'अनिश्चितता छात्रों के मनोविज्ञान को प्रभावित कर रही है': सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई/आईसीएसई की 12वीं की परीक्षा रद्द करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

22 Jun 2021 12:00 PM GMT

  • अनिश्चितता छात्रों के मनोविज्ञान को प्रभावित कर रही है: सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई/आईसीएसई की 12वीं की परीक्षा रद्द करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह सीबीएसई और सीआईएसई बोर्ड के 12वीं की शारीरिक परीक्षा रद्द करने के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

    जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की अवकाश पीठ ने उन याचिकाओं के एक समूह को खारिज किया, जिसमें परीक्षा रद्द करने को चुनौती दी गई थी। पीठ ने कहा कि निर्णय अच्छी तरह से सूचित है और 20 लाख से अधिक छात्रों के कल्याण की रक्षा के लिए उच्चतम स्तर पर फैसला लिया गया।

    पीठ ने आदेश में कहा कि,

    "तथ्य यह है कि अन्य बोर्ड या संस्थान परीक्षा आयोजित करने में सक्षम हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे समक्ष प्रस्तुत बोर्ड भी उन निर्णयों से बंधा है। ये बोर्ड स्वतंत्र बोर्ड हैं। बोर्ड ने परीक्षाओं को रद्द करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय छात्रों के हित को ध्यान में रखकर लिया गया है।"

    कोर्ट ने यह देखते हुए सीबीएसई और आईसीएसई द्वारा तैयार की गई मूल्यांकन की योजनाओं को भी बरकरार रखा कि यह विशेषज्ञों का निर्णय है, जिस पर न्यायपालिका द्वारा अलग से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।

    पीठ ने आदेश में कहा कि,

    "सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया है और योजना के निर्माण के संबंध में निर्णय समग्र दृष्टिकोण के साथ लिया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई उम्मीदवार पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो। दूसरा अनुमान लगाना संभव नहीं है। हम बोर्ड द्वारा तैयार की गई योजना को बनाए रखेंगे जो स्वतंत्र बोर्ड हैं और वे उनके द्वारा आयोजित परीक्षाओं के संबंध में निर्णय हकदार हैं।"

    पीठ ने कहा कि सीबीएसई और आईसीएसई की योजनाओं में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि वे निष्पक्ष और उचित हैं और सभी छात्रों की चिंताओं को ध्यान में रखते हैं और यह निर्णय व्यापक जनहित में है।

    पीठ ने पार्टी-इन-पर्सन के रूप में उपस्थित हुए एक निजी स्कूल के शिक्षक अंशुल गुप्ता द्वारा किए गए सबमिशन की सराहना नहीं की, जो चाहते थे कि परीक्षा आयोजित की जाए।

    गुप्ता ने कहा कि जब अन्य प्रवेश परीक्षाएं आयोजित की जा रही हैं और छात्र आईआईटी, एनडीए और अन्य संस्थानों के लिए परीक्षाओं में शामिल होने जा रहे हैं तो कक्षा 12वीं की परीक्षा आयोजित न करने का कोई कारण नहीं है।

    न्यायमूर्ति खानविकर ने पूछा,

    "अन्य प्रवेश परीक्षाओं में उपस्थित होने वाले छात्रों की संख्या और कक्षा 12वीं में उपस्थित होने वाले छात्रों की संख्या क्या है?"

    न्यायाधीश ने गुप्ता से कहा कि,

    "अगर वे COVID19 पॉजिटिव होते हैं तो क्या आप छात्रों की जिम्मेदारी लेंगे?"

    पीठ ने गुप्ता को अपनी प्रस्तुतियां दोहराने के लिए भी डांटा।

    न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने गुप्ता से कहा कि,

    "आप एक शिक्षक हैं, जिनसे छात्र निर्देश लेते हैं। अदालत को संबोधित करने के कुछ तरीके हैं। आप इस तरह से बाधा नहीं डाल सकते।"

    न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा कि,

    "यदि बोर्ड ने उच्चतम स्तर पर निर्णय लिया है तो इसका जनहित में सम्मान किया जाना चाहिए। यह सबके हित में है। बोर्ड बच्चों के कल्याण के लिए समान रूप से चिंतित है।"

    पीठ ने कहा कि वह परीक्षाओं के आयोजन पर विभिन्न बोर्डों के निर्णयों पर फैसला नहीं करने वाली है।

    पीठ ने कहा कि परीक्षा की स्थिति को अंतिम रूप दिया जाना चाहिए क्योंकि अनिश्चितता छात्रों के मनोविज्ञान को प्रभावित कर रही है।

    पीठ ने पूछा कि,

    "क्या हमें बोर्ड के फैसले को पलट देना चाहिए और 20 लाख छात्रों को अनिश्चितता में डाल देना चाहिए?"

    यूपी अभिभावक संघ की गुहार

    यूपी पैरेंट्स एसोसिएशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने स्कूलों द्वारा छेड़छाड़ की आशंका व्यक्त की। उन्होंने यह भी कहा कि मूल्यांकन मानदंड का परिणाम उन छात्रों के पक्ष में हो सकता है जो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, अन्यथा अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों को मार्च ओवर मिल सकता है।

    पीठ ने सिंह से कहा कि अगर छात्र आंतरिक मूल्यांकन से असंतुष्ट है तो सुधार (इम्प्रोवाइजेशन परीक्षा) का एक विकल्प है।

    एडवोकेट सिंह ने जवाब में कहा कि तुरंत सुधार (इम्प्रोवाइजेशन परीक्षा) के लिए विकल्प दिया जाना चाहिए। सिंह की इस मांग पर पीठ ने अटॉर्नी जनरल से जवाब मांगा है।

    एजी जवाब में कहा कि तुरंत सुधार (इम्प्रोवाइजेशन परीक्षा) का विकल्प शुरुआत में नहीं दिया जा सकता है।

    भारत के महान्यायवादी केके वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि सुधार (इम्प्रोवाइजेशन परीक्षा) का विकल्प अभी नहीं दिया जा सकता है। यदि ऐसा कोई विकल्प दिया जाता है तो छात्रों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

    एजी ने कहा कि जहां तक छात्रों का संबंध है, यह सुझाव प्रतिकूल है। यदि उनके पास केवल एक ही विकल्प है तो यह उनके हित के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि वर्तमान पद्धति छात्रों को दो सर्वश्रेष्ठ में से एक चुनने का विकल्प दे रही है।

    एडवोकेट सिंह ने कहा कि अभिभावकों की चिंता यह है कि इम्प्रोवाइजेशन परीक्षा अगस्त-सितंबर में प्रस्तावित है और परिणाम अक्टूबर में ही आ जाएगा। साथ ही उस दौरान तीसरी लहर की भी संभावना है। इम्प्रोवाइजेशन परीक्षा में लंबा अंतराल छात्रों के भविष्य को प्रभावित करेगा क्योंकि कॉलेजों में प्रवेश इस बीच आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर शुरू हो जाएगा।

    एडवोकेट सिंह ने कहा कि अब COVID19 के मामलों में कमी हुई हैं और अब परीक्षा आसानी से हो सकती है।

    पीठ ने कहा कि सिंह के सबमिशन को स्वीकार करने का मतलब यह होगा कि छात्रों को केवल किसी एक विकल्प (आंतरिक परीक्षा और इम्प्रोवाइजेशन परीक्षा) में से किसी एक को चुनने के लिए मजबूर किया जाएगा। छात्र आंतरिक परीक्षा के परिणाम प्राप्त किए बिना सुधार का प्रयास करने का निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हो सकते हैं।

    सीबीएसई और आईसीएसई के मानदंडों में विभिन्नता

    पीठ ने एजी से सीबीएसई और आईसीएसई के मानदंडों में अंतर के बारे में पूछा। एजी ने पीठ से कहा कि आईसीएसई और सीबीएसई के मानकों में यह अंतर शुरू से ही रहा है। राज्य बोर्डों के मानदंड भी अलग हैं। एजी ने कहा कि बोर्डों के बीच पूर्ण समानता असंभव है।

    छात्रों के पिछले प्रदर्शन को क्यों लिया जा रहा है

    एजी ने आगे बताया कि तीन साल का पिछला प्रदर्शन लेने की शर्त यह सुनिश्चित करने के लिए शामिल है कि स्कूल अंकों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं कर रहे हैं। दशकों के अनुभव वाले विशेषज्ञों ने यह फैसला किया है।

    एजी ने स्कूलों द्वारा हेरफेर की आशंकाओं के संबंध में कहा कि एक रिजल्ट कमेटी परिणामों को क्रॉस-वेरिफाई करेगी।

    एजी ने कहा कि,

    "परिणामों को स्कूल के अनुसार मॉडरेट किया जाएगा, न कि छात्रों के अनुसार। ऐसी स्थिति पहली बार पैदा हो रही है और हमें छात्रों के हितों का ध्यान रखने के लिए कुछ नया करना पड़ा है। 13 विशेषज्ञों ने इस पर सहमति जताई है।"

    एजी ने यह भी दोहराया कि महामारी के बीच लिखित परीक्षा कराना सुरक्षित और विवेकपूर्ण नहीं है।

    एजी ने कहा कि,

    "कोई नहीं जानता कि परीक्षा लेने जैसी स्थिति कब बनेगी। जहां तक छात्र के जीवन का सवाल है, यह महत्वपूर्ण है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है। यदि छात्रों को परीक्षा में उपस्थित होने के लिए मजबूर जाता है और वे बीमार पड़ते हैं तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?

    नियमित और निजी/कम्पार्टमेंट छात्रों के बीच वर्गीकरण नहीं किया जा सकता

    सीबीएसई के निजी / कम्पार्टमेंट परीक्षाओं को रद्द करने की मांग करने वालों की ओर से पेश अधिवक्ता अभिषेक चौधरी ने कहा कि नियमित और निजी / कम्पार्टमेंट छात्रों के लिए अलग-अलग मापदंड नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि महामारी के जोखिम का हवाला देते हुए नियमित परीक्षाओं को रद्द करने का निर्णय लेने के बाद अब सीबीएसई अगस्त-सितंबर में निजी / कम्पार्टमेंट परीक्षा आयोजित करने की तैयारी कर रहा है।

    पीठ ने कहा कि,

    "अगर इम्प्रोवाइजेशन परीक्षा और कंपार्टमेंट परीक्षा के लिए छात्रों की संख्या कम है तो परीक्षा जल्द ही आयोजित की जा सकती है।"

    पीठ ने एजी से पूछा कि क्या कंपार्टमेंट परीक्षा पहले आयोजित की जा सकती है ताकि निजी / कम्पार्टमेंट के छात्र इस साल कॉलेज में प्रवेश से न चूकें।

    अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अनुकूल स्थिति को देखते हुए कंपार्टमेंट परीक्षा 15 अगस्त से हो सकती है।

    Next Story