सीपीसी ऑर्डर-VIII नियम-6ए) मुद्दा तय हो जाने के बाद प्रतिदावे नहीं किये जा सकते : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

10 Feb 2020 11:05 AM IST

  • सीपीसी ऑर्डर-VIII नियम-6ए) मुद्दा तय हो जाने के बाद प्रतिदावे नहीं किये जा सकते : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि विवाद के मुद्दे तय हो जाने के बाद जवाबी दावा दायर नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने इस विवादित मुद्दे को उठाने वाली एक विशेष अनुमति याचिका खारिज करते हुए 'अशोक कुमार कालरा बनाम विंग कमांडर सुरेन्द्र अग्निहोत्री' मामले में पिछले वर्ष दिये गये अपने फैसले का उल्लेख किया।

    'अशोक कुमार कालरा' मामले में, कोर्ट ने कहा था कि कोई कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है और लिखित बयान के बाद से लेकर ट्रायल के मुद्दे तय होने तक प्रतिदावा दायर करने की अनुमति दे सकता है।

    न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की पीठ ने उक्त फैसले में तीन-सदस्यीय बेंच द्वारा की गयी टिप्पणियों का संज्ञान लिया :

    "फिर भी, यह प्रतिवादी को पूर्ण विलंब के साथ प्रतिदावा दायर करने का सम्पूर्ण अधिकार नहीं देता है, भले ही निर्धारित अवधि समाप्त न भी हुई हो।

    अदालत को जवाबी-दावा दायर करने के लिए बाहरी सीमा को ध्यान में रखना पड़ता है, जो मुद्दों को तय किये जाने तक सम्बद्ध है।

    ऐसे मामलों में कोर्ट के पास निम्नलिखित समावेशी कारकों को ध्यान रखने और मूल्यांकन करने के बाद प्रतिदावेदारी पर विचार करने का विशेष अधिकार है।

    ये कारक इस प्रकार हैं, जो केवल उदाहरण के लिए हैं, सम्पूर्ण नहीं :- (i) विलंब की अवधि, (ii) मांगी गयी कार्रवाई के लिए निर्धारित सीमा अवधि (iii) विलंब का कारण (iv) प्रतिवादी के अपने अधिकार दावा, (v) मुख्य मुकदमे और प्रतिवाद के बीच कार्रवाई के कारण की समानता, (vi) नये मुकदमे पर आने वाला खर्च, (vii) अन्याय एवं प्रक्रिया का उल्लंघन, (viii) दूसरे पक्ष के प्रति पूर्वाग्रह, (ix) और प्रत्येक मामले के तथ्य एवं परिस्थितियां (x) किसी भी मामले में मुद्दों के निर्धारण के बाद नहीं।"

    बेंच ने एसएलपी खारिज करते हुए कहा :

    "तथ्य यह है कि मौजूदा मामले में प्रतिदावा तब दायर किया गया था जब मुद्दों का निर्धारण हो चुका था, ऐसी स्थिति में इस फैसले में निर्धारित कानून के तहत कथित प्रतिदावा दायर नहीं किया जा सकता है।

    फलस्वरूप, विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है। हालांकि याचिकाकर्ता प्रतिदावा में दिये गये आधार को लेकर नया वाद दायर कर सकता है, यदि कानून की नजर में ऐसा करने योग्य होता है।"

    मुकदमे का ब्योरा :

    केस का नाम : अशोक कुमार कालरा बनाम विंग कमांडर सुरेन्द्र अग्निहोत्री

    केस नं. : एसएलपी (सिविल) नं 23599/2018

    कोरम : न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट

    वकील : के के त्यागी एवं वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी


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