आरोपी की पहचान होने तक दोबारा टेस्ट पहचान परेड नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

12 Aug 2021 10:27 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक अभियोजन पक्ष आरोपी की पहचान हासिल करने में सफल नहीं हो जाता, तब तक दोबारा परीक्षण पहचान परेड नहीं हो सकती।

    जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि परीक्षण पहचान परेड में केवल पहचान ही दोषसिद्धि का वास्तविक आधार नहीं बन सकती, जब तक कि पहचान की पुष्टि करने वाले अन्य तथ्य और परिस्थितियां न हों। पीठ ने दोहराया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 के तहत परीक्षण पहचान परेड एक आपराधिक अभियोजन में वास्तविक साक्ष्य नहीं है, बल्कि केवल पुष्ट‌ि साक्ष्य है।

    मौजूदा मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (टीआईपी) में पहचाने जाने के आधार पर दोषी करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में, उन्होंने तर्क दिया कि टीआईपी के आधार पर दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं है क्योंकि कोई भी टीआईपी कानून के अनुसार साबित नहीं हुआ है। आगे प्रस्तुत किया गया था कि बार-बार टीआईपी आयोजित किए गए थे, जिसके बाद ही आरोपियों की 'पहचान' की गई थी।

    अपील पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि अभियोजन का मामला केवल टीआईपी में पहचान पर निर्भर करता है।

    अदालत ने कहा, "साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 के तहत परीक्षण पहचान परेड आपराधिक अभियोजन में वास्तविक सबूत नहीं है, बल्कि केवल पुष्ट‌ि साक्ष्य है। जांच के चरण के दौरान परीक्षण पहचान परेड आयोजित करने का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि जांच एजेंसी प्रथम दृष्टया सही दिशा में आगे बढ़ रही है, जहां आरोपी अज्ञात हो सकता है या आरोपी की झलक भर देखी गई हो। परीक्षण पहचान परेड में पहचान मात्र दोषसिद्धि के लिए तब तक मूल आधार नहीं बन सकती जब तक कि अन्य तथ्य और परिस्थितियां पहचान की पुष्टि नहीं करती हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि जांच का एक हिस्सा होने के नाते परीक्षण पहचान परेड से अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि यह कानून के अनुसार आयोजित किया गया था ।",

    अदालत ने कहा कि यह साबित करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष पर है कि टीआईपी कानून के अनुसार आयोजित की गई थी। अभियोजन द्वारा प्रथम दृष्टया एक वैध टीआईपी आयोजित होने के बाद ही, उस पर किसी भी आपत्ति पर विचार करने का सवाल उठता है।

    "यदि अभियोजन पक्ष यह स्थापित करने में विफल रहा है कि गवाहों की जांच उचित ढंग से करके टीआईपी ठीक से आयोजित की गई थी, तो आरोपी के पास अस्वीकार करने के लिए कुछ भी नहीं है।"

    मौजूदा मामले में, अदालत ने कहा कि एक मजिस्ट्रेट ने टीआईपी का संचालन किया था, लेकिन उसकी जांच नहीं की गई और अभियोजन पक्ष ने इसके लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।

    पीठ ने आरोपी को बरी करते हुए कहा, "जब तक अभियोजन पक्ष आरोपी की पहचान प्राप्त करने में सफल नहीं हो जाता है, तब तक टीआईपी को दोहराया नहीं जा सकता है। हमें यह बेहद परेशान करने वाला लगता है कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने इस पहलू पर खुद को संतुष्ट करने के लिए बिल्कुल पर नहीं गए, कि कोई टीआईपी है और वह कानून के अनुसार है।",

    केस: उमेश चंद्र बनाम उत्तराखंड राज्य; सीआरए 801 ऑफ 2021

    ‌सिटेशन: एलएल 2021 एससी 374

    कोरम: जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी

    वकील: सीनियर एडवोकेट विभा दत्ता मखीजा, अपीलकर्ताओं के लिए एडवोकेट डीएस मटिया, प्रतिवादी राज्य के लिए एडवोकेट राजीव नंदा

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