सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल पहले मजदूरों के विरोध प्रदर्शन के दौरान सरकारी अधिकारी पर हमला करने वाली महिला की सजा कम की

Shahadat

7 Aug 2023 10:55 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल पहले मजदूरों के विरोध प्रदर्शन के दौरान सरकारी अधिकारी पर हमला करने वाली महिला की सजा कम की

    Supreme Court

    सुप्रीम कोर्ट ने उस सोशल वर्कर को परिवीक्षा का लाभ दिया, जिसे लोक सेवक पर हमला करने का दोषी ठहराया गया था और उसकी सजा को घटाकर 1 महीने कर दिया गया। यह घटना 1992 से संबंधित है, जब वह महिला निदेशालय (महिला एवं बाल विकास) के कार्यालय में घुस गई और सरकारी अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया और उसे धक्का दिया, जिससे उसकी दाहिनी उंगली में चोट लग गई।

    जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस संजय करोल खंडपीठ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें लोक सेवक को गंभीर चोट पहुंचाने और हमला करने के लिए उसे 6 महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

    सजा के सीमित प्रश्न पर निर्णय करते समय न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मामला 30 वर्ष से अधिक पुराना है, जहां अपीलकर्ता इतने वर्षों तक जमानत पर बाहर है। अब वह 62 साल की बुजुर्ग महिला हैं।

    अदालत ने माना कि ऐसी कोई हाथापाई नहीं हुई और अपीलकर्ता केवल मजदूरों की चिंताओं को उठा रहा था। अदालत इस बात से अवगत थी कि किसी लोक सेवक को चोट पहुंचाना गंभीर अपराध है, जिसमें 10 साल की जेल की सजा दी जा सकती है, लेकिन अदालत ने सभी कारकों पर समग्रता से विचार करते हुए यह विचार किया कि अपीलकर्ता के प्रति उदारता दिखाई जा सकती है।

    अदालत ने कहा,

    “निर्धारित परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हमारा विचार है कि जब मूल सजा की बात आती है तो अपीलकर्ता को उदारता दिखायी जानी चाहिए। व्यक्तिगत रूप से लिए गए अलग-अलग कारक, उदारता दिखाने के लिए अपने आप में कोई आधार नहीं बनाते हैं। उदाहरण के लिए केवल इसलिए कि कोई आरोपी लंबे समय से जमानत पर है, नरमी दिखाने का कोई आधार नहीं है। यह विचार किए जाने वाले कई कारकों में से केवल एक है। लेकिन हमने इन कारकों पर संचयी रूप से विचार किया। इसलिए हम धारा आईपीसी की 333 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अपीलकर्ता की सजा को घटाकर एक महीने के साधारण कारावास में बदलने का प्रस्ताव करते हैं।

    अदालत ने आंशिक रूप से दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए अपील की अनुमति दी, लेकिन साथ ही आईपीसी की धारा 333 और 451 के तहत अपराधों के लिए जेल की अवधि को घटाकर 1 महीने के साधारण कारावास तक कर दिया। इसने घायल लोक सेवक को दिए जाने वाले 25,000 का जुर्माना भी लगाया।

    मामले की पृष्ठभूमि

    अपीलकर्ता राजनीतिक दल से संबंधित सोशल वर्कर्स है। 1992 में जब सार्वजनिक अधिकारियों की बैठक हो रही थी, तब वह महिला एवं बाल विकास निदेशालय, भोपाल के कार्यालय में घुस गई। उन्होंने गालियां दीं और सरकारी अधिकारी को धक्का दे दिया, जिससे उनकी दाहिनी उंगली में चोट लग गई।

    उस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 333, 353 और 451 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया। सत्र अदालत ने उसे लोक सेवक को गंभीर चोट पहुंचाने के लिए 2 साल की कठोर कारावास और हमले और अतिचार के लिए 1 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई।

    अपील में हाईकोर्ट ने सभी अपराधों के लिए सज़ा को घटाकर 6-6 महीने के कठोर कारावास तक कर दिया। इसी बात से दुखी होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    केस टाइटल: रजिया खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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