ट्रांसफर्ड जज 'बार जज' या 'सर्विस जज' के ठप्पे के सा‌थ नहीं जाता, सुप्रीम कोर्ट ने रिक्तियों को वर्गीकृत करने पर महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया

Avanish Pathak

7 Jan 2023 1:37 PM IST

  • ट्रांसफर्ड जज बार जज या सर्विस जज के ठप्पे के सा‌थ नहीं जाता, सुप्रीम कोर्ट ने रिक्तियों को वर्गीकृत करने पर महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया कि जब एक जज दूसरे हाईकोर्ट से ट्रांसफर होकर आता है तो हाईकोर्ट की रिक्तियों को कैसे वर्गीकृत किया जाएगा।

    बार और सर्विस से लिए गए जजों के बीच एक अनुपात बनाए रखा जाता है। आम तौर पर हाईकोर्ट में दो तिहाई जजों को बार से पदोन्नत किया जाता है, जबकि शेष एक तिहाई जजों को जिला न्यायिक सेवा से पदोन्नत किया जाता है। इसलिए, जब एक जज दूसरे हाईकोर्ट से ट्रांसफर होकर दूसरे हाईकोर्ट में पहुंचता है तो उस जज को 'बार कोटा' में रखा जाए या 'सर्विस कोटा' में, यह भ्रम का विषय था।

    इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण देते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की खंडपीठ ने कहा कि जब एक जज को एक हाईकोर्ट से दूसरे हाईकोर्ट में ट्रांसफर किया जाता है, तो वह जज 'बार जज' या 'सर्विस जज' के लेबल के साथ नहीं जाता। जज एक ट्रांसफर्ड जज के रूप में हाईकोर्ट में जाता है और यह हाईकोर्ट के चीफ ज‌‌स्टिस पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि रिक्तियों को कैसे वर्गीकृत किया जाए।

    ज‌स्टिस कौल ने समझाया कि उपरोक्त स्पष्टीकरण आवश्यक है क्योंकि, "मंत्रालय कई बार इस धारणा के साथ पत्र जारी कर रहा है जैसे कि बार जजों को ट्रांसफर कर दिया गया है, इसलिए बार रिक्तियां खत्म हो जाएंगी। नहीं, यह इस तरह से काम नहीं करता है। वे बार या सेवा से हो सकते हैं या सेवा से, यह चीफ ज‌स्टिस पर निर्भर करता है। यह कुछ अदालतों से सिफारिशों में बाधा पैदा कर रहा है।"

    इस भ्रम को देखते हुए बेंच ने आदेश में कहा,

    "इस बात की सराहना की जानी चाहिए कि प्रत्येक हाईकोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या है। दो तिहाई जज बार से हैं और एक तिहाई जज सेवा से हैं। यदि किसी जज को अदालत से ट्रांसफर किया जाता है तो ऐसा नहीं है उस अदालत में बार या सर्विस से रिप्लेशमेंट प्रदान किया जा सकता है, क्योंकि अदालत में जजों की कुल संख्या तय है।"

    एक ट्रांसफर्ड जज की प्रकृति की ओर इशारा करते हुए बेंच ने कहा, "जब एक जज को किसी अन्य अदालत में ट्रांसफर किया जाता है तो वह ट्रांसफर्ड जज होता है- न तो बार से वर्गीकृत किया जाता है और न ही सेवा से। जिस न्यायालय में उसे ट्रांसफर किया जाता है, वह उस अदालत में जजों की संख्या में अपनी फिजिकल पोजिशन रखता है और जब तक तदनुरूप उस न्यायालय से जजों का तबादला नहीं किया जाता है, तब तक उस न्यायालय में बार/सर्विस से कम व्यक्ति नियुक्त किए जाएंगे, क्योंकि जिस न्यायालय में स्थानांतरण किया गया है उसकी कुल संख्या को पार नहीं किया जा सकता है।"

    पीठ ने आदेश में आगे कहा,

    "ट्रांसफर जज पर बार या सर्विस जज का लेबल नहीं होता है और यह कोर्ट के चीफ ज‌‌स्टिस पर निर्भर करता है कि ट्रांसफर कोर्ट में यानी बार या सेवा से आने वाले प्रवाह को कम करने के लिए उन्हें कहां ट्रांसफर किया जाता है। इसी तरह , यदि उस न्यायालय से जहां जजों को ट्रांसफर किया जाता है, बदले में अन्य श्रेणी के जजों को अन्य अदालतों में ट्रांसफर किया जाता है, तो वे बदले में एक ट्रांसफर जज का लेबल लगाएंगे, न कि बार या सेवा से। इस पहलू को स्पष्ट किया जा रहा है क्योंकि स्थानांतरण की प्रणाली कैसे संचालित होगी, इस बारे में कुछ संदेह व्यक्त किए गए प्रतीत होते हैं"।

    आदेश लिखवाने के बाद ज‌स्टिस कौल ने मौखिक रूप से आदेश की व्याख्या इस प्रकार की, "मैं स्थिति स्पष्ट कर रहा हूं। मान लीजिए, एक अदालत से 3 बार जजों को दूसरी अदालत में ट्रांसफर किया जाता है तो जिस अदालत में वे जाते हैं, वे एक ट्रांसफर जज की स्थिति में आ जाते हैं, जिसका अर्थ है कि यदि किसी जज का तबादला नहीं किया जा रहा है तो वहां तीन कम स्थानीय जज होंगे। ऐसा नहीं है कि तीन बार जजों का तबादला कर दिया जाता है, इसलिए तीन बार जज कम हो जाते हैं। नहीं। यह चीफ ज‌स्टिस पर है कि वे उन्हें बार से या सर्विस से माने। कई बार यह हो रहा है कि मंत्रालय एक अनुमान पर पत्र जारी कर रहा है जैसे कि तीन बार जजों को ट्रांसफर कर दिया गया है, तो तीन बार रिक्तियां समाप्त हो गई हैं। नहीं। यह इस तरह से काम नहीं करता है। रिक्तियां बार या सेवा से हो सकती हैं, यह है चीफ ज‌स्टिस पर छोड़ दिया गया है।"

    ज‌स्टिस कौल ने कहा कि इस भ्रम को देखते हुए रिक्तियों के संबंध में सिफारिशें करने में बाधाएं आ रही हैं। इसलिए कई हाईकोर्ट सिफारिशों में देरी कर रहे हैं। ज‌स्टिस कौल ने कहा कि स्पष्टीकरण भ्रम दूर करने के उद्देश्य से दिया जा रहा है ताकि हाईकोर्ट नामों की सिफारिश करने में देरी न करें।


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