मालनकारा चर्च मामला : जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, केरल के जजों को बताएं, वे भी भारत का हिस्सा हैं

LiveLaw News Network

7 Sep 2019 5:10 AM GMT

  • मालनकारा चर्च मामला : जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, केरल के जजों को बताएं, वे भी भारत का हिस्सा हैं

    सुप्रीम कोर्ट ने केरल में चर्चों में प्रशासन और प्रार्थनाओं के संचालन के अधिकार को लेकर 2017 के अपने फैसले में दो गुटों के विवाद में केरल हाईकोर्ट द्वारा छेड़छाड़ करने की कड़ी निंदा करते हुए शुक्रवार को कहा, "केरल में न्यायाधीशों को बताएं कि वे भारत का हिस्सा हैं।"

    शीर्ष अदालत ने केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मालनकारा चर्चों में प्रार्थना सेवाओं का मालाकार चर्च के दो प्रतिद्वंद्वी गुटों द्वारा वैकल्पिक रूप से प्रशासन किया जाएगा।

    यह है मामला

    दरअसल अपने 2017 के फैसले में शीर्ष अदालत ने माना था कि 1934 के मालनकारा चर्च के दिशानिर्देश के अनुसार मालनकारा चर्च के तहत 1,100 परगने और उनके चर्चों को रूढ़िवादी गुट द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए।

    जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय के आदेश के बारे में पता चलने के बाद जमकर फटकार लगाई और कहा, "यह एक बहुत ही आपत्तिजनक आदेश है। यह न्यायाधीश कौन है? उच्च न्यायालय को हमारे फैसले के साथ छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। यह न्यायिक अनुशासनहीनता की ऊंचाई है। केरल में न्यायाधीशों को बताएं कि वे भारत का हिस्सा हैं। "

    इससे पहले दो जुलाई को भी पीठ ने कहा था कि क्या केरल कानून से ऊपर है ? पीठ ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए चर्चों में प्रशासन और प्रार्थनाओं के संचालन के अधिकार पर दो गुटों के बीच विवाद पर अदालत के 2017 के फैसले को लागू ना करने पर मुख्य सचिव को सलाखों के पीछे डालने की धमकी दे डाली थी।

    पीठ ने दी यह चेतावनी

    जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने चेतावनी दी थी कि वह केरल के मुख्य सचिव को "न्याय वितरण प्रणाली का मजाक बनाने" के लिए अदालत में तलब करेंगे।

    सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा था, "अपने मुख्य सचिव से कहें कि अगर वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जाने का इरादा रखते हैं तो हम सभी को यहां बुला लेंगे। क्या केरल कानून से ऊपर है ? आप न्याय वितरण प्रणाली का मखौल उड़ा रहे हैं।"

    पीठ ने यह भी चेतावनी दी थी कि अगर शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए आदेशों को राज्य द्वारा लागू नहीं किया जाता तो केरल के मुख्य सचिव को सलाखों के पीछे भेजा जा सकता है।

    पीठ ने कहा, "देश में क्या हो रहा है? अगर उन्हें लगता है कि वे इस तरह की चीजें कर सकते हैं तो हम सभी को यहां बुला लेंगे। सर्वोच्च न्यायालय के साथ इस तरह व्यवहार नहीं किया जा सकता। " पीठ ने साफ किया कि अदालत के आदेशों को राज्य सरकार द्वारा लागू किया जाएगा।

    गौरतलब है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद जैकबाइट चर्च के अनुयायियों पर रूढ़िवादी गुट को रोकने का आरोप लगाया गया है।

    सुप्रीम कोर्ट केरल उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ सेंट मेरीज ऑर्थोडॉक्स चर्च और अन्य द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा है जिसमें राज्य के वकील की उन दलीलों के आधार पर इस मुद्दे पर दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई बंद कर दी गई थी कि गुटों के बीच विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए उनके द्वारा कदम उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि मामले में उच्च न्यायालय द्वारा पारित कुछ निर्देश सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के विपरीत थे।

    सेंट मैरी ऑर्थोडॉक्स चर्च और अन्य ने उच्च न्यायालय में दो याचिकाएं दायर की थीं जिनमें मामले में पारित किए गए शीर्ष अदालत के आदेशों को लागू करने और वहां के चर्चों में प्रार्थना की सुरक्षा के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की गई थी।

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