सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत जनगणना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार किया; याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने को कहा

Brij Nandan

20 Jan 2023 8:18 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत जनगणना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार किया; याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट जाने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिहार राज्य में जातिगत जनगणना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया।

    बिहार सरकार ने इस साल 7 जनवरी को जाति सर्वे शुरू किया था। पंचायत से लेकर जिला स्तर तक के सर्वे में मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से प्रत्येक परिवार का डाटा डिजिटल रूप से संकलित करने की योजना है।

    याचिका में सुप्रीम कोर्ट से जातिगत जनगणना करने की राज्य सरकार की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई थी।

    जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस विक्रम नाथ याचिकाकर्ताओं की ओर से वकीलों द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण से प्रभावित नहीं हुए।

    जस्टिस गवई ने कहा,

    "यह एक प्रचार हित याचिका है?"

    आगे कहा,

    "अगर यह प्रदान किया जाता है तो वे (राज्य सरकार) कैसे निर्धारित करेंगे कि आरक्षण कैसे दिया जाना है?"

    वकीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर करने को कहा।

    खंडपीठ ने सभी याचिकाओं को वापस लेने के साथ खारिज कर दी।

    11 जनवरी, 2023 को इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई थी।

    जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि जनगणना अधिनियम 1948 की व्यापक योजना के अनुसार, केवल केंद्र सरकार के पास नियम बनाने, जनगणना कर्मचारी नियुक्त करने, जनगणना करने के लिए आवश्यक परिसर, मुआवजे का भुगतान, सूचना प्राप्त करने आदि क शक्ति है।।

    याचिका में संविधान की सातवीं अनुसूची का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि 'जनगणना' संघ सूची के क्रम संख्या 69 के अंतर्गत आती है और इस प्रकार, यह केवल संसद है जो जनगणना के विषय पर कानून बना सकती है और यह केवल केंद्र सरकार है जिसके पास संविधान के प्रावधानों के अधीन किसी भी प्रकार की जनगणना को अधिसूचित करने की कार्यकारी शक्ति है।

    यह आगे तर्क देता है कि जनगणना अधिनियम 1948 जाति आधारित जनगणना पर विचार नहीं करता है। सरकारी अधिसूचना की इस आधार पर आलोचना की गई कि इसने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया।

    जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार की अधिसूचना अवैध और असंवैधानिक है और यह देश की एकता और अखंडता पर प्रहार करने और तुच्छ वोट बैंक की राजनीति के लिए जाति के आधार पर लोगों के बीच सामाजिक वैमनस्य पैदा करने का प्रयास है।

    [ केस टाइटल: एक सोच एक प्रयास बनाम भारत सरकार और अन्य। WP(C) संख्या 71/2023 और संबंधित मामले]


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