सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 वैक्सीन की भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय कीमतों का तुलनात्मक ब्योरा मांगा

LiveLaw News Network

3 Jun 2021 4:47 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 वैक्सीन की भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय कीमतों का तुलनात्मक ब्योरा मांगा

    इस बात का संज्ञान लेते हुए कि केंद्र सरकार ने छूट या किसी अन्य तरीके से वैक्सीन के उत्पादन में वित्तीय मदद तथा सहायता प्रदान की थी, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को लेकर स्पष्टीकरण मांगा है कि क्या यह कहना सटीक होगा कि निजी इकाइयों ने निर्माण का जोखिम और लागत अकेले वहन किया है।

    इसने कहा कि मैन्यूफैक्चरर्स को केंद्र सरकार द्वारा इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन दिया गया था, जिससे उनके जोखिम कम हुए, तो इसे मूल्य निर्धारण में शामिल किया जाना चाहिए था।

    कोर्ट ने भारत में उपलब्ध करायी जा रही वैक्सीन की कीमत एवं अंतरराष्ट्रीय कीमत का तुलनात्मक ब्योरा भी मांगा है।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की खंडपीठ ने COVID से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले में 31 मई के अपने आदेश में कहा कि वह महामारी से लड़ने वाली महत्वपूर्ण वैक्सीन के विकास और वितरण में भारत सरकार के सहयोगात्मक प्रयास की सराहना करती है।

    यह टिप्पणी करते हुए कि उनका यह सवाल वैक्सीन उत्पादन और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों तथा निजी अस्पतालों के लिए मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझने के लिए है, बेंच ने केंद्र सरकार को निम्न बिंदुओं पर स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया है:

    "1. चूंकि केंद्र सरकार ने छूट या अन्य तरीके से इन टीकों के निर्माण में वित्तीय सहयोग पद्रान किया है (आधिकारिक तौर पर तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के लिए बीबीआईएल को 35 करोड़ रुपये तथा एसआईआई को 11 करोड़ रुपये) तथा उत्पादन (या उत्पादन में वृद्धि) के लिए सुविधाएं प्रदान की है, यह कहना उचित नहीं होगा कि निजी संस्थाओं ने अकेले ही जोखिम और लागत का भार वहन किया है। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने 'इमरजेंसी यूथ ऑथराइजेशन' को मंजूरी देकर मैन्यूफैक्चरर्स के जोखिम को कम किया होगा, तो इसे मूल्य निर्धारण में शामिल किया जाना चाहिए।

    2. जिस ढंग से केंद्र सरकार के लिए खरीद मूल्य में सार्वजनिक वित्त पोषण परिलक्षित होता है, जो राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेश सरकारों और निजी अस्पतालों की तुलना में काफी कम है। यह देखते हुए कि (कोवैक्सीन के मामले में) आर एंड डी लागत एवं आईपी या तो केंद्र सरकार और निजी मैन्यूफैक्चरर के बीच साझा किया गया है या (कोविशील्ड की स्थिति में) मैन्यूफैक्चरर ने वैक्सीन के आर एंड डी में निवेश नहीं किया है। जिस तरीके से केंद्र सरकार द्वारा सांविधिक तौर पर हस्तक्षेप से इनकार करने के बाद वैक्सीन का मूल्य निर्धारण हो गया है। राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों तथा निजी अस्पतालों के लिए खरीद मूल्य और संख्या का पूर्व निर्धारण करने, लेकिन संवैधानिक मूल्य की ऊपरी सीमा न तय करने का औचित्य क्या है?

    3. भारत में उपलब्ध वैक्सीन की कीमतों और अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तुलना।

    4. क्या आईसीएमआर / बीबीआईएल ने स्वैच्छिक लाइसेंसिंग के लिए करार आमंत्रित किये थे और यदि हां, तो क्या उन्हें व्यावहारिक प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं? वह प्रणाली जिसके तहत भारत सरकार कोवैक्सीन के उत्पादन के लिए आवश्यक बीएसएल3 लैब विकसित करने में स्वतंत्र रूप से मैन्यूफैक्चरर्स को मदद कर रही है?"

    कोर्ट का यह स्पष्टीकरण केंद्र सरकार के नौ मई, 2021 के उस हलफनामे के जवाब में मांगा गया है, जिसमें सरकार ने कहा था कि सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक ने वैक्सीन, (कोविशील्ड और कोवैक्सीन) के विकास एवं निर्माण के लिए वित्तीय जोखिम उठाया है।

    हलफनामा में स्पष्ट किया गया है कि "सरकार की ओर से न तो कोवैक्सीन या कोविशील्ड के शोध में न ही विकास में सरकारी सहयोग या अनुदान दिया गया है। हालांकि उन्हें क्लिनिकल ट्रायल के लिए कुछ वित्तीय सहयोग किया गया है।" जहां कोवैक्सीन के लिए आईसीएमआर का कुल अनुमानित व्यय 35 करोड़ रुपये से अधिक है, वहीं कोविशील्ड के लिए यह रकम 11 करोड़ रुपये है।

    30 अप्रैल, 2021 के अपने आदेश में केंद्र सरकार को उन वैक्सीन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से फंडिंग और सहयोग से संबंधित आंकड़े पेश करने का केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया था, जिन्हें सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी गयी थी। साथ ही, वैक्सीन की कमी से संबंधित अवरोधों के मूल्यांकन के क्रम में अनिवार्य लाइसेंसिंग से संबंधित केंद्र से अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की गयी थी।

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