सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व अवकाश के दौरान प्रोफेसर को बर्खास्त करने के लिए डीयू कॉलेज पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने का फैसला बरकरार रखा

LiveLaw News Network

31 Oct 2020 9:15 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व अवकाश के दौरान प्रोफेसर को बर्खास्त करने के लिए डीयू कॉलेज पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने का फैसला बरकरार रखा

    Supreme Court Upholds Cost of Rs. 50,000 On DU College For Dismissing a Professor While On Maternity Leave

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील खारिज कर दी, जिसमें एक एडहॉक (तदर्थ) सहायक प्रोफेसर को फिर से बहाल किया गया था, जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज ने मातृत्व अवकाश के दौरान सेवा से हटा दिया था। इसके साथ साथ दिल्ली हाईकोर्ट ने कॉलेज पर 50 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया था।

    न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कॉलेज के आचरण के खिलाफ गंभीर आपत्ति व्यक्त की और कहा कि मातृत्व अवकाश सेवाओं की समाप्ति का आधार नहीं हो सकता।

    बेंच ने कहा,

    " बच्चा होना किसी औरत की पेशेवर क्षमता पर कोई प्रतिबिंब नहीं है, चाहे वह सेना, नौसेना, न्यायपालिका, शिक्षण या नौकरशाही में हो। हम इस आधार पर सेवा समाप्ति की अनुमति नहीं देंगे।"

    तदनुसार, अदालत ने अपील खारिज कर दी और यह देखते हुए कि उत्तरदाता को मुकदमे के दौरान खर्च करना पड़ा होगा, कॉलेज पर 50000 रुपये का जुर्माना लगाया।

    शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच के फैसले की सराहना की, जो न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति आशा मेनन की पीठ ने दिया।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एड हॉक (तदर्थ) प्रोफेसर को कॉलेज प्रबंधन द्वारा जारी सेवा समाप्ति पत्र (Termination Letter) को रद्द कर दिया था।

    इस महिला प्रोफेसर का अनुबंध कॉलेज द्वारा नवीनीकृत नहीं किया गया था क्योंकि उसने मातृत्व अवकाश लिया था, जिसे उक्त कॉलेज ने मंज़ूर नहीं किया था।

    न्यायमूर्ति हेमा कोहली और न्यायमूर्ति आशा मेनन की खंडपीठ ने एक सप्ताह के भीतर अपीलार्थी प्रोफेसर को सेवा में बहाल करने के लिए कॉलेज को निर्देश देते हुए अपीलकर्ता के कार्यकाल को मनमाने और अनपेक्षित कारणों से नवीनीकृत नहीं करने के लिए रिस्पोंडेंट पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाया था।

    मामले के तथ्य

    मामले के तथ्य अपीलकर्ता रिस्पोंडेंट कॉलेज में एक संविदा सहायक प्रोफेसर है और उसका कार्यकाल 18/03/19 को समाप्त हो रहा था।

    संविदा शिक्षकों के कार्यकाल को दो दिनों के बीच एक दिन के नाममात्र का अवकाश देने के बाद 120 दिनों के लिए नवीनीकृत करने की प्रथा रही है। 22.02.2019 को प्रोफेसर ने कॉलेज को मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत मातृत्व अवकाश देने के लिए अनुरोध किया था और विशेष रूप से गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं की दृष्टि से 14.01.2019 से 24.05.2019 तक अवकाश की मांग की थी।

    हालांकि, प्रोफेसर द्वारा कई बार कम्यूनिकेशन करने के बावजूद रिस्पोंडेंट कॉलेज से कोई जवाब नहीं मिला।

    मातृत्व अवकाश के लिए अनुरोध दोहराए जाने के बाद 27/03/19 को रिस्पोंडेंट कॉलेज से प्रोफेसर को एक संचार प्राप्त मिला, जिसमें कहा गया था कि कॉलेज ने उन्हें ड्यूटी ज्वॉइन करने के लिए "मजबूर" नहीं किया था और उन्हें कॉलेज को ज्वॉइन करने की तारीख के बारे में भी सूचित करना चाहिए था, यह दर्शाता है कि वह अभी भी अपने रोल पर थी।

    हालांकि, बाद में प्रोफेसर को कॉलेज से एक कम्यूनिकेशन मिला, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय संविदा शिक्षकों को मातृत्व लाभ नहीं देता है, इस प्रकार मातृत्व अवकाश के लिए उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया है।

    24/05/19 को प्रोफेसर ने अपनी ड्यूटी जारी रखने के लिए कॉलेज को सूचना दी। हालांकि, पांच दिनों के बाद प्रोफेसर सूचित किया गया कि उनका कार्यकाल 18.03.2019 को समाप्त हो गया है, वह अब कॉलेज के रोल पर नहीं हैं और इसलिए ड्यूटी पर वापस आना या कोई काम सौंपे जाने का कोई सवाल नहीं है।

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