'कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग': सुप्रीम कोर्ट ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त करने की मांग वाली याचिका खारिज की

Brij Nandan

21 Oct 2022 9:05 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक पर्यावरणविद् द्वारा भारत के राष्ट्रपति के खिलाफ 'अपमानजनक आरोप' लगाने वाली याचिका खारिज कर दी।

    जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली ने कहा,

    "यह तुच्छ याचिका है और अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। सर्वोच्च संवैधानिक पद के खिलाफ लगाए गए आरोप जिम्मेदारी की भावना के बिना हैं।"

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि अगर याचिकाकर्ता द्वारा भविष्य में इसी तरह की याचिका दाखिल की जाती है तो उन याचिकाओं पर विचार न किया जाए।

    याचिकाकर्ता की ओर से मांगी गई राहत -

    1. उन्हें 2022 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्विवाद उम्मीदवार के रूप में मानने का निर्देश दिया जाए।

    2. भारत के राष्ट्रपति के रूप में उनकी नियुक्ति के लिए निर्देश दिया जाए।

    3. 2004 से पूर्व राष्ट्रपतियों को भुगतान किए गए वेतन के भुगतान के लिए निर्देश दिया जाए।

    याचिकाकर्ता के बेंच के सामने पेश होने पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने बिना किसी जिम्मेदारी के सर्वोच्च संवैधानिक प्राधिकरण के खिलाफ याचिका में लगाए गए आरोपों पर नाराजगी व्यक्त की।

    बेंच ने कहा,

    "आपने भारत के राष्ट्रपति के खिलाफ किस तरह के अपमानजनक आरोप लगाए हैं?"

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    "मुझे लगता है कि यह मामला देश में लोकतांत्रिक संविधान के मूल लोकाचार को फिर से परिभाषित करेगा।"

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि देश के नागरिक के रूप में उन्हें सरकारी नीतियों और प्रक्रियाओं से लड़ने का पूरा अधिकार है।

    जस्टिस ने कहा,

    "लेकिन, आपको तुच्छ याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। आप बाहर सड़क पर खड़े हो सकते हैं और भाषण दे सकते हैं, लेकिन आप अदालत में नहीं आ सकते हैं और इस तरह की तुच्छ याचिकाओं को कोर्ट का समय बर्बाद करने की अनुमति नहीं है।"

    याचिकाकर्ता ने अपनी चुनौती की रूपरेखा समझाने के लिए अदालत से कुछ समय मांगा। उन्होंने पीठ को अवगत कराया कि पिछले तीन राष्ट्रपति चुनावों में उन्हें अपना नामांकन भी दाखिल करने की अनुमति नहीं दी गई है। उन्होंने एक नागरिक के रूप में 'कम से कम नामांकन दाखिल करने' के अपने अधिकार पर जोर दिया।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि वह एक पर्यावरणविद् हैं जो पिछले 20 वर्षों से पर्यावरण संबंधी चिंताओं को हल करने में काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सरकारी अधिकारियों से समर्थन नहीं मिला है।

    उन्होंने दोहराया कि एक नागरिक के रूप में उन्हें 'सरकारी नीतियों का विरोध करने का पूरा अधिकार' है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,

    "और फैसला करना हमारा कर्तव्य है।"

    अपने इस तर्क की पुष्टि करने के लिए कि सरकारें नागरिकों के प्रति जवाबदेह हैं, उन्होंने श्रीलंका की स्थिति का उल्लेख किया जिसमें राष्ट्रपति को लोगों के विरोध के आगे झुकना पड़ा और देश से भागना पड़ा।

    याचिकाकर्ता ने पीठ से उसकी याचिका पर विस्तार से सुनवाई करने और उस पर विचार करने का अनुरोध किया।

    याचिकाकर्ता ने कहा,

    "मुझे उम्मीद है कि अदालत मुझे अपना मामला रखने देगी और सरकार को यह एहसास कराएगी कि वे कहां गलत हैं। लोग बुनियादी चुनाव लड़ने से भी वंचित हैं।"

    [केस टाइटल: किशोर जगन्नाथ स्वंत बनाम ईसीआई डब्ल्यूपी (सी) संख्या 176/2022]


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