दिल्ली दंगों के मामलों में दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कौन करे, इस रस्साकशी को समझिए

LiveLaw News Network

23 Jun 2020 4:05 PM GMT

  • दिल्ली दंगों के मामलों में दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कौन करे, इस रस्साकशी को समझिए

    दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों में एक भी सुनवाई ऐसी नहीं हुई है, जिसमें केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव या असहमति न हुई हो। यह असहमति हमेशा इस बात पर होती है कि दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व किसे करना चाहिए?

    जैसा कि संबंधित वकीलों ने खुद कहा है कि यह विवाद हर गुजरते मामले के साथ बद से बदत्तर होता जा रहा है। भले ही हर सुनवाई में यह टकराव सामने आ जाता है परंतु मामले की सुनवाई कर रहे जजों ने इस मामले में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।

    हालाँकि, एक अवसर पर दिल्ली हाईकोर्ट ने इस विवाद पर विशेष रूप से एक आदेश पारित किया था। अकील हुसैन बनाम जीएनसीटीडी मामले में 30 मई 2020 को दिए एक आदेश में न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने कहा था कि-

    'हम आशा करते हैं कि इस तरह के मुद्दे (दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कौन करेगा? ) का हल अन्य मामलों में भी निकाल लिया जाएगा, ताकि न्यायालय का ध्यान उसके समक्ष आए केस या विवाद को मैरिट के आधार पर निपटाने पर बना रहे,न कि इस तरह के मुद्दे पर कि दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व किसे करना चाहिए?'

    इस मामले में और इसके बाद आए अन्य सभी मामलों में दिल्ली सरकार के लिए स्थायी वकील (क्रिमिनल) श्री राहुल मेहरा ने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय कानून के अनुसार, उपराज्यपाल केवल जीएनसीटीडी के मंत्रिपरिषद की सलाह व सहायता के आधार पर ही सीआपीसी की धारा 24 (8) के तहत शक्ति विशेष का प्रयोग करते हुए स्पेशल पीपी/विशेष वकील को नियुक्त कर सकते हैं।

    साथ ही यह भी तर्क दिया गया है कि उपराज्यपाल के पास ऐसी नियुक्तियां करने के लिए कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है।

    इस तर्क के जवाब में केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने दिल्ली पुलिस के उपायुक्त को 29 मई 2020 को एक संदेश भेजा था,जिसमें बताया गया था कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों में दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक विशेष वकील के रूप में नियुक्त किया गया है।

    इसके अतिरिक्त, दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश होने वाले विशेष काउंसिल की टीम में एएसजी मनिंदर आचार्य, एएसजी अमन लेखी, स्थायी परामर्शदाता (यूओआई) अमित महाजन और एडवोकेट रजत नैयर को भी शामिल किया गया है।

    इसके बाद श्री राहुल मेहरा की तरफ से दिए जाने वाले तर्क में आमतौर पर इस तथ्य को संदर्भित किया जाता है कि दिल्ली पुलिस की ओर से इन मामलों में दायर की जाने वाली प्रत्येक स्टेटस रिपोर्ट को उनके कार्यालय के माध्यम से कोर्ट में भेजा जाना चाहिए क्योंकि वह जीएनसीटी के लिए स्थायी वकील (आपराधिक) है।

    मिस्टर मेहरा ज्यादातर मामलों में तर्क देते हैं कि 'मुझे एसजी द्वारा दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। हालाँकि, उन्हें किसी भी फाइल को मेरे कार्यालय के माध्यम से ही स्थानांतरित करना होगा। मुझे समझ में नहीं आता कि वे ऐसा क्यों नहीं करते हैं?'

    दूसरी ओर, केंद्र द्वारा निरंतर यह रुख अपनाया जाता है कि वर्तमान मामले में शामिल मुद्दा यह है कि दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व किसे करना चाहिए? परंतु जरूरी नहीं कि यह मुद्दा ,सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा ''राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) बनाम भारत के संघ व अन्य, (2018) 8 एससीसी 501'' मामले में दी गई व्याख्या के संबंध में भारत सरकार की समझ या सहमति को दर्शाता हो।

    उदाहरण के लिए, दिल्ली दंगों के लिए कथित रूप से उकसाने के आरोप में यूएपीए के तहत आरोपी बनाई गई सफूरा जरगर की जमानत के मामले में एसजी तुषार मेहता ने कहा था कि-'केंद्र ने हमें इन मामलों में दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया है क्योंकि सरकार की इन मामलों में रुचि है। दिल्ली सरकार का कोई एक स्थायी वकील केंद्र का कानूनी अधिकारी नहीं है।'

    समय-समय पर यह लंबित विवाद सामने आ जाता है। जो प्रत्येक मामले के साथ बढ़ता जा रहा है। यह विवाद दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों में अभियुक्तों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।

    उदाहरण के लिए, दिल्ली के दंगों के मामले में एक अन्य आरोपी फैसल फारूक की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान भी यह विवाद उभर कर आया था, जिससे असंतुष्ट होकर एसजी तुषार मेहता ने अदालत से अनुरोध किया था कि आदेश में से उनकी उपस्थिति को हटा दिया जाए। उक्त विवाद के कारण मामले की सुनवाई को अनुचित और अनावश्यक कारण से स्थगित करना पड़ा था।

    फैसल फारूक मामले की सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उपस्थित होने के कारण एक विवाद पैदा हो गया था क्योंकि दिल्ली सरकार के लिए स्थायी वकील (अपराध) राहुल मेहता ने इस पर आपत्ति जताई थी। इससे अंसतुष्ट होकर सॉलिसिटर जनरल ने याचिका से अपना नाम वापस ले लिया था। प्रतिनिधित्व कौन करेगा।

    इस विवाद को सुलझाने के लिए मामले की सुनवाई अपराह्न 2.30 बजे के लिए टाल दी गई थी।

    दोपहर 2.30 बजे, एएसजी अमन लेखी और राहुल मेहरा की तरफ एपीपी अमित चड्ढा उपस्थित हुए और इस मुद्दे का हल निकालने के लिए संयुक्त रूप से मामले की सुनवाई टालने का अनुरोध किया।

    सफूरा जरगर मामले की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने कहा था कि दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कौन करेगा, इस ' टग आॅफ वार या रस्साकशी' के कारण अभियुक्तों द्वारा मांगी गई राहत को खतरे में नहीं डालना चाहिए।

    इसलिए, यह न्याय के हित में जरूरी है कि इस विवाद का जल्द से जल्द न्यायिक रूप से हल निकला लिया जाना चाहिए। मामले को कालीन के नीचे दबाने या आपसी सहमति से निर्णय पर पहुंचने के लिए दोनों सरकारों पर निर्भर होने के बजाय, अदालत को इस मामले को उठाना चाहिए और इस विवाद की संवैधानिक व्याख्या करते हुए एक आदेश पारित करना चाहिए।

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