'गुजरात हाईकोर्ट में क्या हो रहा है? हम अपने आदेश पर हाईकोर्ट के पलटवार की सराहना नहीं करते': सुप्रीम कोर्ट अबॉर्शन मामले में कहा
Shahadat
21 Aug 2023 11:39 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िता की गर्भपात की मांग वाली याचिका पर आदेश पारित करने के तरीके को लेकर गुजरात हाईकोर्ट की एक बार फिर आलोचना की।
पिछले शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने 28 सप्ताह के करीब प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की महिला की याचिका पर सुनवाई के लिए विशेष सुनवाई आयोजित की।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान मामले को "कमजोर तरीके" से संभालने के लिए गुजरात हाईकोर्ट की आलोचना की।
पहले तो हाईकोर्ट ने सुनवाई 12 दिन के लिए स्थगित कर दी और बाद में सुनवाई आगे बढ़ा दी और याचिका खारिज कर दी; लेकिन 17 अगस्त को पारित बर्खास्तगी का आदेश उस तारीख को भी अपलोड नहीं किया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को उठाया। इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा, यह देखने के बाद कि हाई कोर्ट के दृष्टिकोण के कारण "मूल्यवान समय" बर्बाद हुआ।
मामले की सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शनिवार (19 अगस्त) को हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा पारित एक और आदेश के बारे में बताया गया। उक्त आदेश में हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि स्थगन का आदेश वकील को महिला से निर्देश प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए दिया गया, यदि वह बच्चे को राज्य की सुविधा के लिए देने को तैयार थी।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने हाईकोर्ट द्वारा पारित इस 'स्पष्टीकरणात्मक' आदेश पर बड़ी आपत्ति जताई।
जस्टिस नागरत्ना ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा,
"हम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर हाईकोर्ट के जवाबी हमले की सराहना नहीं करते हैं। गुजरात हाईकोर्ट में क्या हो रहा है? क्या न्यायाधीश हाईकोर्ट के आदेश पर इस तरह से जवाब देते हैं? हम इसकी सराहना नहीं करते हैं।"
जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने भी आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा कि हाईकोर्ट को 19 अगस्त को स्वत: संज्ञान लेते हुए यह आदेश पारित करने की क्या जरूरत थी।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा,
"किसी भी अदालत के किसी भी माननीय न्यायाधीश को अपने आदेश को उचित ठहराने की कोई आवश्यकता नहीं है..."।
जस्टिस भुइयां ने कहा कि हाईकोर्ट किसी बलात्कार पीड़िता पर अन्यायपूर्ण शर्त नहीं लगा सकता, जिससे उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़े।
जस्टिस भुइयां ने कहा,
"मुझे यह कहते हुए खेद है कि जो दृष्टिकोण अपनाया गया, वह संवैधानिक दर्शन के खिलाफ है? आप कैसे अन्यायपूर्ण स्थिति कायम रख सकते हैं और बलात्कार पीड़िता को गर्भधारण के लिए मजबूर कर सकते हैं?"
इस समय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत के सामने पेश हुए और खंडपीठ से अनुरोध किया कि वह हाईकोर्ट के न्यायाधीश के बारे में टिप्पणी करने से बचें, साथ ही उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को राहत दी जा सकती है।
एसजी मेहता ने अनुरोध किया,
"कुछ गलतफहमी थी। मुझे लगता है कि माई लॉर्डशिप इसे वहीं छोड़ सकती है। कृपया ध्यान न दें।"
जस्टिस नागरत्ना ने जवाब दिया,
"हम कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं? कोई भी न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पलटवार नहीं कर सकता।"
एसजी ने कहा कि आदेश स्पष्ट करने वाला प्रतीत होता है।
जस्टिस नागरत्ना ने फिर पूछा कि ऐसा आदेश पारित करने की क्या आवश्यकता थी।
मेहता ने फिर से खंडपीठ से हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा,
"वह अच्छे न्यायाधीश हैं। टिप्पणियां हतोत्साहित करने वाली हो सकती हैं।"
जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि टिप्पणियां किसी विशेष न्यायाधीश के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि जिस तरीके से निपटा गया, उस पर हैं।
शादी से बाहर गर्भधारण, विशेषकर यौन उत्पीड़न के बाद महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है
आदेश में खंडपीठ ने कहा कि जहां विवाह में गर्भधारण खुशी का अवसर होता है, वहीं विवाह के बाहर गर्भधारण खासकर यौन उत्पीड़न के बाद महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
महिला की याचिका के पक्ष में मेडिकल रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए अदालत ने उसे गर्भावस्था को समाप्त करने की प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति दी।
खंडपीठ ने कहा,
"हम अपीलकर्ता को अपनी प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति देते हैं। हम उसे आज या कल सुबह 9 बजे अस्पताल में उपस्थित होने का निर्देश देते हैं, जिससे प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सके।"
अदालत ने निर्देश दिया कि मेडिकल प्रक्रिया के बाद यदि भ्रूण जीवित पाया जाता है तो अस्पताल को भ्रूण के जीवित रहने को सुनिश्चित करने के लिए ऊष्मायन सहित सभी सुविधाएं देनी होंगी। इसके बाद राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगा कि बच्चे को कानून के अनुसार गोद लिया जाए।
हाईकोर्ट के 19 अगस्त के आदेश के संबंध में कोर्ट ने आदेश में कोई भी टिप्पणी करने से परहेज किया।
खंडपीठ ने आदेश में कहा,
''हम 19 अगस्त के हाईकोर्ट के आदेश पर कुछ भी कहने से बचते हैं।''
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने पीठ को बताया कि उसी न्यायाधीश ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता की प्रेग्नेंसी से संबंधित अन्य मामले में मनुस्मृति का इस्तेमाल किया था।
पारिख ने बलात्कार मामले की सुनवाई में डीएनए साक्ष्य के रूप में उपयोग के लिए भ्रूण के ऊतकों के संरक्षण की अनुमति देने का भी अनुरोध किया।
खंडपीठ ने कहा कि वह डॉक्टरों को केवल इस याचिका की व्यवहार्यता तलाशने का निर्देश दे सकती है।
केस टाइटल: XYZ बनाम गुजरात राज्य डायरी नंबर 33790-2023