'द केरला स्टोरी' मूवी: सुप्रीम कोर्ट 12 मई को पश्चिम बंगाल में फिल्म पर प्रतिबंध के खिलाफ निर्माता की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत

Shahadat

10 May 2023 6:10 AM GMT

  • द केरला स्टोरी मूवी: सुप्रीम कोर्ट 12 मई को पश्चिम बंगाल में फिल्म पर प्रतिबंध के खिलाफ निर्माता की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत

    सुप्रीम कोर्ट बुधवार को विवादास्पद फिल्म 'द केरला स्टोरी' के निर्माताओं द्वारा फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए 12 मई को तैयार हो गया।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की।

    सीजेआई ने कहा कि वह इस मामले को 15 मई को पोस्ट करेंगे, क्योंकि केरल हाईकोर्ट द्वारा फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से इनकार करने को चुनौती देने वाली याचिका उस दिन सूचीबद्ध है।

    हालांकि, साल्वे ने यह कहते हुए पहले की तारीख के लिए अनुरोध किया कि निर्माताओं को प्रतिबंध के कारण कमाई का नुकसान हो रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अन्य राज्य भी फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के लिए आगे बढ़ रहा है।

    सीजेआई ने इसके बाद मामले को 12 मई को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि फिल्म तमिलनाडु में 'शैडो' बैन का सामना कर रही है और दक्षिणी राज्य में फिल्म की स्क्रीनिंग के लिए सुरक्षा की मांग कर रही है।

    पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 8 मई को "घृणा और हिंसा की किसी भी घटना से बचने और राज्य में शांति बनाए रखने के लिए" फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय की घोषणा की थी। सरकार ने इसके लिए पश्चिम बंगाल सिनेमा (विनियमन) अधिनियम, 1954 की धारा 6(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग किया।

    इस फैसले को चुनौती देते हुए फिल्म निर्माताओं ने संविधान के अनुच्छेद 32 का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकार के पास ऐसी फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की कोई शक्ति नहीं है, जिसे केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा सार्वजनिक रूप से देखने के लिए प्रमाणित किया गया हो।

    याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि राज्य सरकार फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिए कानून और व्यवस्था के मुद्दों का हवाला नहीं दे सकती, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

    याचिकाकर्ताओं ने पश्चिम बंगाल सिनेमा (विनियमन) अधिनियम, 1954 की धारा 6(1) की वैधता को भी इस आधार पर चुनौती दी कि यह राज्य सरकार को मनमाना और अनिर्देशित अधिकार प्रदान कर रहा है।

    तमिलनाडु के संबंध में याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि राज्य में फिल्म रिलीज़ करने वालों को राज्य के अधिकारियों के अनौपचारिक संदेश भेजने के बाद फिल्म को वापस ले लिया।

    फिल्म ने आरोपों पर विवाद खड़ा कर दिया कि यह धोखाधड़ी से आईएसआईएस में भर्ती की गई महिलाओं की कहानी को चित्रित करते हुए पूरे मुस्लिम समुदाय और केरल राज्य को कलंकित कर रही है।

    केरल हाईकोर्ट की जस्टिस एन. नागेश और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने 5 मई को फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि फिल्म ने केवल इतना कहा कि यह 'सच्ची घटनाओं से प्रेरित' है और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने फिल्म को सार्वजनिक रूप से देखने के लिए प्रमाणित किया है।

    खंडपीठ ने फिल्म का ट्रेलर भी देखा और कहा कि इसमें किसी विशेष समुदाय के लिए कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं में से किसी ने भी फिल्म नहीं देखी और निर्माताओं ने एक डिस्क्लेमर जोड़ा है कि फिल्म घटनाओं का काल्पनिक संस्करण है।

    हालांकि, हाईकोर्ट ने निर्माता की यह दलील भी दर्ज की कि फिल्म का टीज़र, जिसमें दावा किया गया कि केरल की 32,000 से अधिक महिलाओं को आईएसआईएस में भर्ती किया गया, उसको उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स से हटा दिया जाएगा।

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