सुप्रीम कोर्ट ने गोरखपुर के दरगाह मुबारक ख़ान शहीद के विध्वंस पर रोक लगाई; यूपी सरकार को नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

8 March 2021 2:32 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने गोरखपुर के दरगाह मुबारक ख़ान शहीद के विध्वंस पर रोक लगाई; यूपी सरकार को नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के दरगाह मुबारक खान शहीद के किसी भी ढांचे को तोड़ने पर रोक लगाने का आदेश दिया। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परिसर (अनाधिकृत लोगों की बेदखली) अधिनियम, 1972 के तहत लंबित कार्यवाही के निस्तारण तक दरगाह के विध्वंस पर रोक लगा दी है।

    न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने मामले में उत्तर प्रदेश राज्य को नोटिस भी जारी किया है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के 10 फरवरी, 2021 के फैसले को चुनौती देते हुए विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी, इसमें याचिकाकर्ताओं की ओर से विध्वंस के आदेश को खारिज करने और अधिकारियों को आगे विध्वंस करने से रोकने का अनुरोध किया गया है।

    शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता विभा दत्ता मखीजा ने बहस की।

    याचिकाकर्ताओं द्वारा न्यायालय को मौखिक रूप से सूचित किया गया कि उन्हेंएसपी (सिटी) गोरखपुर के सचिव के जीडीए द्वारा आज इस अनुरोध पत्र के बारे में आज जानकारी मिली है कि एसपी (सिटी) गोरखपुर द्वारा कल यानी 9 मार्च को दरगाह के विध्वंस की कार्रवाई करने के लिए पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति करेंगे। तब कोर्ट ने आगे के विध्वंस पर रोक लगाकर अंतरिम राहत दी।

    वर्तमान विशेष अनुमति याचिका को एडवोकेट शारिक अहमद ने तैयार किया है, और इसे एओआर सुनील कुमार वर्मा ने याचिकाकर्ता दरगाह मुबारक खान साहेब की ओर से दायर की गई है।

    याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ईदगाह और बकरीद में मकबरे के दक्षिणी हिस्से में संत मुबारक खान साहेब और मस्जिद का एक मकबरा है, जो याचिकाकर्ताओं के अनुसार ईद जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों पर नमाज अदा करने के लिए मुस्लिम समुदाय द्वारा पुराने समय से इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके साथ ही हिंदू और इस्लामी दोनों धर्मों की एकता का प्रतीक होने के कारण दोनों समुदायों के लोगों रोजाना यहां आते हैं।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, वर्ष 1959 इसके आसपास के जगह के उपयोग और व्यवस्था के लिए पहली बार गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल, गोरखपुर के प्रधानाचार्य ने सवाल उठाया था और यहां तक कि इस स्थान पर लोगों के आने-जाने पर भी को रोक दिया गया था। मुंसिफ की अदालत और यूपी राज्य और गोरखपुर के कलेक्टरके समक्ष मुकदमा दायर किया गया था, इसमें मांग की गई थी कि ब्रजमैन के परिसर के पूर्वी द्वार को खोला जाए और इसके साथ ही, उक्त मार्ग को अवरुद्ध करने वाले किसी भी तार की बाड़ को हटाया जाए जो गेट से मकबरे, मस्जिद और कब्रिस्तान तक प्रवेश करने की अनुमति देने के लिए कलेक्टर परिसर जाना पड़ रहा है। अन्य राहतें मांगी गई थीं कि पश्चिमी तरफ खोले गए नए गेट में कोई बदलाव न किया जाए जो मकबरे की मस्जिद और कब्रगाह से पश्चिम तक का एकमात्र मार्ग है और मकबरे या कब्र की मरम्मत के काम में अधिकारियों के दखल देने से नुकसान हो सकता है, इसलिए इस पर रोक लगाई जाए। वादियों के पक्ष में फैसला दिया गया, प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया कि वे आने-जाने की अनुमति दें और कब्र आदि के मरम्मत कार्य में हस्तक्षेप न करें।

    दलील में कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में यह कहा था कि वादी और मुसलमान को नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद और ईद-गाह के पास खुली जमीन का इस्तेमाल करने का अधिकार है। तब से याचिकाकर्ता परिसर का उपयोग कर रहे हैं और राज्य प्राधिकरण द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है।

    हालांकि 29 जून 2019 को एक आदेश के माध्यम से उप-मंडल अधिकारी ने स्पष्ट रूप से यूपी लोक परिसर अधिनियम 1972 की धारा 4 के तहत कार्यवाही शुरू करने का प्रस्ताव रखा और मामले की जांच करने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए अधीनस्थ राजस्व अधिकारियों को नियुक्त किया। राजस्व टीम द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में याचिकाकर्ता सहित 18 कथित अनधिकृत रहने वालों के नाम शामिल थे। इसके बाद इन कथित अनधिकृत रहने वालों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, ताकि यह दिखाया जा सके कि उनके खिलाफ बेदखली के आदेश क्यों नहीं पारित किए गए।

    याचिका में आगे कहा गया कि गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता के कब्जे को अनधिकृत संपत्ति माना है और इसके साथ ही याचिकाकर्ता को कोई नोटिस जारी किए बिना, निर्माण को ध्वस्त करने का काम किया। याचिकाकर्ता ने उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि संपत्ति पर उनका कब्जा अनधिकृत नहीं है और यहां तक कि ट्रायल कोर्ट के आदेश का भी उल्लेख किया गया है।

    हालांकि, निर्माण के एक हिस्से के विध्वंस के बाद, गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता से संपत्ति पर अपना अधिकार साबित करने के लिए अन्य दस्तावेज बनाने के लिए कहा। याचिकाकर्ता द्वारा 1 जनवरी 2021 को उप-मंडल अधिकारी के समक्ष एक आवेदन दिया गया, जिसमें कहा गया था कि 3 सितंबर 1963 को ट्रायल कोर्ट का फैसला अंतिम है और यह यूपी राज्य को किसी भी तरह से हस्तक्षेप करने से रोकता है।

    याचिका में आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया और घोषणा की कि 29 दिसंबर 2020 की विध्वंस की कार्रवाई को अवैध और अंतर्विरोधी प्रतिवागी को आगे के विध्वंस करने पर रोक लगाने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई तक कोई तोड़फोड़ या बेदखली का आदेश देते हुए अंतरिम राहत दी। उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी, 2021 को अपने आदेश की अवहेलना करते हुए मामले को खारिज कर दिया था, इसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को निष्पादित करने के लिए कहा है और दिनांक 3 सितंबर 1963 को डिक्री दी है, और याचिकाकर्ता को न्यायालय द्वारा निषेधाज्ञा देने या डिक्री के निष्पादन करने से पहले मुआवजे के लिए सिविल सूट दायर करना चाहिए।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story