"लाभ की ओर देखें" : सुप्रीम कोर्ट ने अहमदाबाद नगर निगम के वैक्सीन अनिवार्य करने आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
4 April 2022 4:35 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अहमदाबाद नगर निगम द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश के लिए जारी किए गए वैक्सीन अनिवार्य करने के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
अदालत ने अहमदाबाद द्वारा जारी सर्कुलर को बरकरार रखने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका को खारिज करते हुए कहा,
"आखिरकार नगर आयुक्त शहर के भीतर सार्वजनिक स्थानों के प्रभारी हैं। उन्हें निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है।"
नगर निगम ("एएमसी") उन लोगों को कुछ सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश से वंचित करता है, जिन्होंने COVID-19 वैक्सीन की दोनों खुराकें नहीं ली हैं।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने अपने आदेश में याचिका को खारिज करते हुए कहा,
"इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में इस अदालत के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का कोई मामला नहीं है।"
एएमसी ने सर्कुलर जारी किया था। इसमें कहा गया कि निगम ने एक भव्य वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया। सर्कुलर में कहा गया कि कुछ सार्वजनिक स्थानों (जोनल कार्यालय, चिड़ियाघर, एएमटीसी, बीआरटीएस, साबरमती रिवरफ्रंट, स्विमिंग पूल, पुस्तकालय, खेल परिसर, आदि) में प्रवेश जनता को उनके COVID-19 वैक्सीनेशन की जांच के बाद अनुमति दी जाएगी। इस सर्कुलर को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
गुजरात हाईकोर्ट में यह याचिका दिसम्बर माह में खारिज हुई थी, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस निराल आर मेहता की खंडपीठ ने 17 दिसंबर, 2021 को जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा था,
"हम अहमदाबाद नगर निगम के निर्णय/सर्कुलर की सराहना करते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक हित में निर्णय लिया गया कि COVID-19 और न फैले। गुजरात राज्य सतर्क है। हम कोई जोखिम नहीं लेना चाहते।"
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
अहमदाबाद के निवासियों के लिए एडवोकेट एम कोतवाल ने प्रस्तुत किया कि नगर आयुक्त को इस तरह वैक्सीनेशन आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा,
"आप रास्ते में रुकावट क्यों पैदा कर रहे हैं। आप खुद को टीका क्यों नहीं लगवाते?"
न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियों का जवाब देते हुए वकील ने प्रस्तुत किया कि वैक्सीनेशन के प्रतिकूल प्रभाव हैं। उन्होंने जैकब पुलियेल द्वारा COVID-19 वैक्सीन अनिवार्य करने को चुनौती देने वाली जनहित याचिका का भी उल्लेख किया। इस पर जस्टिस नागेश्वर राव की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ ने आदेश सुरक्षित रखा लिया था।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिका खारिज करते हुए कहा,
"हर वैक्सीन की एक कीमत होती है और यह एक सदियों पुराना विवाद है। समुदाय को होने वाले लाभ को देखें। इस विशेष समय में अपने क्लाइंट को उस लाभ में योग्यता को देखना चाहिए जो व्यापक समुदाय को मिल रहा है। मुझे नहीं लगता कि हम अनुच्छेद 136 के तहत हमारे अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना चाहिए।"
वकील ने प्रस्तुत किया कि राज्य को नगर आयुक्त के बजाय शासनादेश जारी करना चाहिए।
जस्टिस कांत ने कहा,
"आप राज्य से शिकायत करें, राज्य को सर्कुलर जारी करने दें।"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की,
"आखिरकार नगर आयुक्त शहर के भीतर सार्वजनिक स्थानों के प्रभारी हैं। उन्हें निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है। उन्हें पूरे राज्य और पार्कों और सार्वजनिक स्थानों पर जाने वाले लोगों के कल्याण की चिंता है। आप अनुच्छेद 136 के तहत आए हैं, हमें इसमें क्यों दखल देना चाहिए?"
केस शीर्षक: निशांत बाबूभाई प्रजापति बनाम. भारत संघ| एसएलपी (सिविल) 2022 का 5030