क्या यह बेंच से बचने की रणनीति है?: ट्रिब्यूनल एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से सुप्रीम कोर्ट नाराज़
Amir Ahmad
4 Nov 2025 4:29 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम 2021 (Tribunals Reforms Act, 2021) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पाँच-जजों की संविधान पीठ के पास भेजने की केंद्र सरकार की अर्जी पर सोमवार को कड़ी नाराज़गी व्यक्त की।
कोर्ट ने इस अर्जी की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या यह वर्तमान दो जजों की पीठ से बचने की एक रणनीति है, क्योंकि पीठ पहले ही याचिकाकर्ताओं की दलीलें विस्तार से सुन चुकी थी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ मद्रास बार एसोसिएशन मामले की सुनवाई कर रही थी।
अटॉर्नी जनरल (AG) आर. वेंकटरमणी ने पीठ को सूचित किया कि सरकार ने वर्तमान मामले को पांच जजों की बड़ी पीठ को भेजने के लिए अर्जी दाखिल की है।
इस पर नाराज़गी व्यक्त करते हुए CJI ने टिप्पणी की,
"हम भारत संघ से ऐसी रणनीति में शामिल होने की उम्मीद नहीं करते हैं।"
अटॉर्नी जनरल ने सम्मानपूर्वक आग्रह किया,
"विनम्रतापूर्वक निवेदन है कृपया इसे रणनीति न कहें।"
CJI ने जवाब दिया,
"यह रणनीति ही है, जब हम एक पक्ष को पूरी तरह से सुन चुके हैं और जब हमने AG को व्यक्तिगत आधार पर रियायत दी है।"
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वह पहले केंद्र सरकार की दलीलें सुनेगी और मामले को समाप्त करेगी। यदि खंडपीठ को बड़ी पीठ को मामला भेजने में कोई दम नज़र आएगा, तभी ऐसा आदेश पारित किया जाएगा।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने ट्रिब्यूनलों, जैसे कि आईटीएटी और कैट में नियुक्तियों के मुद्दे को उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि योग्यता सूचियों (merit lists) को अक्सर खारिज कर दिया जाता है और प्रतीक्षा सूची (waiting list) से नियुक्तियां की जाती हैं।
AG ने इसका खंडन करते हुए कहा कि उम्मीदवार कई बार नियुक्ति से मना कर देते हैं जिससे रिक्तियां भरनी पड़ती हैं, लेकिन योग्यता को वरीयता देने की नीति है।
अटॉर्नी जनरल ने यह भी तर्क दिया कि इस नए कानून को न्याय के तराजू पर तौलने से पहले इसे कुछ समय तक काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि प्रणाली अनुभव प्राप्त कर सके।
हालांकि CJI ने तुरंत पूछा कि यह दलील पांच जजों की पीठ को मामला भेजने के अनुरोध से कैसे मेल खाती है।
AG ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की वैधता पर सीधी बहस के बजाय वह केवल यह कह रहे हैं कि तकनीकी मुद्दों को समय के साथ ठीक किया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान अधिनियम में अध्यक्ष या सदस्य की नियुक्ति के लिए 50 वर्ष की न्यूनतम आयु की आवश्यकता पर भी बात हुई।
CJI ने अपने अनुभव का उल्लेख करते हुए टिप्पणी की कि वह स्वयं 42 वर्ष की आयु में न्यायाधीश नियुक्त हुए थे और इस अधिनियम के तर्क से वे अयोग्य माने जाते।
AG ने जवाब दिया कि ट्रिब्यूनलों के लिए अलग तरह के अनुभव की आवश्यकता होती है। इसे हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति के मानदंडों से अलग देखा जाना चाहिए।
मामले की सुनवाई अगली तारीख पर जारी रहेगी।

