प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक/निजी सम्पत्तियों के नुकसान की रिकवरी संबंधी अध्यादेश को उप्र राज्यपाल की मंजूरी

LiveLaw News Network

15 March 2020 6:15 PM GMT

  • प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक/निजी सम्पत्तियों के नुकसान की रिकवरी संबंधी अध्यादेश को उप्र राज्यपाल की मंजूरी

    उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने उत्तर प्रदेश सार्वजनिक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अध्यादेश 2020 को मंजूरी दे दी है।

    रविवार को जारी अध्यादेश में राजनीतिक जुलूस, प्रदर्शन, हड़ताल, बंद, दंगों और बलवों के दौरान सरकारी एवं निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने पर उपद्रवियों से वसूली के लिए बेहद कड़े प्रावधान किए गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने गत 13 मार्च को इस अध्यादेश प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।

    राज्य सरकार ने यह फैसला लखनऊ में 19 दिसम्बर को आयोजित सीएए विरोधी प्रदर्शनों में शामिल व्यक्तियों के नाम, फोटो एवं अन्य विवरणों वाली होर्डिंग लगाये जाने के खिलाफ याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी के आलोक में किया है।

    गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया था और होर्डिंग पर इस तरह की जानकारी से उन व्यक्तियों की निजता के अधिकारों के उल्लंघन का हवाला देते हुए उन होर्डिंग को तत्काल हटाने का आदेश दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के ओदश को चुनौती दी थी, जिसके बाद शीर्ष अदालत की अवकाशकालीन खंडपीठ ने भी इस तरह के कदम को लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए राज्य सरकार से पूछा था कि आखिर उसने ऐसा किस कानून के तहत किया है? हालांकि अवकाशकालीन खंडपीठ ने इस मामले को नियमित बेंच को भेज दिया था।

    दावा याचिका

    अध्यादेश के प्रावधानों के तहत विरोध प्रदर्शनों के दौरान यदि निजी सम्पत्ति का नुकसान होता है तो उस सम्पत्ति का मालिक पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कर सकता है।

    साथ ही सार्वजनिक सम्पत्ति के हुए नुकसान के लिए जिला मजिस्ट्रेट/ पुलिस आयुक्त दावा न्यायाधिकरण के समक्ष तीन माह के भीतर दावा पेश करने के लिए आवश्यक कदम उठायेंगे। यह कदम इस तरह की घटना को लेकर दर्ज प्राथमिकी के आधार पर संबंधित पुलिस सर्किल ऑफिसर की रिपोर्ट के आधार पर उठाया जायेगा।

    दावा न्यायाधिकरण

    इसके लिए राज्य सरकार रिटायर्ड जिला जज की अध्यक्षता में क्लेम ट्रिब्यूनल बनाएगी। इसके फैसले को किसी भी अन्य न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। ट्रिब्यूनल को आरोपी की संपत्ति अटैच करने अधिकार होगा। साथ ही वह अधिकारियों को आरोपी का नाम, पता एवं फोटोग्राफ प्रचारित-प्रसारित करने का आदेश दे सकेगा कि आम लोग उसकी संपत्ति की खरीदारी न करें।

    ट्रिब्यूनल का गठन

    अध्यादेश के मुताबिक ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष के अलावा उतने सदस्य होंगे जितने सरकार निर्धारित करेगी। अध्यक्ष सेवानिवृत्त डिस्ट्रिक्ट जज से और इसका सदस्य अतिरिक्त आयुक्त से कम रैंक का अधिकारी नहीं होगा। ट्रिब्यूनल नुकसान के आकलन के लिए क्लेम कमिश्नर की तैनाती कर सकेगा।

    वह क्लेम कमिश्नर की मदद के लिए प्रत्येक जिले में एक-एक सर्वेयर भी नियुक्त कर सकता है, जो नुकसान के आकलन में तकनीकी विशेषज्ञ की भूमिका निभाएगा। क्लेम कमिश्नर को 30 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट ट्रिब्यूनल को सौंपना होगा।

    दावा न्यायाधिकरण की प्रक्रिया

    सभी दावा याचिकाएं कथित घटना की तारीख के तीन माह के भीतर ट्रिब्यूनल के समक्ष दायर कर दी जानी होंगी। उचित कारण दर्शाये जाने के बाद याचिका दायर करने में 30 दिन के विलम्ब को भी मंजूरी प्रदान की जा सकेगी।

    पक्षकारों को नोटिस, पेशी एवं फाइलिंग

    संबंधित शिकायत मिलने के बाद न्यायाधिकरण द्वारा प्रतिवादी को नोटिस जारी किया जायेगा तथा उसके साथ दावा याचिका की एक प्रति भी संलग्न की जायेगी। नोटिस में निर्दिष्ट तारीख को पेश न होने की स्थिति में एकपक्षीय आदेश जारी कर दिया जायेगा। प्रतिवादी नोटिस प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर अपना लिखित जवाब दे सकता है।

    ट्रिब्यूनल अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए किसी पार्टी को किसी वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति दे सकता है।

    ट्रिब्यूनल को दीवानी न्यायालय का पूरा अधिकार होगा और यह भू-राजस्व की तरह क्लेम वसूली का आदेश दे सकेगा। इसके पास जांच के किसी भी चरण में घटनास्थल पर जाकर जांच का अधिकार होगा।

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