किसी कानून निर्माता द्वारा दोषी करार दिए जाने से पहले उसी दिन डाला वोट अमान्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

19 Dec 2020 6:49 AM GMT

  • किसी कानून निर्माता द्वारा दोषी करार दिए जाने से पहले उसी दिन डाला वोट अमान्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि एक कानून निर्माता द्वारा किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने से पहले उसी दिन डाले गए वोट को अमान्य नहीं कहा जा सकता।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि दोषी ठहराए जाने से पहले ही एक विधायक/ सांसद को अयोग्य घोषित करना उसके अधिकार का" घोर उल्लंघन करता है कि जब तक कि दोषी साबित नहीं हो जाता, तब तक उसे निर्दोष माना जाएगा।"

    पीठ ने कहा कि वह "दूरगामी परिणाम का एक दिलचस्प लेकिन महत्वपूर्ण सवाल" तय कर रही है, जो था:

    "क्या राज्य सभा के लिए एक चुनाव में विधान सभा के एक सदस्य द्वारा वोट, चुनाव की तारीख पर, उसकी अयोग्यता के परिणामस्वरूप, अवैध हो जाएगा, जब उसी दिन दोपहर में एक आपराधिक न्यायालय द्वारा दोषी करार दिया और सजा सुनाई गई ? "

    तत्कालीन झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विधायक अमित कुमार महतो द्वारा 2018 के राज्यसभा चुनाव में 9.15 बजे वोट डालने के बाद 23 मार्च को अपराह्न 2.30 बजे, गैरकानूनी जमावड़े, उपद्रव आदि से संबंधित मामले में सजा सुनाई गई।

    एक मत से राज्यसभा चुनाव हारने वाले भाजपा उम्मीदवार प्रदीप कुमार सोंथालिया ने चुनाव परिणाम को यह कहते हुए चुनौती दी कि महतो के मत की गणना नहीं की जानी चाहिए क्योंकि उन्हें आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण उसी दिन अयोग्य ठहराया गया था।

    झारखंड उच्च न्यायालय ने सोंथालिया के साथ सहमति व्यक्त की कि महतो के वोट को अयोग्यता के कारण नहीं गिना जाना चाहिए था। हालांकि, उच्च न्यायालय ने सोंथालिया को विजेता घोषित करने से परहेज किया, जिसमें कहा गया था कि एकल हस्तांतरणीय वोट के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली द्वारा राज्यों की परिषद के लिए चुनाव एक अत्यधिक जटिल, तकनीकी मुद्दा है और इसलिए यह न्यायालय के लिए संभव नहीं है कि पता करें कि क्या वह चुनाव जीत सकता था, अगर वह एक वोट खारिज कर दिया गया तो।

    इस फैसले को चुनौती देते हुए सोंथालिया ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एक अन्य उम्मीदवार धीरज प्रसाद साहू ने भी उच्च न्यायालय के निष्कर्षों के साथ शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की कि महतो का वोट अवैध था।

    शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के इस मत से असहमति जताई कि मत अवैध था।

    सीजेआई एस ए बोबडे ने फैसला सुनाया,

    "यह कहना कि निर्दोषता की यह धारणा 00.01 बजे ट से लुप्त हो जाएगी, जबकि उसे 14.30 बजे दोषी करार दिया गया था जो आपराधिक न्यायशास्त्र के सबसे बुनियादी सिद्धांत के मूल जड़ पर प्रहार है।"

    फैसले में कहा गया है कि अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद दंडात्मक कानून के तहत दोषी ठहराया जाता है, इसे पूर्वकाल के एक बिंदु से प्रभाव में नहीं माना जा सकता है।

    पीठ ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (3) के तहत अयोग्यता दोषसिद्धि का परिणाम है और इसका परिणाम कभी भी कारण के पूर्व नहीं हो सकता है।

    निर्णय में कहा,

    "अधिनियम की धारा 8 (3) के तहत उत्पन्न होने वाली अयोग्यता, आपराधिक न्यायालय द्वारा लगाए गई दोषसिद्धि और सजा का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, सजा एक कारण है और अयोग्यता परिणाम है। एक परिणाम कभी भी कारण से पहले नहीं हो सकता है।"

    पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम भी शामिल थे, ने यह भी माना कि अपीलकर्ता की दलीलों को स्वीकार करने के लिए अदालत को वैधानिक योजना पर रोक लगाने की आवश्यकता होगी,जो कुछ चौंकाने वाली योजना के रूप में होगा जैसे परिणाम को कारण से पहले प्रस्तुत करना होगा।

    निर्णय में कहा,

    "यह इस प्रावधान को कम कर विसंगति पैदा करना होगा और न्यायालयों को यह रखने की आवश्यकता होगी कि एक परिणाम इसके कारण से पहले हो सकता है, लेकिन वकील के अनुसार यह प्रावधान का इच्छित प्रभाव है क्योंकि यह कहता है कि दोषीव्यक्ति को उसको दोषी ठहराए जाने की तारीख से अयोग्य घोषित किया जाएगा। लेकिन हम सहमत नहीं हैं।"

    अदालत ने कहा कि हमारे विचार से दोषी ठहराए जाने से पहले ही एक विधायक को अयोग्य घोषित करना उसके अधिकार का" घोर उल्लंघन करता है कि जब तक कि दोषी साबित नहीं हो जाता, तब तक उसे निर्दोष माना जाएगा।"

    कानूनी प्रावधानों का उल्लेख करते हुए, पीठ ने कहा कि इस तरह की अयोग्यता का परिणाम यह है कि सीट खाली हो जाती है और विधान सभा का एक सदस्य जो अयोग्य हो गया है और जिसकी सीट खाली हो गई है, उसका राज्य अपना प्रतिनिधि चुनने के लिएवोट डालने का हकदार नहीं है।

    सोंथालिया की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उस दिन का मतलब पूरे दिन था जैसा कि 1968 में पशुपति नाथ सिंह बनाम हरिहर प्रसाद सिंह के शीर्ष अदालत के फैसले में रिटर्निंग अधिकारी द्वारा जांच के दौरान नामांकन पत्रों की अस्वीकृति के मुद्दे पर था। पीठ ने कहा कि उक्त फैसला शायद ही उनके विवाद का समर्थन करता है।

    वास्तव में, पशुपति नाथ सिंह को एक दूसरी तस्वीर या इस केस के उल्टा कहा जा सकता है।इस मामले में एक घटना की शुरुआत की अवधि सवाल में है, जबकि पशुपति नाथ सिंह में निष्कर्ष की अवधि पर सवालों में थी।

    "अपीलार्थी की दलील की विडंबना यह है कि जहां भी" दिनांक "का प्रयोग किसी क़ानून में किया जाता है, उसे 00:01 बजे से संबंधित समझा जाना चाहिए। यदि हम एक ही उल्टी स्थिति में इसे लागू करते हैं, तो इसे समझा जा सकता है कि अमित कुमार महतो ने दोपहर में अपना वोट डाला और इसके बाद दोषी करार दिया गया, पराजित उम्मीदवार ने यह तर्क नहीं दिया कि मतदान को 00:01 बजे माना जाना चाहिए।

    "यदि जिस तारीख को जांच शुरू की गई और इसे उस समय माना जाता है, जब जांच की घटना को लिया गया था, तो हमें उसी तर्क से, यह मान लेना चाहिए कि किसी घटना की शुरुआत की तारीख जैसे कि सजा और अयोग्य होने की परिणाम के शुरुआत भी उसी समय से होनी चाहिए जब घटना हुई थी।

    पीठ ने निष्कर्ष निकाला,

    "इसलिए, यह संभव नहीं है कि 23.03.2018 को सुबह 9:15 बजे अमित कुमार महतो द्वारा डाले गए वोट को आपराधिक न्यायालय द्वारा उसी दिन, 2:30 बजे पारित दोषसिद्धि और सजा के आधार पर अमान्य माना जाए।"

    केस का विवरण

    केस : प्रदीप कुमार सोंथालिया बनाम धीरज प्रसाद साहू और अन्य

    पीठ: सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन

    वकील : अपीलकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और के वी विश्वनाथन; प्रतिवादी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ एएम सिंघवी।

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