"यह कोई मूट कोर्ट प्रतियोगिता नहीं है": सुप्रीम कोर्ट ने लॉ स्टूडेंट को तुच्छ याचिका दायर करने पर फटकार लगाई

LiveLaw News Network

3 Dec 2021 10:44 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के दायरे को सही मायने में समझे बिना अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए याचिकाकर्ता को नसीहत देने के बाद अंतिम वर्ष के कानून के छात्र द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज किया।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने नागरिक के मतदान के अधिकार के उल्लंघन से संबंधित याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार करने पर नाराजगी व्यक्त की।

    कोर्ट ने सबमिशन में जाने से पहले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के दायरे और मौलिक अधिकार के उल्लंघन के बारे में पूछताछ की, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता राहत की मांग कर रहा था।

    याचिकाकर्ता ने अदालत को अवगत कराया कि वह लॉ के अंतिम वर्ष का छात्र है।

    पीठ ने उससे पूछा,

    "अनुच्छेद 32 का दायरा क्या है?"

    याचिकाकर्ता ने जवाब दिया,

    "यौर लॉर्डशिप, अनुच्छेद 32 रिट याचिका के लिए है और सुप्रीम कोर्ट का मूल अधिकार क्षेत्र है।"

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता से संविधान के अनुच्छेद 32 को पढ़ने को कहा।

    याचिकाकर्ता ने जवाब दिया,

    "यौर लॉर्डशिप, क्षमा करें, मेरे पास अभी पढ़ने के लिए संविधान की कॉपी नहीं है?"

    बेंच ने पूछा,

    "आपको यह रिट याचिका दायर करने की सलाह किसने दी?"

    याचिकाकर्ता ने अदालत को सूचित किया कि उसने शोध किया और इसके बाद रिट याचिका दायर की और किसी ने उसे इसे दायर करने की सलाह नहीं दी।

    बेंच ने टिप्पणी की,

    "यदि आप 32 के दायरे को नहीं जानते हैं तो आपने क्या शोध किया है?"

    बेंच ने आगे पूछा,

    "मूल अधिकार क्या है जिसका उल्लंघन किया गया है?"

    इस पर याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि रिट आम नागरिकों, मतदाताओं के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को संबोधित करती है।

    बेंच ने पूछा,

    "देश के नागरिकों के मौलिक अधिकार क्या हैं जिनका उल्लंघन किया गया है।"

    याचिकाकर्ता ने जवाब दिया,

    "मतदान का अधिकार।"

    बेंच ने टिप्पणी की,

    "आप कहते हैं, मतदान का अधिकार एक मौलिक अधिकार है? यह आपने कहां से पढ़ा?"

    याचिकाकर्ता ने एक अलग लाइन पर बहस करने की कोशिश करते हुए प्रस्तुत किया ,

    "इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के 2010 के जनहित याचिका के दिशानिर्देशों में भी यह उल्लेख किया गया है कि अगर चुनाव आयोग के संबंध में भी कोई उल्लंघन होता है, तो जनहित याचिका सुनवाई योग्य है।"

    बेंच ने कहा,

    "आपने कहा कि नागरिकों के अधिकारों का हनन हुआ है। आपने कहा कि मतदान का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। आप यह कहां पढ़ा?"

    कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 32 याचिका पर केवल तभी विचार किया जा सकता है जब कोई मौलिक अधिकार उल्लंघन हो।

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता से प्रश्न किया,

    "अगर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है, तो हम इस याचिका पर विचार क्यों करें?"

    याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका और परमादेश के दायरे को स्पष्ट करते हुए जवाब दिया,

    "मूल रूप से यह याचिका जनहित याचिका और परमादेश के लिए बनाई गई थी। परमादेश में ऐसे निर्देश शामिल हैं, जहां सर्वोच्च न्यायालय के पास सरकारी निकायों को निर्देशित करने की शक्ति है और प्रतिवादी संख्या 1 और 2 सरकारी निकाय हैं।"

    याचिकाकर्ता को अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करने के लिए फटकार लगाते हुए, जो वास्तव में मौलिक अधिकार के उल्लंघन से संबंधित नहीं है, बेंच ने कहा,

    "आपको याद रखना चाहिए, यह एक मूट कोर्ट प्रतियोगिता नहीं है। आपने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है। आप एक छात्र हैं, अन्यथा हम इस तरह की रिट याचिका के लिए एक बड़ा जुर्माना लगाते। कृपया अपने पर ध्यान दें , पढ़ाई करो, लॉ पास करो और फिर एक अच्छे वकील बनो। तुम सिर्फ रिट याचिका दायर करना चाहते हो क्योंकि तुम्हारा नाम अखबारों में आएगा? ऐसा मत करो। यह याचिका खारिज की जाती है।"

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