तब्लीगी जमात के सदस्य ऐसी गतिविधियों में शामिल थे, जिससे COVID-19 फैलने की आशंका हो, यह साबित करने के लिए कोई सामग्री नहीं हैः बॉम्बे हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
24 Sept 2020 4:12 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) ने सोमवार (21 सितंबर) को 8 म्यांमार नागरिकों, जिनके खिलाफ तब्लीगी गतिविधियों के लिए एफआईआर दर्ज हुई थी, के खिलाफ दायर एफआईआर और चार्जशीट को रद्द कर दिया और कहा कि "अभियोजन को जारी रखने की अनुमति देने से कुछ भी नहीं होगा बल्कि न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, विशेष रूप से विदेशियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों के समर्थन में साक्ष्यों की कमी के कारण।"
जस्टिस वीएम देशपांडे और जस्टिस अमित बी बोरकर की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, "यह भी विवादित नहीं है कि उन्हें डॉ ख़वाज़, एनएमसी जोनल अधिकारी, मोमिनपुरा, नागपुर की देखरेख में 24.03.2020 से 31.03.2020 तक अलग-थलग रखा गया था। यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि आवेदक किसी भी ऐसे कार्य में लिप्त थे, जिससे COVID -19 का संक्रमण फैलने की आशंका थी।"
अपने आदेश में गवाहों के बयानों के आधार पर उन्होंने नोट किया 8 म्यांमार नागरिकों ने केवल कुरान पढ़ी और स्थानीय मस्जिद में नमाज अदा की। अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि वे हिंदी भी नहीं जानते हैं और इसलिए, किसी भी धार्मिक प्रवचन या भाषण में शामिल कोई सवाल नहीं हो सकता है।
आवेदकों की ओर से पेश किए गए तथ्य
आवेदक म्यांमार के नागरिक हैं, जिन्होंने कोलकाता एयरपोर्ट से भारत आने और भारत में धार्मिक सेमिनारों में भाग लेने के लिए टूरिस्ट वीजा प्राप्त किया था। वे 02.03.2020 को भारत आए। 02.03.2020 को ही, आवेदकों ने दिल्ली के लिए उड़ान भरी और 05.03.2020 तक दिल्ली में रहे।
06.03.2020 को, आवेदक 11 बजे नागपुर पहुंचे। 08.03.2020 को, विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय के तहत ऑनलाइन सी-फॉर्म तैयार किया गया था और इसकी हार्ड कॉपी 09.03.2020 को मुस्लिम सेल, विशेष शाखा, पुलिस नियंत्रण कक्ष, नागपुर, एफआरआरओ और राज्य खुफिया विभाग, नागपुर को प्रस्तुत की गई थी।
11.03.2020 को आवेदकों की गतिविधियों की पूरी अनुसूची पुलिस स्टेशन, गिट्टीखदान को दी गई थी। वे 21.03.2020 तक पुलिस स्टेशन, गिट्टीखदान के अधिकार क्षेत्र में रहे।
भारत सरकार ने 22.03.2020 को जनता कर्फ्यू को आह्वान किया। 22.03.2020 को सुबह 06.30 बजे आवेदकों को पुलिस स्टेशन, तहसील के अधिकार क्षेत्र के भीतर मोमिनपुरा, नागपुर के मर्क़ज़ सेंटर में स्थानांतरित कर दिया गया था और उस आशय की जानकारी पुलिस स्टेशन को प्रदान की गई थी, लेकिन जनता कर्फ्यू के कारण पावती नहीं दी गई।
पुलिस स्टेशन, तहसील ने आवेदकों को सूचित किया कि उन्हें मोमिनपुरा के मर्क़ज़ सेंटर में अलग-थलग रहना चाहिए और महिलाओं को भांखेड में एक निजी आवास में रखा गया। 24.03.2020 से 31.03.2020 तक प्रवास की अवधि में डॉ ख्वाजा, एनएमसी जोनल अधिकारी, मोमिनपुरा ने अपनी टीम और पुलिस के साथ आवेदकों से मुलाकात की।
03.04.2020 को, लगभग 03.30 बजे सभी आवेदकों को एमएलए हॉस्टल, सिविल लाइंस, नागपुर में संस्थागत क्वारंटाइन के लिए भेजा गया और सभी आवेदकों का COVID-19 परीक्षण किया गया, जो नकारात्मक निकला।
05.04.2020 को, आवेदकों को सूचित किया गया कि उनके खिलाफ विदेशी अधिनियम और महामारी रोग अधिनियम, 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।
संस्थागत क्वारंटाइन की अवधि के दरम्यान ही आवेदकों को औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया गया। गैर-आवेदक/राज्य ने इसके बाद जांच की और भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 269, 270, विदेश अधिनियम की धारा 14, महामारी रोग अधिनियम, 1987 की धारा 3 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के धारा 51 के तहत चार्जशीट फाइल की गई, इसलिए, आवेदनों ने वर्तमान आवेदन दायर किया है।
यह प्रस्तुत किया गया कि क्वारंटाइन अवधि के दौरान, आवेदकों का COVID-19 का परीक्षण किया गया था और वे नकारात्मक पाए गए थे। इसलिए, संक्रमण फैलाने का कोई सवाल ही नहीं उठता, जैसा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 269 और 270 में कहा गया है।
आगे कहा गया कि टूरिस्ट वीजा की शर्तों के तहत भारत में धार्मिक समारोहों में भाग लेने के लिए विदेशियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है और इसलिए, फॉरेनर्स एक्ट की धारा 14 का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
अदालत ने आरोप-पत्र के माध्यम से उपलब्ध कराए गए गवाहों के बयान का अवलोकन किया और फिर अदालत ने पाया कि 19.03.2020 और 20.03.2020 को, आवेदकों ने कुरान और हदीस का अध्ययन किया और नमाज अदा की। वे भारतीय मुस्लिम संस्कृति से परिचित हुए।
न्यायालय ने आगे कहा,"चूंकि आवेदक स्थानीय भाषा में बातचीत नहीं कर सकते थे, उन्होंने अपनी भाषा में कुरान और हदीस का अध्ययन किया। गवाहों के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि अभियोजन पक्ष द्वारा यह साबित करने के लिए कोई सामग्री पेश नहीं की गई है कि आवेदक तबलीगी गतिविधियों में लगे थे और वे थे धार्मिक विचारधारा का प्रचार करने या धार्मिक स्थानों पर भाषण देने में शामिल थे। चार्जशीट में अभियोजन पक्ष की ओर से कोई सामग्री नहीं दी गई है, जिससे की प्रथम दृष्टया भी वीज़ा मैनुअल की शर्त 1.25 या 19.8 का उल्लंघन साबित होता है।
आईपीसी की धारा 269 और 270 के संबंध में न्यायालय का अवलोकन
अदालत ने आगे टिप्पणी की, "धारा 269 और 270 को आकर्षित करने के लिए, व्यक्ति को कोई भी ऐसा कार्य करना चाहिए, जिसे वह जानता है कि उससे किसी भी बीमारी का संक्रमण फैलने की आशंका है और वह जीवन के लिए खतरनाक है। इस पर विवाद नहीं है कि आवेदकों का COVID-19 का परीक्षण किया गया था और उनकी रिपोर्ट नकारात्मक थी। यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि आवेदक ऐसे किसी कार्य में लिप्त थे, जिससे COVID-19 का संक्रमण फैलने की संभावना है।"
आईपीसी की धारा 188 के संबंध में न्यायालय का अवलोकन
न्यायालय ने देखा कि पुलिस द्वारा प्रस्तुत एक लिखित रिपोर्ट के आधार पर आवेदकों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत दंडनीय अपराध के लिए कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती थी।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा, "विधायी मंशा संहिता की धारा 195 (1) की भाषा से स्पष्ट प्रतीत होती है, जो यह बताती है कि जहां भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत "अपराध "किया जाता है, यह अनिवार्य होगा कि लोक सेवक को, जिसके समक्ष इस तरह का "अपराध" किया गया है, या तो मौखिक रूप से या लिखित रूप से न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत दर्ज करवानी चाहिए, इसलिए, भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक पुलिस की सह पर प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति कानून में नहीं है।"
कोर्ट ने विशेष रूप से कहा, "जांच अधिकारियों ने पुलिस की शिकायत के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत एफआईआर दर्ज करने में क्षेत्राधिकार के बिना काम किया। पुलिस द्वारा की गई जांच भी अधिकार क्षेत्र के बिना थी।"
अंत में, न्यायालय का मत था कि अभियोजन को जारी रखने की अनुमति देना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, क्योंकि पुलिस रिपोर्ट के आधार पर आरोपी के खिलाफ एफआईआर कायम करने पर कानूनी रोक है।
इसलिए पूर्वोक्त स्थिति की पृष्ठभूमि में, न्यायालय का विचार था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 269, 270 के तहत दंडनीय अपराधों और विदेशी अधिनियम की धारा 14, महामारी रोग अधिनियम, 1987 की धारा 3 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 के तहत आवेदकों के खिलाफ अभियोजन कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि आवेदकों को ट्रायल से गुजरने के लिए मजबूर करना गंभीर अन्याय होगा। इसलिए, हम एफआईआर को रद्द करना उपयुक्त मानते हैं.....
पिछले महीने, बॉम्बे हाईकोर्ट ने कुल 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया था, जिनके खिलाफ आईपीसी, महामारी रोग अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन पर कथित तौर पर दिल्ली के निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात में शामिल होकर अपने टूरिस्ट वीज़ा की शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप था।
एफआईआर को खारिज करते हुए, हाईकोर्ट ने कहा था कि तब्लीगी जमात के सदस्यों को "बलि का बकरा" बनाया गया था। कोर्ट ने उनके खिलाफ किए गए "मीडिया प्रचार" की आलोचना की थी। जून में मद्रास हाईकोर्ट ने भी तब्लीगी जमात के विदेशियों के खिलाफ एफआईआर को खारिज़ कर दिया था। जून में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बांग्लादेश के छह नागरिकों को अंतरिम जमानत दी थी।
मामले का विवरण
केस टाइटल: ह्ला श्वे व 7 अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य
केस संख्या: CRIMINAL APPLICATION (APL) NO 453 OF 2020
कोरम: जस्टिस वीएम देशपांडे और जस्टिस अमित बी बोरकर
प्रतिनिधित्व: एडवोकेट जेएच एलोनी (आवेदकों के लिए); एपीपी वीए ठाकरे (राज्य के लिए)।
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