ट्रायल कोर्ट उम्र कैद की सजा सुनाते हुए दोषियों को रेमिशन देने से इनकार करने का आदेश नहीं दे सकते, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

LiveLaw News Network

8 July 2021 6:02 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट उम्र कैद की सजा सुनाते हुए दोषियों को परिहार (Remission) देने से इनकार करने का आदेश नहीं दे सकते।

    ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 396 [हत्या के साथ डकैती] के तहत दोषी ठहराया और कम से कम 20 साल की अवधि के लिए बिना किसी रेमिशन के आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस आदेश को बरकरार रखा।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में आरोपी ने वी. श्रीहरन मामले में संविधान पीठ के फैसले पर भरोसा जताया और तर्क दिया कि निचली अदालतें उम्र कैद की सजा सुनाते हुए रेमिशन देने से इनकार करने का आदेश नहीं दे सकते।

    अदालत ने श्रीहरन मामले में कहा था कि,

    "ऐसे निर्दिष्ट अपराधों के लिए दंड संहिता में प्रदान की गई सजा के भीतर किसी भी संशोधित दंड के लिए दंड संहिता से प्राप्त शक्ति का प्रयोग केवल उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है और आगे की अपील की स्थिति में केवल सर्वोच्च न्यायालय और इस देश में किसी अन्य न्यायालय द्वारा नहीं।"

    कोर्ट ने आगे कहा था कि,

    "किसी भी विशिष्ट अवधि के लिए या मौत की सजा के विकल्प के रूप में दोषी के जीवन के अंत तक प्रदान करने वाली संशोधित सजा को लागू करने की शक्ति का प्रयोग केवल उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, न कि किसी अन्य निचली अदालत द्वारा। "

    जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने आंशिक रूप से अपील की अनुमति देते हुए कहा कि,

    "संविधान पीठ के फैसले के मद्देनजर 20 साल की अवधि के लिए सजा में रेमिशन से इनकार करना बरकारार रखने योग्य नहीं है। उच्च न्यायालय मामले के इस पहलू पर विचार करने में विफल रहा। इसलिए, हम अपील को केवल उस सीमा तक अनुमति देते हैं कि 20 साल की समाप्ति से पहले रेमिशन से इनकार करने की सजा को अलग रखा जाएगा। धारा 396 के तहत अपीलकर्ता की सजा में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।"

    अदालत ने कहा कि दोषियों द्वारा दायर किसी भी रेमिशन आवेदन पर कानून के अनुसार मैरिट के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।

    मामला: मनोहर @ मनु बनाम कर्नाटक राज्य [CrA 564 of 2021]

    कोरम: जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी

    वकील: अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट चिन्मय देशपांडे, एओआर अनिरुद्ध संगनेरिया, प्रतिवादियों के लिए एओआर वी.एन. रघुपति, एडवोकेट मोहम्मद अपज़ल अंसारी

    CITATION: SC 286 LL 2021

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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