रेप केस में एक्टर विजय बाबू को दी गई अग्रिम जमानत में हस्तक्षेप करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, शर्तों में बदलाव किया

Brij Nandan

6 July 2022 6:51 AM GMT

  • रेप केस में एक्टर विजय बाबू को दी गई अग्रिम जमानत में हस्तक्षेप करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, शर्तों में बदलाव किया

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को रेप केस (Rape Case) में एक्टर विजय बाबू (Vijay Babu) को दी गई अग्रिम जमानत में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

    हालांकि यह स्पष्ट किया कि विजय बाबू अदालत की पूर्व अनुमति के बिना केरल राज्य नहीं छोड़ेंगे। उन्हें मामले के संबंध में सोशल मीडिया पोस्ट करने से भी रोक दिया गया है।

    जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की अवकाश पीठ ने आगे कहा कि जांच आगे बढ़ने पर प्रतिबंध बरकरार नहीं रह सकता और तदनुसार हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित किया।

    कोर्ट ने कहा,

    "हम यह स्पष्ट करते हैं कि यदि आवश्यक हुआ तो याचिकाकर्ता से 3 जुलाई, 2022 के बाद भी पूछताछ की जा सकती है।"

    अदालत केरल राज्य और शिकायतकर्ता द्वारा केरल हाईकोर्ट द्वारा बाबू को अग्रिम जमानत देने के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिकाओं पर विचार कर रही थी।

    आदेश दिया,

    "प्रतिवादी साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा या किसी भी गवाह के साथ हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं करेगा। प्रतिवादी मुख्य प्रतिवादी (पीड़िता) को परेशान नहीं करेगा।"

    कोर्ट रूम एक्सचेंज

    पीड़िता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने कहा कि वह 20 साल की है और उसने अभी फिल्म उद्योग में प्रवेश किया है। स्वाभाविक रूप से, वह एक शक्तिशाली व्यक्ति के खिलाफ ऐसे आरोप नहीं लगाएगी, जब तक कि वे सच न हों।

    उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विजय बाबू ने उस पर "दबाव" डालने के लिए फेसबुक लाइव पर उसकी पहचान का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि अभिनेता जॉर्जिया भाग गए, जहां कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है।

    बसंत ने कहा,

    "अदालत उसे प्रारंभिक सुरक्षा दी। क्या कोई व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज करने के बाद किसी देश में भाग सकता है और फिर कह सकता है कि मुझे सुरक्षा दो?"

    उन्होंने गुरुबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब राज्य पर भरोसा किया।

    राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट जयदीप गुप्ता ने प्रस्तुत किया कि विजय बाबू फिल्म इंडस्ट्री में एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और मामले से संबंधित गवाह और सबूत भी इसी इंडस्ट्री से संबंधित हैं।

    आगे कहा,

    "एफआईआर का होना उसे आगे अपराध करने से नहीं रोकता है। वह फिल्म इंडस्ट्री में बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं और मामले से संबंधित गवाह और सबूत भी इसी इंडस्ट्री से संबंधित हैं। सबूत नष्ट करने की उनकी प्रवृत्ति इस मामले में बनाई गई है। उन्होंने 15 महत्वपूर्ण दिन के व्हाट्सएप मैसेजस को डिलीट कर दिया।"

    गुप्ता ने अदालत को यह भी बताया कि आक्षेपित आदेश ने 3 जुलाई तक जांच को प्रतिबंधित कर दिया और पूछताछ में लगने वाले समय को कम कर दिया।

    इस पर सुनवाई करते हुए पीठ ने टिप्पणी की,

    "हमें नहीं लगता कि जमानत देना अनुचित है, लेकिन जांच के लिए समय सीमित करना अनुचित है।"

    सबूतों से छेड़छाड़ के मुद्दे पर बेंच ने कहा कि चूंकि पुलिस के पास उसका मोबाइल है। इसलिए वे इसे पुनः प्राप्त कर सकते हैं। बेंच ने कहा कि दोनों (विजय बाबू और पीड़िता) ने आपसी समझ से मैसेजस को डिलीट किया था।

    गुप्ता ने तब तर्क दिया कि विजय बाबू ने बाद में मैसेजस को डिलीट किया था।

    बेंच ने टिप्पणी की,

    "पहले या बाद में मैसेजस डिलीट करने के लिए उसे कोई निर्देश नहीं था। लेकिन क्या किसी आरोपी को अपने खिलाफ सबूत देने के लिए मजबूर किया जा सकता है? गिरफ्तारी का उद्देश्य दबाव डालना है और यह केवल यह सुनिश्चित करना है कि वह कानून की प्रक्रिया से बचता नहीं है। जब व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है तो हम एक अलग दृष्टिकोण लेते हैं।"

    गुप्ता ने तब तर्क दिया कि मौजूदा मामले में, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114ए के तहत बलात्कार के अभियोगों में सहमति की अनुपस्थिति के रूप में अनुमान लागू होगा।

    अपनी असहमति व्यक्त करते हुए पीठ ने पूछा,

    "क्या यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जहां अंतरंग संबंध थे और शादी करने का वादा किया गया था, वहां प्रतिवादी पहले से ही एक विवाहित व्यक्ति था और वह शादी करने के लिए भी स्वतंत्र नहीं था?"


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