सुप्रीम कोर्ट ने UP के जेल अधीक्षक के खिलाफ गैर ज़मानती वारंट रद्द किया कहा, ज़रूरत पड़ी तो कराएंगे जांच
LiveLaw News Network
23 Sept 2019 1:36 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर की जिला जेल के अधीक्षक के खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) को उनके पेश हो जाने के बाद रद्द कर दिया। हालांकि सोमवार को जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने यह साफ कहा है कि पीठ इस मामले का परीक्षण करेगी कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद आरोपी को जेल से रिहा कैसे किया गया।
पीठ ने कहा कि जरूरत पड़ी तो इस मामले की जांच के आदेश भी जारी करेंगे। पीठ इस मामले की सुनवाई अब नवंबर में करेगी। हालांकि पीठ को यह बताया गया कि मजिस्ट्रेट के कहने पर ही उसे जेल से रिहा किया गया। पीठ ने कहा कि पूरे मामले को देखा जाएगा।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने NBW जारी करते हुए उसे 23 सितंबर को कोर्ट में पेश करने के निर्देश जारी किए थे।
क्या है यह मामला
दरअसल याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा है कि उसने एक आपराधिक मामले में आरोपी को जमानत देने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में उत्तर प्रदेश सरकार को यह निर्देश जारी किया था कि अगर वह अभी भी हिरासत में है तो अगले आदेश तक आरोपी को जेल से रिहा न किया जाए।
याचिकाकर्ता के मुताबिक बाद में 3 दिसंबर, 2018 को पीठ ने आरोपियों को जमानत देने के उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। लेकिन पिछले साल दिसंबर में आदेश के बाद जेल अधीक्षक ने ट्रायल कोर्ट से आरोपी के लिए एक नए जेल हिरासत वारंट की मांग की। इसके बाद इस वारंट का इंतजार किए बगैर जेल अधीक्षक ने आरोपी को जेल से रिहा कर दिया।
याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका में यह कहा है कि जब संबंधित ट्रायल कोर्ट को पता चला था कि आरोपी को जेल प्रशासन ने रिहा कर दिया है, तो ट्रायल जज ने आरोपी के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया लेकिन उसे अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि आरोपी ने जेल से बाहर आने के बाद उसे मारने का प्रयास किया और पुलिस इस मामले में FIR दर्ज नहीं कर रही है। इस पर पीठ ने जेल के अधीक्षक के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था और जेल अधीक्षक को 23 सितंबर को कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए थे।