"विकास दुबे का एनकाउंटर बनावटी नहीं बल्कि वास्तविक था, पुलिसकर्मियों ने अपने बचाव मेंं दुबे पर फायर किया" : यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दिया

LiveLaw News Network

17 July 2020 2:19 PM GMT

  • विकास दुबे का एनकाउंटर बनावटी नहीं बल्कि वास्तविक था, पुलिसकर्मियों ने अपने बचाव मेंं दुबे पर फायर किया : यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दिया

    Vikas Dubey Encounter Was Not Manufactured But Real, Cops Fired At Dubey In Self-Defence":UP Govt. Files Counter Before SC

    उत्तर प्रदेश सरकार ने गैंगस्टर विकास दुबे और उसके तीन सहयोगियों की कथित मुठभेड़ की सीबीआई की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिका में शीर्ष अदालत के समक्ष अपना जवाब दायर किया है।

    पुलिस महानिदेशक की ओर से दायर जवाबी हफलनामे में कहा गया है कि गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर बनावटी नहीं था, बल्कि वास्तविक था। दुबे का मकसद उन पुलिस वालों को मारना और वहांं से भागना था। जवाब में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा विकास दुबे की मुठभेड़ की आशंका "अपराधियों को बढ़ावा देने की कल्पना और अपराधियों के रक्षकों से उत्पन्न होती है।"

    उत्तर प्रदेश सरकार ने यह भी कहा कि उसने पुलिस और अन्य विभागों के साथ अभियुक्तों और उनके सहयोगियों की कथित मिलीभगत के बारे में जांच करने के लिए एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया है। इस प्रकार, अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका का प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह "दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार चल रही जांच स्वतंत्र और तटस्थ जांच" है।

    एसआईटी का नेतृत्व यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री संजय भूसरेड्डी कर रहे हैं। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री हरिराम शर्मा और डीआईजी श्री रविन्द्र गौड़ भी एसआईटी टीम का हिस्सा होंगे।

    हलफनामे में कहा गया है कि,

    "उत्तर प्रदेश राज्य इस शपथ पत्र को निम्न उद्देश्य से दाखिल कर रहा है -

    ए. इस माननीय न्यायालय को संतुष्ट करते हुए कि यहां पर परिलक्षित होने वाले वास्तविक तथ्यों से पता चलता है कि विचाराधीन घटना को कभी भी समग्रता में घटना को देखते हुए 'फर्जी मुठभेड़' नहीं कहा जा सकता।

    बी. राज्य सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाए हैं ​​कि उक्त घटना पर कोई संदेह नहीं न रहे और उसने लगातार कार्रवाई की है।

    विकास दुबे की मृत्यु के बाद होने वाली घटनाओं के क्रम को बताते हुए, सरकार ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि एसयूवी द्वारा उसे ले जाने के बाद बारजोर टोल प्लाज़ा पर बारीश शुरू हुई और "मवेशियों का झुंड अचानक दाहिनी ओर से सड़क पर दौड़ता हुआ आया और जिससे वाहन पलट गया और पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए और होश खो बैठे, इस दौरान दुबे ने एक पुलिसकर्मी से पिस्तौल छीन ली और फरार होने की कोशिश की। इसके बाद दुबे और पुलिसकर्मियों के बीच क्रॉस-फायर हुआ।

    इसके बाद, एसयूवी के पीछे लगे स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का एक वाहन मौके पर पहुंचा और दुबे ने एसटीएफ की ओर "अंधाधुंध" फायरिंग शुरू कर दी, जिसके बाद एसटीएफ के जवानों ने दुबे को "सेल्फ डिफेंस" में छह गोलियां मारीं।

    "दुबे ने नौ राउंड फायरिंग की, जिसके बाद एसपी श्री टीबी सिंह को सीने में चोट लगी लेकिन वह बुलेट प्रूफ जैकेट पहने हुए थे। एसटीएफ टीम ने गैंगस्टर विकास दुबे को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, लेकिन वह भागता रहा और फायर करता रहा। दो एसटीएफ कर्मियों घायल हुए। आत्मरक्षा में एसटीएफ टीम के सदस्यों ने विकास दुबे पर छह गोलियां चलाईं। तीन गोलियां गैंगस्टर विकास दुबे को लगीं। फिर उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। "

    हलफनामे में कुछ तथ्य भी दर्ज किए गए, जो यूपी सरकार के विचार में "गलत" रूप में पेश किए गए। हलफनामा मेंं निम्नलिखित तथ्य पेश किए। (ध्यान दें कि यह राज्य सरकार द्वारा निर्धारित तथ्यों का एक समूह है):

    1) विकास दुबे ने आत्मसमर्पण नहीं किया था। आरोपी की पहचान महाकाल मंदिर समिति के अधिकारियों द्वारा की गई, जहां से उसे उज्जैन पुलिस ने हिरासत में ले लिया, जिसकी जानकारी यूपी पुलिस के साथ साझा की गई थी।

    2) सुरक्षा और सतर्कता सुनिश्चित करने के लिए विकास दुबे को एक वाहन से दूसरे वाहन में स्थानांतरित किया जा रहा था।

    3) विकास दुबे को हथकड़ी नहीं लगाई गई क्योंकि कानपुर में अदालत में सीधे आरोपी को पेश करने के लिए 15 पुलिसकर्मी और 3 वाहन थे, उसे 24 घंटे के भीतर अदालत में पेश किया जाना था - उसे 10 जुलाई को सुबह 10 बजे तक कोर्ट में पेश करना था।

    4) किसी भी मीडिया वाहन को यूपी पुलिस ने नहीं रोका। रिपब्लिक टीवी और आजतक का वाहन तुरंत दुर्घटना स्थल पर पहुंच गया। पुलिस का दावा है कि "भारी बारिश" का एक वीडियो भी है।

    5) साइट पर स्थानीय लोगों ने दावा नहीं किया कि उन्होंने बंदूक की गोली की आवाज सुनी है और कोई गवाह नहीं है, क्योंकि घटना स्थल के पास कोई बस्ती या घर नहीं है। भारी बारिश के कारण कोई पैदल यात्री भी नहीं था।

    6) मुठभेड़ में मारे जाने से एक दिन पहले उसकी मुठभेड़ की आशंका के बारे में, हलफनामे में कहा गया है कि "यह वास्तविकता की तुलना में अपराधियों के सलाहकारों और उन्हें बचाने वालों की उर्वर कल्पना से उत्पन्न हुई है।"

    7) विकास दुबे की टांग में लोहे की छड़ का प्रत्यारोपण था, इसलिए उसके के चलने में असमर्थ होने के मुद्दे पर हलफनामे में कहा है कि दुबे "पूरी तरह से चल सकता था।

    8) 4 गोलियों की जगह 6 गोलियां चलाई गईं, यह गलत दावा किया जा रहा है। "यह पुलिस द्वारा आत्म-रक्षा में आमने-सामने से बहुत करीबी फायर हुए।

    9) आरोपी ने एसटीएफ टीम पर 9 राउंड फायरिंग की थी और वह फायरिंग करते हुए पुलिस का सामना कर रहा था। दुबे ने "चेतावनी के बाद भी आत्मसमर्पण नहीं किया और पुलिस टीम पर गोलियां बरसाना जारी रखा। केवल तीन गोली आरोपी को लगी। आत्मरक्षा के लिए आमने सामने फायर करना पड़ा। यही कारण है कि हलफनामे में कहा गया है, जब दुबे भाग रहा था तब पीठ में कोई गोली नहीं लगी थी।

    10) इस सवाल का जवाब देते हुए कि दुबे के पास कौन से रहस्य थे जो उसके और पुलिस / राजनेताओं के बीच की सांठगांठ उजागर कर सकते थे, सरकार ने बताया कि इस पर पूछताछ करने के लिए एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया है।

    11) विकास दुबे का नाम कानपुर में वांछित अपराधियों की सूची में था और उस पर 5 लाख रुपए का इनाम रखा गया था।

    12) दुबे को चार्टर्ड प्लेन पर लाने का कोई निर्णय किसी भी स्तर पर नहीं लिया गया था और केवल एसटीएफ की टीम खुफिया जानकारी और गिरफ्तारी और ग्वालियर के लिए तैनात थी।

    13) दुर्घटना स्थल पर सभी वाहनों के पर्याप्त स्किड निशान थे और नुकसान का वीडियो केस के रिकॉर्ड पर है।

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि विकास दुबे मामले में वो एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति को नियुक्त करने के लिए इच्छुक है जैसा कि पहले हैदराबाद एनकाउंटर केस में किया गया था।

    मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एन सुभाष रेड्डी और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को भी 10 जुलाई को उत्तर प्रदेश में विकास दुबे और उसके तीन सहयोगियों के कथित एनकाउंटर की सीबीआई निगरानी जांच की मांग की याचिका पर जवाब दाखिल करने का समय दिया था।

    सीजेआई ने याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय से भी कहा कि अदालत जांच को "मॉनिटर" करने के लिए इच्छुक नहीं है। यह उल्लेख करना उचित है कि शीर्ष अदालत ने हैदराबाद पुलिस मुठभेड़ की जांच के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जे वीएस सिरपुरकर के नेतृत्व में एक समिति बनाई थी।

    दरअसल गैंगस्टर विकास दुबे की मुठभेड़ से एक दिन पहले, उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उसके पांच सह-अभियुक्तों की "हत्या / कथित मुठभेड़" की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी और इसमें दुबे की संभावित हत्या पर संकेत दिया गया था।

    दुबे को मध्य प्रदेश से लाकर उत्तर प्रदेश में "उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उसकी मुठभेड़ से बचाने" की आशंका जताते हुए, दलीलों में कहा गया है कि "... इस बात की पूरी संभावना है कि आरोपी विकास दुबे भी उत्तर प्रदेश के अन्य आरोपियों की तरह मारा जाएगा, एक बार उसकी हिरासत उत्तर प्रदेश पुलिस को मिल जाती है।"

    Next Story