व्यापार व्यवहार के बारे में कर अधिकारी विधायी प्रावधानों की अपनी व्याख्या नहीं पेश कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
3 May 2020 11:15 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कर प्रशासनिक अधिकारी व्यापार व्यवहार के बारे में खुद की धारणा के आधार पर विधायी प्रावधानों की अपनी व्याख्या प्रस्तुत नहीं कर सकते।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने राजस्थान वाणिज्यिक कर विभाग के उस सर्कुलर को अवैध करार दे दिया जिसमें कहा गया था कि अन्य राज्यों से ख़रीदी गई वस्तुओं को 'कंस्ट्रकटिवली डिलीवर्ड' माना जाएगा अगर ये वस्तुएं इसको ख़रीदने वाले राज्य में ट्रांसपोर्टरों के पास एक निश्चित समय तक पड़ी रहती हैं।
अदालत ने कहा कि विभाग को अंतर्राज्यीय आवाजाही को लेकर इस तरह के किसी तिथि का निर्धारण का अधिकार नहीं है और कहा कि केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम, 1956 के तहत 'कंस्ट्रक्टिव डिलीवरी' की कोई परिकल्पना नहीं है और मालों की अंतर्राज्यीय आवाजाही तभी पूरी होती है जब वास्तव में वस्तु की डिलीवरी ले ली जाती है ।
यह मामला है कमर्शियल टैक्स ऑफ़िसर बनाम मै. बॉम्बे मशीनरी स्टोर का जो केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम की धारा 6(2) से जुड़ा है। इस प्रावधान के अनुसार मालों के अंतर्राज्यीय आवागमन के दौरान बिक्री को अंतर्राज्यीय बिक्री भी माना जाएगा।
अदालत को यह तय करना था कि वस्तुओं के अंतर्राज्यीय आवागमन को कब समाप्त माना जाएगा, - जब वस्तुओं का वास्तविक आवागमन समाप्त होगा तब या जब वस्तुओं की वास्तविक डिलीवरी प्राप्त की जाती है तब।
राजस्थान के वाणिज्यिक कर विभाग ने 1997 के सर्कुलर में कहा था कि अगर माल की वास्तविक डिलीवरी लिए बिना ट्रांसपोर्टर के पास एक निश्चित अवधि तक रहता है तो माल की ढुलाई को समाप्त हुआ माना जाएगा। इस आधार पर जब ट्रांसपोर्टर के पास माल होता है उस दौरान जो बिक्री कि जाती है उसे अंतर्राज्यीय बिक्री नहीं माना जाता है और इसकी स्थानीय बिक्री की जाएगी।
इस मामले में कर विभाग ने ट्रांसपोर्टर के गोदाम में माल के रखने की सीमा 30 दिन के आगे निर्धारित की थी। उस तिथि के बाद असेसी (बॉम्बे मशीनरी) के बारे में यह मान लिया गया कि उसने माल की डिलीवरी ले ली है और उस तिथि के आगे राजस्थान में बिक्री को राज्य बिक्री कर क़ानून के तहत स्थानीय बिक्री माना गया।
राजस्थान हाईकोर्ट ने इस दलील से असहमति जताई थी और कहा था कि विभाग को इस तरह का सर्कुलर जारी करने का अधिकार नहीं है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि सीएसटी की धारा 3 में कहा गया है कि माल की आवाजाही को तब शुरू हुआ माना जाएगा जब माल किसी कैरियर को दिया जाता है और यह समाप्त तब होता है जब इस कैरियर से इसे प्राप्त कर लिया जाता है।
पीठ ने कहा कि इस परिस्थिति में कर प्रशासन को इस बारे में कोई समय सीमा निर्धारित करने की इजाज़त नहीं है।
विभाग द्वारा अर्जन दास गुप्ता एवं भाइयों बनाम बिक्री आयुक्त, दिल्ली प्रशासन मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा जताने को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि यह दलील अधिनियम की धारा 3 के अनुरूप नहीं है।
अदालत ने कहा कि कर प्रशासन अधिकारी वैधानिक प्रावधानों के बारे में व्यापार व्यवहार पर आधारित अपनी व्याख्या नहीं दे सकते।
फ़ैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने कहा कि कर अधिकारियों को व्यापार व्यवहार के बारे में अपनी सोच के आधार पर विधायी प्रावधानों की व्याख्या की अनुमति नहीं है।
अदालत ने कहा,
"अगर अधिकारियों को लगता है कि कोई असेसी या डीलर 1956 के अधिनियम के उपरोक्त प्रावधानों का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहा है तो इसका उचित तरीक़ा हो सकता है विधायी संशोधन। कर अधिकारी व्यापार व्यवहार के बारे में अपनी सोच के आधार पर विधायी प्रावधानों की व्याख्या नहीं कर सकते। इस तरह के प्रशासनिक कार्रवाई से विधायी प्रावधानों में शब्द जुड़ेंगे और ऐसा लगेगा कि विधायिका से जो छूट गया उसको सुधारा गया है।"
इस तरह अपील को ख़ारिज कर दिया गया।
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