सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को अंतिम सुनवाई के लिए वरवर राव की जमानत याचिका पोस्ट की; अंतरिम जमानत बढ़ाई
Brij Nandan
19 July 2022 12:53 PM IST
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को तेलुगु कवि और भीमा कोरेगांव-एलगार परिषद (Bhima Koregaon-Elgar Parishad Case) के आरोपी पी वरवर राव (Varavara Rao) की मेडिकल आधार पर नियमित जमानत याचिका को 10 अगस्त को अंतिम सुनवाई के लिए पोस्ट किया।
इसके साथ ही जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने भी औपचारिक रूप से नोटिस जारी कर राष्ट्रीय जांच प्राधिकरण से जवाब मांगा है।
कोर्ट ने कहा,
"मामले के विवाद की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए मामले का निपटारा अगले अवसर पर किया जाएगा। चूंकि हमने पहले नोटिस जारी नहीं किया था, इसलिए नोटिस जारी कर रहे रहे हैं, जिस पर 10 अगस्त, 2022 को जवाब आना चाहिए।"
पीठ ने चिकित्सा आधार पर पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा को भी बढ़ा दिया।
इस साल 13 अप्रैल को पारित आदेश के माध्यम से , बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें तेलंगाना में अपने घर पर रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, लेकिन मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए अस्थायी जमानत की अवधि तीन महीने बढ़ा दी थी और मुकदमे में तेजी लाने के निर्देश जारी किए थे।
आज सुनवाई के दौरान राव की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के ताजा आदेश में कहा गया था कि जेल की स्थिति में सुधार किया जाना चाहिए।
बेंच ने जवाब दिया,
"चलो उस में मत जाओ।"
नोटिस जारी करते हुए,पीठ ने नोटिस की तामील से भी मुक्त कर दिया क्योंकि इस मामले में एक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पेश हो रहे हैं।
कोर्ट ने एएसजी को 2 अगस्त तक सभी सामग्री को रिकॉर्ड में रखने और 8 अगस्त तक प्रत्युत्तर आवेदन दाखिल करने का भी आदेश दिया।
विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है कि कोई भी आगे की कैद उनके लिए "मृत्यु की घंटी" होगी क्योंकि बढ़ती उम्र और बिगड़ती स्वास्थ्य उनके जीवन के लिए घातक हो रहा है।
याचिका में उल्लेख किया गया है कि एक अन्य आरोपी, 83 वर्षीय आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में मामले में हिरासत में रहते हुए निधन हो गया था।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि फरवरी 2021 में जमानत मिलने के बाद, उनकी तबीयत बिगड़ गई और उसे गर्भनाल हर्निया हो गया, जिसके लिए उसे सर्जरी करानी पड़ी। इसके अलावा, उन्हें अपनी दोनों आंखों में मोतियाबिंद के लिए भी ऑपरेशन करने की आवश्यकता है, जो उन्होंने नहीं किया है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि यह एक स्थापित कानून है और सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर जमानत पर वैधानिक रोक के बावजूद यूएपीए मामलों में जमानत दी जा सकती है।
1 फरवरी, 2021 को हाईकोर्ट ने 82 वर्षीय राव को छह महीने के लिए जमानत दे दी थी और कड़ी शर्तें लगाई थीं, उनमें से एक यह था कि राव को मुंबई में विशेष NIA कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहिए। पीठ ने पाया था कि वृद्ध का निरंतर कारावास में रखना उनके स्वास्थ्य के प्रति असंगत है
दोहराते हुए, अप्रैल, 2022 में हाईकोर्ट ने उन्हें स्थायी जमानत देने से इनकार कर दिया था, लेकिन चिकित्सा आधार पर दी गई उनकी अस्थायी जमानत को तीन महीने के लिए बढ़ा दिया था।
क्या है पूरा मामला?
एनआईए ने राव और 14 अन्य कार्यकर्ताओं पर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के एजेंडे को आगे बढ़ाने और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। उन पर मुख्य रूप से उनके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से प्राप्त पत्रों/ईमेलों के आधार पर कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
एक आपराधिक साजिश के हिस्से के रूप में एनआईए ने आरोप लगाया कि एल्गार परिषद सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में किया गया था।
एजेंसी ने आरोप लगाया कि इस कार्यक्रम में भड़काऊ भाषणों ने अगले दिन भीमा कोरेगांव में जातीय हिंसा में योगदान दिया। आरोपियों ने दावा किया है कि उनमें से अधिकांश ने इस कार्यक्रम में भाग नहीं लिया या एफआईआर में उनका नाम नहीं था।
केस टाइटल : डॉ पी वरवर राव बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी और अन्य