सुप्रीम कोर्ट का वीकली राउंड अप, पिछले सप्ताह के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों पर एक नज़र
LiveLaw News Network
30 Sept 2019 11:09 AM IST
सितंबर 2019 के अंतिम सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में निम्नलिखित महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। देखिए सुप्रीम कोर्ट का वीकली राउंड अप में पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय।
साथ नहीं रहने के आधार पर तलाक लेने वाली महिला भरण पोषण की हकदार है? पढ़िए क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी पत्नी को उसके पति ने इस आधार पर तलाक़ दिया है कि पत्नी ने उसे छोड़ दिया है, तो उसे (पत्नी को) दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)की धारा 125 के तहत भरण पोषण की राशि प्राप्त करने का अधिकार है। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस ने इस मामले को किसी बड़ी पीठ को सौंपने से मना कर दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट लगातार यह कहता रहा है और उसका यह मत दंड प्रक्रिया संहिता के पूरी तरह अनुरूप है। पीठ ने इस संदर्भ में वनमाला बनाम एचएम रंगनाथ भट्ट और रोहतास सिंह बनाम रमेंद्री मामलों में दो जजों की पीठ और मनोज कुमार बनाम चम्पा देवी मामले में तीन जजों की पीठ के फ़ैसले का हवाला दिया। पीठ ने कहा,
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हथियारों से लैस आरोपी पक्ष इस बात का लाभ नहीं उठा सकता कि झगड़ा अचानक हुआ था, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने ग़ौर करते हुए कहा कि जब आरोपी पक्ष अपराध स्थल पर हथियारों से लैस होकर आया तो यह इस बात का स्पष्ट संकेत था कि अपराध झगड़े के दौरान उत्तेजना के क्षण में नहीं हुआ और इसलिए आईपीसी के धारा 300 के अपवाद 4 के तहत राहत का दावा नहीं किया जा सकता है। गुरु @ गुरूबरन बनाम राज्य मामले में अपील में हत्या के आरोपी की दलील यह थी कि यह अपराध हत्या का नहीं बल्कि हत्या के प्रयास जिसे कि हत्या नहीं कहा जा सकता, का है और यह मामला आईपीसी की धारा 300 के अपवाद 4 के तहत आएगा।
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वसीयत या उपहार में दी गयी पिता की स्वयंअर्जित सम्पत्ति, पुत्र के लिए भी स्वयंअर्जित सम्पत्ति, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि मिताक्षरा उत्तराधिकार कानून के अनुसार, पिता की स्वयं अर्जित सम्पदा यदि वसीयत/उपहार के तौर पर पुत्र को दी जाती है तो वह स्वयं अर्जित सम्पदा की श्रेणी में ही रहेगी और यह पैतृक सम्पत्ति तब तक नहीं कहलाएगी, जब तक वसीयतनामा में इस बारे में अलग से जिक्र न किया गया हो। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ गोविंदभाई छोटाभाई पटेल एवं अन्य बनाम पटेल रमणभाई माथुरभाई मामले में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रही थी।
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महिला पक्ष के वंशज को मुतवल्ली के उत्तराधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि वकीफ के महिला पक्ष के वंशज (कॉग्नेट हेयर्स) को मुतवल्ली का उत्तराधिकार हासिल करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है। न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनगोदौर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने दोहराया है कि मुतवल्ली के उत्तराधिकार का दावा साबित करने के लिए वक्फ बैनामे के जरिये वकीफ की अभिव्यक्त इच्छा या एक स्थापित स्थापित किया जाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इस मामले ('मो. अबरार बनाम मेघालय वक्फ बोर्ड') में वक्फ न्यायाधिकरण के उस आदेश पर मोहर लगायी थी, जिसमें कहा गया था चूंकि मुतवल्ली की अर्जी देने वाला महिला पक्ष का वंशज था, इसलिए उसे प्रत्यक्ष वंशज नहीं माना जा सकता और इसलिए वह मुतवल्ली के तौर पर नियुक्ति के योग्य नहीं है।
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सेल डीड/वसीयत के गवाह के लिए यह जानना ज़रूरी नहीं है कि दस्तावेज़ में क्या लिखा है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेल डीड और वसीयत जैसे दस्तावेजों के गवाहों के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि वह यह जानते हों कि उन दस्तावेजों में क्या निहित है। इस मुकदमे में वादी ने इस घोषणा के लिए प्रार्थना की थी कि उसे सूट की संपत्ति के कब्जे की मालिक घोषित किया जाए और यह भी प्रार्थना की थी कि प्रतिवादियों को आदेश दिया जाए कि उसके कब्जे में दखल न दें।
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अवैध विक्रय समझौते को वादी के पक्ष में लागू नहीं किया जा सकता, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून के विरुद्ध किये गये किसी भी इकरारनामे पर वादी को हक नहीं दिया जा सकता, यह जानते हुए भी कि कानून-विरोधी करार में प्रतिवादी भी शामिल था और इससे उसे लाभ हुआ है। इकरारनामे की शर्तों पर अमल करने (स्पिसिफिक परफॉर्मेंस) से संबंधित इस मुकदमे में यह सवाल उठाया गया था कि वादी के पक्ष में 'बाले वेंकटरमनप्पा' द्वारा 15 मई 1990 को किया गया विक्रय समझौता (एग्रीमेंट टू सेल) लागू होगा या नहीं? यह पाया गया था कि यह विक्रय समझौता रिफॉर्म्स एक्ट की धारा 61 के विरुद्ध था। इसी आधार पर मुकदमा खारिज कर दिया गया।
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मुकदमे की मंजूरी की अवैधता का सवाल ट्रायल के दौरान उठाया जाना चाहिए, न कि डिस्चार्ज एप्लीकेशन के स्तर पर, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यद्यपि मुकदमे की मंजूरी नहीं लिये जाने का मामला डिस्चार्ज एप्लीकेशन (आरोपमुक्त करने संबंधी अर्जी) के स्तर पर उठाया जा सकता है, लेकिन मंजूरी की अवैधता का मामला सुनवाई के दौरान ही उठाया जाना चाहिए। इस मामले में विशेष अदालत और बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी की डिस्चार्ज अर्जी मंजूर करते हुए कहा था कि मुकदमे की मंजूरी कानून के दायरे में नहीं ली गयी थी। केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 'सीबीआई बनाम प्रमिला वीरेन्द्र कुमार अग्रवाल' मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करके कहा था कि मुकदमे की मंजूरी की वैधता का मामला केवल मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही उठाया जा सकता है, न कि डिस्चार्ज एप्लीकेशन के स्तर पर।
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एनडीपीएस अधिनियम - अभियुक्त के पास से ज़ब्त वर्जित सामग्री अदालत में पेश न करना भी बरी करने का आधार नहीं हो सकता,पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि वर्जित सामग्री को अदालत में पेश न करना भी अभियुक्त को बरी करने का आधार नहीं है, यदि इसकी ज़ब्ती अन्य तरीके से सिद्ध हो जाती है। इस आधार पर जस्टिस यू.यू ललित और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटैंसेस एक्ट 1985 के तहत एक आरोपी को बरी कर दिया था।
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