फारूख अब्दुल्ला की रिहाई के लिए वाइको की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, क्या वे हिरासत में हैं ?

LiveLaw News Network

16 Sep 2019 9:20 AM GMT

  • फारूख अब्दुल्ला की रिहाई के लिए वाइको की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा, क्या वे हिरासत में हैं ?

    नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को नजरबंदी से रिहा करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है।

    पीठ ने केंद्र से पूछा - "क्या अब्दुल्ला हैं हिरासत में?"

    सोमवार को सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबडे और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश SG तुषार मेहता से पूछा, "क्या अब्दुल्ला हिरासत में हैं ?"

    केंद्र ने किया याचिका का विरोध; मामले की सुनवाई 30 सितंबर को

    हालांकि इस दौरान मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उन्हें सरकार से निर्देश लेने होंगे और ये याचिका अब निष्प्रभावी हो चुकी है क्योंकि 15 सितंबर को चेन्नई में एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए ये याचिका दाखिल की गई थी। लेकिन पीठ ने 1 सप्ताह में केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा है। पीठ मामले की सुनवाई 30 सितंबर को करेगी।

    वाइको ने दायर की है हैबियस कॉरपस याचिका

    दरअसल MDMK नेता और तमिलनाडु से राज्यसभा सांसद वाइको ने सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉरपस याचिका दायर की है जिसमें नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को नजरबंदी से रिहा करने की मांग की गई है।

    याचिका में कहा गया है कि तमिलनाडु के पूर्व सीएम सी. एन. अन्नादुरई के जन्मदिन के अवसर पर 15 सितंबर को चेन्नई में एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए अब्दुल्ला को निमंत्रण दिया गया था, लेकिन केंद्र सरकार जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति हटाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा राज्य के राजनीतिक नेताओं को हिरासत में लेने और कर्फ्यू लगाने के बाद 5 अगस्त से वो अनुपलब्ध है।

    याचिका में यह कहा गया है कि वाइको ने 28 अगस्त को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अब्दुल्ला को चेन्नई जाने की अनुमति देने की मांग की थी। हालांकि इस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया गया है।

    याचिका में दलील दी गई है, "उत्तरदाताओं की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध और मनमानी है और जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। साथ ही ये हिरासत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार के खिलाफ है जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की आधारशिला है।"

    याचिका में जोड़ा गया है, "उत्तरदाताओं ने जम्मू और कश्मीर राज्य में एक 'अघोषित आपातकाल' लगाया है, और पिछले 1 महीने से पूरे राज्य को तालाबंदी में रखा गया है और लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राज्य के जनप्रतिनिधियों को गिरफ्तार करके एक झटका दिया है।"

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