सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना नहर विवाद को सुलझाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह किया
Avanish Pathak
23 March 2023 10:07 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद के संबंध में व्यावहारिक समाधान खोजने के लिए पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा द्वारा किए गए प्रयास में सक्रिय भूमिका निभाने को कहा।
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ 1996 में पंजाब के खिलाफ हरियाणा की ओर से दायर एक मूल मुकदमे की सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2002 में हरियाणा ने एक अनुकूल निर्णय प्राप्त किया था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंजाब को निर्देश देने के बावजूद दो बार एसवाईएल नहर बनाने को लेकर दोनों राज्यों के बीच विवाद आज भी जारी है।
इससे पहले, हरियाणा सरकार ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि पंजाब के साथ द्विपक्षीय वार्ता का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला है, और 2002 के एक फैसले के अनुसार पंजाब सरकार को नहर के शेष हिस्से को पूरा करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करने का आग्रह किया।।
सतलुज और यमुना को जोड़ने वाली प्रस्तावित 211 किलोमीटर लंबी नहर के निर्माण की योजना 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद बनाई गई थी, लेकिन केंद्र की ओर से 1976 में एक अधिसूचना, जिसमे कहा गया था कि दोनों राज्यों को 3.5 मिलियन एकड़-फीट (MAF) प्राप्त होगा, जारी होने के बाद ही इसे गति मिली। रावी और ब्यास के पानी को फिर से आवंटित करने के लिए दोनों राज्यों ने 1981 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
हरियाणा सरकार ने अपने क्षेत्र में पड़ने वाली 90 किलोमीटर नहर का निर्माण पूरा किया, जबकि उस समय विपक्षी दलों और अन्य समूहों के दबाव के कारण पंजाब में काम अधूरा रह गया।
गुरुवार को हरियाणा सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि द्विपक्षीय बातचीत के जरिए किसी व्यावहारिक समाधान पर पहुंचने की कोई संभावना नहीं है। पंजाब सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने बेंच को बताया कि केंद्र सरकार की राय है कि इस विवाद का हल निकालने के लिए और बैठकें करने की ज़रूरत है।
समझौता वार्ता पर दोनों राज्यों के गतिरोध को देखते हुए जस्टिस अमानुल्लाह ने एटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से पूछा -
“केंद्र सरकार को दो राज्यों के बीच जल विवादों में अंतिम मध्यस्थ के रूप में कार्य करना है। आप पृष्ठभूमि में मूक दर्शक बने रहने के बजाय अधिक सक्रिय भूमिका क्यों नहीं निभाते।”
अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया कि केंद्र सरकार को एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए एक अलग रास्ते पर चलना होगा; एक औपचारिक नदी जल विवाद आवेदन दायर करना होगा।
उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार के प्रयास के बावजूद दोनों राज्यों के बीच बातचीत नहीं हो रही है।
हरियाणा सरकार के वकील ने कहा कि जब तक पंजाब सरकार अपने घोषित रुख से हटने का इरादा नहीं दिखाती, तब तक कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इसे ध्यान में रखते हुए, खंडपीठ ने कहा, "हम एक बार फिर जोर देते हैं कि किसी भी समझौते के लिए पार्टियों को अपनी घोषित स्थिति से आगे बढ़ने की आवश्यकता होती है।"
कोर्ट ने आगे कहा,
“हम उम्मीद करते हैं कि राज्यों के प्रयास को आगे बढ़ाने के लिए एक साथ बैठकर समाधान ढूंढा जाएगा। हम राज्यों से आह्वान करते हैं कि वे ज्यादा से ज्यादा और उच्चतम राजनीतिक स्तर पर बैठकें आयोजित करें ताकि चर्चा में कुछ प्रगति हो।"
हरियाणा ने एक एक अन्य मुद्दा पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट, 2004 पर पंजाब की निर्भरता का उठाया है, जिसमें कहा गया था कि यह अभी भी लागू है।
वकील ने तर्क दिया कि निर्भरता कानून में टिकाऊ नहीं है। खंडपीठ ने यह स्पष्ट कर दिया कि पंजाब के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के संदर्भ का उत्तर दिए जाने के बाद पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है।
पंजाब विधानसभा ने 2004 में टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट पारित किया था, जिसके जरिए उसने हरियाणा के साथ अपने जल-बंटावारा समझौते को रद्द करने की मांग की थी। हालांकि 2016 में इस अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया।
जब मामला सुप्रीम कोर्ट के लिए आया तो नहर के निर्माण को पूरा करने के दायित्व से मुक्त करने की पंजाब की मांग को दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया गया।
जस्टिस अनिल आर दवे की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा था,
"समझौते को एक पक्ष अपनी विधायी शक्ति का प्रयोग करके एकतरफा रूप से समाप्त नहीं कर सकता। यदि कोई पार्टी या कोई राज्य ऐसा करता है तो यह संविधान के साथ-साथ अंतर राज्य जल विवाद अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के खिलाफ होगा।"
केस टाइटल: हरियाणा राज्य सिंचाई विभाग सचिव बनाम राज्य सरकार