Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

TN सरकार ने आधार को सोशल मीडिया अकाउंट से जोड़ने की वकालत की, सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक की ट्रांसफर याचिका पर नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network
20 Aug 2019 12:17 PM GMT
TN सरकार ने आधार को सोशल मीडिया अकाउंट से जोड़ने की वकालत की,  सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक की ट्रांसफर याचिका पर नोटिस जारी किया
x

आधार को सोशल मीडिया अकाउंट्स से जोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक की ट्रांसफर याचिका पर गूगल, ट्विटर, फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया संस्थानों के अलावा केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है।

"किस शर्त पर दी जाए जानकारी, इसको लेकर होना चाहिए बैलेंस"

जस्टिस दीपक गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने हालांकि मद्रास हाई कोर्ट को सुनवाई जारी रखने की अनुमति दी है, लेकिन यह निर्देश दिया है कि वो इस संबंध में कोई आदेश जारी नहीं करेगा। मंगलवार को हुई सुनवाई में पीठ ने यह कहा कि अपराध होने पर सरकार और निजता के बीच टकराव होता है। इसमें एक बैलेंस होना चाहिए कि किस शर्त के तहत जानकारी दी जा सकती है। पीठ ने इस मामले को सुनवाई के लिए 13 सितंबर को सूचीबद्ध किया है।

फेसबुक और व्हाट्सएप ने रखा अपना पक्ष

फेसबुक और व्हाट्सएप की ओर से पेश कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने पीठ के सामने यह कहा कि यह पूरे राष्ट्र की निजता को प्रभावित करता है। केंद्र पहले से ही इस मुद्दे की जांच कर रहा है। यदि कोई व्यक्ति यू-ट्यूब की प्रतिलिपि बनाता है और व्हाट्सएप संदेश के रूप में भेजता है तो उसका पता लगाना संभव नहीं है। ये एक बहुत बड़ी समस्या है। इसलिए विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष सभी लंबित मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करना चाहिए।

AG ने मामले के SC में ट्रांसफर का किया विरोध; ब्लू व्हेल गेम को लेकर जताई चिंता

वहीं तमिलनाडु की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने मामले का SC में ट्रांसफर का विरोध किया। उन्होंने कहा कि हमारे पास एक गंभीर स्थिति है। केंद्र यह पता लगाने के लिए संघर्ष कर रहा है कि ब्लू व्हेल का निर्माता कौन है और कौन निर्देश देता है। कोई कहता है कि वह रूस का एक युवा व्यक्ति है। ब्लू व्हेल खेलते हुए भारत में कई लोगों की मौत हुई है। बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट ने इसकी सुनवाई जारी रखी है।

पीठ ने इसके बाद कहा कि हम ब्लू व्हेल के बारे में जानते हैं। डार्क वेब में क्या हो रहा है वह तो ब्लू व्हेल से भी बदतर है। पीठ ने कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे का विस्तार किया है कि यदि मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं है तो पुलिस को किसी अन्य व्यक्ति के विवरण के बारे में सूचित करना चाहिए। हम मामले की मेरिट की जांच नहीं कर रहे हैं।

फेसबुक ने की थी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

दरअसल सोशल मीडिया अकाउंटस को आधार से जोड़ने को लेकर तीन उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए फेसबुक ने याचिका दायर की है।

केंद्र एवं सोशल मीडिया पक्षकारों ने रखा अपना पक्ष

सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से यह कहा गया कि देश-विरोधी, आपत्तिजनक और अश्लील संदेश बनाने वालों तक पहुंचने के लिए ये जरूरी है। वहीं व्हाटसएप की ओर से यह कहा गया कि एन्क्रिप्शन के कारण इसका पता लगाना संभव नहीं है। फेसबुक का कहना है कि आधार को किसी निजी कंपनी से कैसे लिंक किया जा सकता है? ये अत्यधिक सार्वजनिक महत्व का मामला है। ये निजता का मामला भी है जिस पर स्पष्टता की आवश्यकता है।

याचिका यह कहते हुए दायर की गई है कि मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित मामले काफी हद तक समान राहत चाहते हैं और इसमें कानून के समान या काफी समान प्रश्न शामिल हैं।

याचिका में की गई यह मांग

"ये स्थानांतरण 4 सामान्य मामलों से परस्पर विरोधी फैसलों की संभावना को टालेगा और न्याय के हितों की सेवा करेगा। वास्तव मे इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि उपयोगकर्ताओं को पूरे भारत में समान निजता सुरक्षा प्रदान की जाए और जहां तक संभव हो परस्पर विरोधी निर्णयों से बचा जाए। याचिकाकर्ता, जो भारत भर में एक समान मंच का संचालन करता है, को आदेश दिया गया है कि वह केवल कुछ भारतीय राज्यों में ही नहीं बल्कि अन्य लोगों के लिए भी आधार की जानकारी को लिंक करे। चूंकि याचिका में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और आधार अधिनियम, 2016 जैसे केंद्रीय विधानों की व्याख्या शामिल है, इसलिए आदर्श यह होगा कि सर्वोच्च न्यायालय इस मुद्दे को सुने," याचिका में कहा गया है।

याचिकाकर्ताओं की दलील

दरअसल उच्च न्यायालयों में दाखिल याचिकाओं में अनिवार्य रूप से इस घोषणा की मांग की गई है कि आधार या किसी अन्य सरकारी अधिकृत पहचान प्रमाण को सोशल मीडिया खातों को प्रमाणित करने के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के अनुसार यह फर्जी और बेनामी प्रोफाइल द्वारा बनाए गए खतरे को रोकेगा।

सोशल मीडिया पक्षकारों ने जताई व्यक्तिगत सामग्री की निगरानी में असमर्थता

इस तरह की 2 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मद्रास HC ने ऑनलाइन दुरुपयोग और फर्जी खबरों को सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित करने के मुद्दे पर विचार करने के लिए मामले का दायरा बढ़ाया था। कोर्ट ने फर्जी समाचार और साइबर दुरुपयोग के मामलों में बिचौलियों की देनदारियों को परिभाषित करने की भी मांग की। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और गूगल ने अदालत के सामने यह प्रस्तुत किया कि उनके लिए प्रत्येक व्यक्तिगत सामग्री की निगरानी करना संभव नहीं है।

व्हाट्सएप की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद पी. दातार ने मद्रास HC को यह सूचित किया था कि चूंकि उपयोगकर्ताओं के बीच संदेश एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड हैं, इसलिए व्हाट्सएप तीसरे पक्ष को सूचना प्रदान नहीं कर सकता है। वह उपयोगकर्ता के मोबाइल नंबर, ईमेल पते, डिवाइस आदि के बारे में बुनियादी सब्सक्राइबर जानकारी साझा कर सकता है।

गूगल, फेसबुक और ट्विटर के लिए वरिष्ठ वकील पी. एस. रमन, सतीश पारासरन और आर. मुरारी ने यह कहा कि उपयोगकर्ताओं की बुनियादी सब्सक्राइबर जानकारी यानी BSI को कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है।

बीते 25 अप्रैल को जस्टिस एस. मनिकुमार और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की डिवीजन बेंच ने ऑनलाइन अपराधों का पता लगाने और साइबर दुरुपयोग और गलत सूचना को नियंत्रित करने के साधनों पर चर्चा करने के लिए तमिलनाडु सरकार को कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सोशल मीडिया प्रतिनिधियों के बीच बातचीत सत्र की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था।

Next Story