मुंबई से औरंगाबाद ले जाया जा रहा था। यूनुस अपनी गिरफ्तारी से पहले संयुक्त अरब अमीरात में कार्यरत सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। उसे मुंबई की घाटकोपर पुलिस ने एक बस में विस्फोट मामले में उनकी कथित संलिप्तता के लिए हिरासत में लिया था, जिसमें दो यात्रियों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे।

    शुरुआत में यूनुस के पिता ख्वाजा अयूब और बाद में मां आसिया के नेतृत्व में, पहले एक सत्र न्यायाधीश और बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि यूनुस के लापता होने की जांच हत्या के मामले के रूप में की जानी चाहिए।

    यह मामले में यूनुस के सह-आरोपी की गवाही पर आधारित था, जिसने एक जांच के दौरान एक सत्र न्यायाधीश को बताया कि यूनुस को पुलिस हिरासत में प्रताड़ित किया गया था, और एक अधिकारी द्वारा सीने पर लात मारने के बाद उसने खून की उल्टी की थी। प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि पुलिस की प्रताड़ना के कारण उसकी मौत हुई।

    7 जनवरी, 2003 को यूनुस "गायब" हो गया - और अब, उस घटना के 20 साल बाद, आसिया बेगम ने एक याचिका दायर की है जिसमें ट्रायल जज के एक आदेश को रद्द करने की मांग की गई है, जिसके द्वारा जज ने विशेष लोक अभियोजक को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत दायर आवेदन वापस लेने की अनुमति दी गई थी।

    फरवरी 2018 में पूर्व विशेष पीपी धीरज मिराजकर द्वारा दायर इस आवेदन में मामले में आरोपी के रूप में चार पुलिसकर्मियों को जोड़ने की मांग की गई थी। वे प्रफुल्ल भोसले, राजाराम वनमाने, हेमंत देसाई और अशोक खोट हैं। चार अन्य पुलिसकर्मी - जो कथित तौर पर यूनुस को जांच के लिए औरंगाबाद ले गए और फिर यह दिखाने के लिए कि वह उस दुर्घटना का लाभ उठाकर बच निकला। ये पुलिसकर्मी हैं- बर्खास्त सिपाही सचिन वाजे, राजेंद्र तिवारी, सुनील देसाई और राजाराम निकम।

    इस मामले में वाजे को 16 साल के लिए निलंबित किया गया था। 2021 में उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक पाए जाने के मामले में गिरफ्तार किए जाने के बाद ही उन्हें सेवा से बर्खास्त करने के लिए बहाल किया गया था।

    वर्तमान विशेष लोक अभियोजक प्रदीप घरात ने सीआरपीसी की धारा 319 के तहत आवेदन वापस लेने के लिए 3 अगस्त, 2022 को ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दाखिल की थी। उनके पूर्ववर्ती धीरज मिराजकर ने फरवरी 2018 में यूनुस के सह-आरोपी अब्दुल मतीन के मामले में अब तक गवाही देने वाले एकमात्र गवाह के बयान के आधार पर आवेदन दायर किया था।

    मतीन ने लगातार कहा है कि उसने प्रफुल्ल भोसले, राजाराम वनमाने, हेमंत देसाई और अशोक खोत को हिरासत में यूनुस को यातना देते देखा, जिसके दौरान देसाई ने यूनुस की छाती पर लात मारी, जिसके परिणामस्वरूप यूनुस को खून की उल्टियां हुईं।

    सत्र न्यायाधीश ने 7 सितंबर, 2022 को एक आदेश द्वारा विशेष पीपी के आवेदन को धारा 319 के आवेदन को वापस लेने की अनुमति दी।

    वकील चेतन माली के माध्यम से दायर याचिका में उल्लिखित आधार हैं:

    - सेशन जज ने आक्षेपित आदेश पारित कर घोर अन्याय और त्रुटि की है। न्यायाधीश ने जानबूझकर 6 जनवरी, 2022 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की (जिसके द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को सीआरपीसी की धारा 319 के तहत योग्यता के आधार पर आवेदन तय करने की अनुमति दी थी)

    - न्यायाधीश का कार्य न्यायिक अनुशासनहीनता के बराबर है। सत्र न्यायाधीश इस बात की सराहना करने में विफल रहे कि राज्य का सुप्रीम कोर्ट (6 जनवरी, 2022 को) के समक्ष अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व किया गया था।

    - आवेदन को वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि यह केवल आरोपितों के अलावा अन्य व्यक्ति द्वारा अपराध किए जाने के "साक्ष्य" के रूप में अदालत के नोटिस में लाया गया है। इसके बाद कोर्ट के सामने लाए गए तथ्य का संज्ञान लेने का कर्तव्य अकेले न्यायालय पर डाला गया था।

    - अदालत के पास उसके सामने प्रस्तुत किए गए सबूतों को नज़रअंदाज़ करने की कोई शक्ति नहीं है।

    - धारा 319 मामलों का न्यायोचित और निष्पक्ष अभियोजन सुनिश्चित करती है और इसलिए अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए या अन्यथा न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक होने पर कार्रवाई करना आवश्यक है।

    - जज ने यह तय करने में गलती की कि अपराध के पीड़ित का कोई अधिकार नहीं है और वह केवल विशेष पीपी के माध्यम से कार्रवाई कर सकता है।

    - न्यायाधीश इस बात की सराहना करने में विफल रहे कि वर्तमान मामले में पीड़िता का राज्य के बजाय न्याय से अधिक सरोकार रहा है।

    मामले में विशेष पीपी के रूप में नियुक्त होने वाले घराट चौथे वकील हैं, मिराजकर तीसरे थे। मामले में आरोपी के रूप में चार पुलिसकर्मियों को जोड़ने की मांग करते हुए आवेदन दायर करने के तुरंत बाद मिराजकर को मामले से हटा दिया गया था।

    आसिया बेगम ने कहा,

    “एक मां अपने बेटे के लिए लड़ने के अलावा और क्या कर सकती है? हम लड़ना चाहते हैं लेकिन अभियोजन पक्ष हमारे मामले को ठीक से हैंडल नहीं कर रहा है। राज्य हमें हमारी पसंद का अभियोजक नहीं दे रहा है। हमने धीरज मिराजकर के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्हें हटा दिया गया। उन्होंने हमसे नहीं पूछा और पीपी को बस नियुक्त कर दिया गया। अच्छा सरकारी वकील हो तो आरोपी कोर्ट में हाजिर नहीं होते। अब 20 साल हो गए हैं।”

    आसिया अस्थमा से पीड़ित हैं, और इसलिए उनका बल्ड प्रेशर कंट्रोल में नहीं रहता है।

    वो कहती हैं,

    “उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और न्याय होगा, आज नहीं तो कल। जब तक जान है तब तक लड़ूंगी।”



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